Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
अवाधर्मामृतवर्षिणी टीका अ. सूत्र. ५ धन्यासार्थव ही विचारः गृह्णन्ति, गृहीत्वा पुष्करिणतिः प्रत्यवरोहति प्रत्यवरुह्य तं सुबहु पुष्पगन्ध वस्त्रमाल्यालङ्कारं गृह्णन्ति, गृहीत्वा यत्रैव नागगृहं चाद्वैश्रमवणगृहं तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य तत्र खलु नागप्रतिमानां च यावद् वैश्रमणपतिमानांच 'आलोए' आलोके = दृष्टिपथमागते सति प्रणामं करोति, कृत्वा 'ईसि पचणमइ' ईपत्प्रत्युन्नमति= स्तोकं प्रणमति, प्रत्युन्नम्य 'लोभहत्थगं' लोमहस्तकं = मयूरपिच्छममार्जनकं 'परामुमइ' परामृशति गृह्णाति गिors) बाद में जब वह अच्छी तरह स्नान कर चुकी और काकादि पक्षी को अन्नादि को दिया तब गीली पटशाटिका पहिने हुए ही उसने वहां जितने कमल थे यावत् सहस्रपत्र युक्त महाकमल थे उन सबको उस पुष्पकरिणी से लिया और (गिड़िता पुक्खरिणीओ पच्चोरुहह, पच्चोरुहित्ता त सुबह पुष्क गंधवत्थमल्यालंकार गेण्डइ, गिण्डि । जेणामेवनागघर ए य जाव वेसमणघ एय तेणेव उवागच्छइ) लेकर वह उस पुष्करिणी से बाहर नीकली निकल कर उसने समस्त उन पुष्प, गंध वस्त्र, माला, अलंकार आदि को लिया और लेकर जहां नागघर यावत् वैश्रमण का घर था वहां गई ( उवागच्छिता तस्थणं नागपडिमाण य जाव वेसमणपरिमाण य आलो पणामं करे वहां पहुँच कर उसने वहाँ नाग मतिमाओं को यावत् . वैश्रमण प्रतिमाओं को दृष्टिपथ होते ही प्रणाम किया । (करिता इंसि परचु (इ) प्रणाम कर फिर वह कुछ झुकी - (पच्चुन्नमिना लोमहत्थगं परामुसपरामुसित्ता नागपडिमाओ य जाव वेसमणपडिमाओ य लोमहत्थ एणं पम
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
સારી રીતે સ્નાન કરી લીધું અને કાગડા વગેરે પક્ષીઓને અન્ન વગેરેના ભાગ આપ્યા ત્યારબાદ ભીની સાડી પહેરીને જ તેણે ત્યાં જેટલાં કમળા, સહુસ્ર પત્રવાળા भड्डा उभणेो इतां ते अघाने पुण्डनिशी मांथी सई सीधा भने ( गिव्हित्ता पुक्खरिपीओ पचोरुहइ, पचोरुहिसा तं सुबहु पुष्कगंधवत्थमालंकारं गेहगिव्हित्ता जेगामेव नागघरए य जाव वेसमणघरए य तेणेत्र उवागच्छइ) લઈ ને તે પુષ્કરિણીની બહાર નીકળી નીકળીને તેણે બધાં પુષ્પ વસ્ર, ગધ, માળા અલંકાર વગેરે લીધાં અને લઈને જ્યાં નાગધર વૈશ્રમણ ઘર વગેરે હતાં ત્યાં ગઇ(उवागच्छित्ता तस्थ णं नागपडिमाण य जाववेस सेणपडिमाण य आलोय पणामं करेइ) त्यां थडोयीने तेथे नाग मने वैश्रवणु वगेरेनी प्रतिभागाने तां प्रणाम य ( करिता ईसि पच्चुन्नमइ) प्रलाभ उरीने ते नीथी नभी ( पच्चुन्नमित्ता लोम हत्थग परामुसइ परामुसित्ता नागपड़िमाओ य जाव वेसमणपडिमाओ य
-1
१९९