Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताघमकथासूत्र भागम् अभिमरन्तः मम्मुख सञ्चरन्तः सन्तः 'मुद्याई' मुग्धाः-मनोहराः शिशवः 'थणयं' पियंति, स्तनज=दुग्धं पिबन्ति स्तन्यपानं कुर्वन्तीत्यर्थः । ततश्च ते 'कोमलकमलोवमेडिं' कोमलकमलोपमाभ्यां सुकुमालकमल. सदृशाभ्यां हस्ताभ्यां गृहीत्वा 'उच्छंगनिवेसियाई' उत्सङ्गनिवेशिताः अ स्थापिताः सन्तः स्तनन्धया मातृभ्यः 'देति' ददति, किमित्याह-समु. लावे' समुल्लापकान्, संजल्पान् कीदृशोन् ? इत्याह-'पिए' प्रियान् प्रीति जनकान 'सुमहुरे' सुमधुरान कर्णसुखजनकान 'पुणो पुणो मंजुलप्पणिए' पुनः पुनर्मलप्रभणितान् वारंवारं कोमलाक्षर प्रयुक्तनल्पितान् ददति प्रियमञ्जलभापया भापन्ते धन्या इत्यर्थः। 'तं' तन-किन्तु अहं खलु 'अधन्ना' अधन्या अकृतार्थ 'अपुण्णा' अपुण्या-पुण्यहीना, 'अलकावणा'='अलक्षणा =कुलक्षणा 'अकयपुण्णा' अकृतपुण्या=न कृतं पूर्वभवे पुण्यं यया सा पूर्वभवाड अभिसरमाणाई मुद्धया थणयं पिबत्ति) कि जिनकी कुक्षि से उत्पन्न स्तन के दुग्ध में लुब्ध, मीठी २तोतली बोलते हुए बालक शिशु स्तन के मूल भाग से कक्ष देश पर्यन्त सरक कर दूध पीते हैं। (तओ य कोमलकमलोवमेहि हत्थेहिं गिहिऊणं उच्छंगे निवेसियाई) और माता उन्हें अपने सुकुमार तथा कमल जैसा दोनों हाथों से पकड कर उत्संग में बैठाती है। और वे स्तनन्धय-बालक (समुल्लावए दें ति) उन अपनी माताओं को इस प्रकर के आलापों को देते हैं (पिए सुमहरे पुगो२ मंजुलप्पणिए) जो मोति जनक होते हैं, कर्ण सुखजनक होते हैं
और जिनमें बार२ कोमल अक्षरवाली वाणी होती है। (तं अहन्नं अधन्ना अपुन्ना अलक्खणा अकयपुन्ना एत्तोएगमवि न पत्ता) किन्तु में तो अधन्य हुँ, पुण्यहीन हु-कुलक्षणा हुं अकृत पुग्या हुँ पूर्वभव में पुण्यजिसने नहीं किया मुद्धयाई थणय पिबति) से भानु छ मना रे गन्भेयु, स्तन पान માટે ઉત્કંઠિત, મીઠું મીઠું અને તેતડું બેલતું બાળક સ્તને સુધી-પડખા સુધી घसी भावीन दूध पीने छ. ( तमो य कोलकमलोवमेहि हत्थे गिहिऊ उच्छंगे निवेसियाई) अने भाता तेने भावा माने यामा जयश्रीन मौकामा मेसाई छ. ते माग ५५ (समुल्लापए देंति) भातासोनी साभे मेवी रीते आधु आमाले छ (पिए सुमहरे पुगो २ मंजुलप्पणिए) જે અત્યન્ત પ્રેમ જનક હોય છે, કાનને સુખકર હોય છે. તેની વાણી કમલ अक्षराथी युत डाय छ. (तं अहन्नं अधन्ना अपुन्ना अलक्खणा
आयपुन्ना एनो एगमति न पत्ता) ५ तो ममा छु, पुश्य हीन छु, કુલક્ષણ છું, અકૃત પુણ્ય છું, જેણે પૂર્વભવ જન્મમાં પુયે કર્યો જ નથી એવી
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