Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. २ स. ७ देवदत्तवर्णनम् चेट पमत' प्रमत्तम् अन्यत्र संलग्नचित्त पश्यति, दृष्ट्वा दिमालोयं' दिशालो कम्- 'अम्मिन्नवसरे कस्यापि गमनागमनमस्ति न वा ?' इति सकलदिशा निरीक्षणं करोति, कृत्वा देवदत्तं दारकं गृह्णाति, गृहीत्वा 'कक्वंसि' कक्षे= बाहमूले 'अल्लियावेई' आलोनयति अन्तर्धानं करोति आलीनयित्वा "उत्त रिज्जेणं' उत्तरीयेण-उपरिवस्त्रण 'दुपट्टा' इति भाषायां, तेन 'पिहेइ' पिदधाति, पच्छादयति,प्रच्छाद्य शीघ्र त्वरितं चपलं वेगितं शीघ्रातिशीघ्रमित्यर्थः राजगृहस्य नगरस्यापद्वारेग निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव जीर्णोद्यान. यौव भग्नकूपकस्तत्रैवोपागच्छति. उपागत्य देवदत्तं दारकं 'जीवियाओ' जोविनात् च्छित हा गया--ग्राथत हा गया--उनमें एकाग्र बन गया, अथवा गृह-- लुब्ध हो गया--इन्हें मैं ललू इस स्थिति से युक्त हुए उसने साथ में पॉधक दास चेटक को भी अन्यत्र संलग्न चित्तवाला देवा (पासित्ता दिसालोयं करेइ करिता देवदिन्नं दारयं गेण्डइ) देखकर फिर उसने दिशा वलोकन किया-आजू बाज का ओर इधर उधर देखा की कहीं से कोई आता जाता तो नहीं है, जब कोई कहीं नहीं दिखाई पडा तो उसने उसी समय उस देवदत्त दारक को उठा लिया। (गेण्डित्ता कक्खपि अल्लियावेइ, अल्लियावित्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ) उठाकर फिर उसने उसे
अपनो काँख में छुपा लिया। छुपाकर बाद में उसे दुपट से ढक लिया (पिहिता सिग्धं, तुरियं चवलं चेइयं रायगिहस्स नयरस्स अवद्दारणं निग्गच्छइ) हक कर वह फिर वहां से शीघ्र, त्वरित, जल्दी जल्दी राजगृह नगर के अपद्वार पिछले द्वार २ से बाहर निकला (निग्गच्छित्ता जेणव जिण्णुजाणे जेव पासइ) हेपत्तने र मूल्य परेशमाथी मतने ते भाइश २४ गयो, તેનું ચિત્ત ઘરેણુઓમાં જ ચેટી ગયું અથવા તે તે લેભાઈ ગયે. આ ઘરેણું એને હું હરી લઉં આ જાતને વિચાર તેના મનમાં ફુર્યો. ચારે દાસ ચેટક ५५४ने ५५ त्या थोडे २ २भतभा सीननयो. (पासिता दिमालोयं करेइ कारत्ता देवदिन्नं दारयं गेण्हइ) ५४ने नेयो पछी तेणे यामे२ नयु आई सातु તે નથી? જયારે તેને કેઈ દેખાયું નહિ. ત્યારે તેણે તરત બાળક દેવદત્તને ઉપાડી बीधी. (गेण्हिता कावंलि अल्लियावेइ अल्लियावित्ता उत्तरिज्जेगं पिहेइ) 30ने. तेथे ॥४ने ५४माम छुपावीन तेने दुपट्टाथी dia al. (पिहित्ता सिग्ध तुरिय चाल चेइयं रायगिस न परस्त आहारेणं निगच्छइ) isीने ते सत्वरे (परित तिथी राड नगरना अपद्वारथी मडा नीजी गयो. (निगच्छित्ता जेणेव जिण्णुज्ञाणे जेणेव भग्गकूवए तेणेव उवागच्छइ) नजीर ते ते या भूनु उधान भने मन को l त्यां पडयो. ( उवागच्छिता
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