Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथा
भूता तामेव दिशं प्रतिगता । ततः खलु सा भद्रा सार्थवाही सम्पूर्ण दोहदा यावत् तं गर्भ सुखं मुखेन परिवहति । ततः खलु सा भद्रा सार्थवाही नवसु मासेषु बहुप्रतिपूर्णेषु अर्द्धाष्टमेषु रात्रिन्दिवेषु (व्यतीतेषु) सुकुमारपाणिपादं यावत् दारकं प्रजनिता । ततः खलु तस्य दारकस्य अम्बापितरौ प्रथमे दिसे जातकर्म कुरुतः कृत्वा तथैव यावत् त्रिपुलमशनं पान खाद्यं स्वायमुपस्कारयतः उपस्कार्य
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सर्द्धितं विपुलं असण४ जाव परिभुजमाणी य दोहल विणेइ) इसके बाद उन मित्र ज्ञाति निजक, स्वजन, संबन्धी, परिजन की नगर महिलाओं के साथ २ उस ४ चारों प्रकार के आहार को किया कराया और अपने दोहले की पूर्ति की | (विणिता जामेबदिसिं उन्भूया तामेव दिसि पडिगया) दोहले की पूर्ति कर वह फिर जिस दिशा से प्रकट हुई थी - आई थी उसी दिशा की ओर चली गई । अर्थात् अपने घर पहुंच गई (तएणं सा भद्दा सत्यवाही संपुन डोहला जाव त गन्भं सुहं सुहेण परिवहर) इसके अनन्तर उस भद्रा सार्थवाहीने कि जिसका गर्भ मनोरथ अच्छी तरह परिपूर्ण हो गया है यावत् अपने गर्भ को भलीभांति से सुख पूर्वक परिवहन किया (तसा भद्दा सत्यवाही वण्ड मासागं बहुपडिपुण्णाण अट्टराईदियाण सुकुमालपाणिपायं दारगं पयाया) बाद में जब गर्भ के ठीक नौ मास ७|| साढे सात दिन समाप्त हो चुके तब उसने सुकुमार कर चरणवाला पुत्र को जन्म दिया। (तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जाय कम्म करेंति, करिता तत्र विउल असणं ४ उवक्खडावेंति) इसके बाद संबंधिपरियणणगर महिलाहिं य सद्धिं तं विपुलं असणं ४ जात्र परिभुजमाणी य दोहले त्रिणे) त्यार माह तेथे पोताना समंधीनी नगरनी સ્ત્રીએ સાથે ચારે જાતના આહાર કર્યા. અને કરાવડાવ્યા. આ રીતે તેણે પોતાના होडडनी पूर्ति री. (विरेइत्ता जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पड़िगया) छोड़ पूर्ति र्या माह ते न्यांथी भाबी हुती. त्यां यासी गई भेटले ते तेना घेर चहांथी ग (तए णं सा भी सत्यवाही संपुन्नडोहला जाव तं गर्भ सु सुहेणं परिवहइ ) त्यार पछी पूर्ण होहुडा भद्रा सार्थवाही सुषेथी घोताना गलने परिवहन उरती रहेवा सागी. (तएण सा भदा सत्यवाही हं मासाणं बहुपडिyoगाणं अद्धट्टराई दियाणं सुकुमालपाणि पायं दारगं पाया) मा प्रमाणे गर्भ न्यारे मरामर नव भास भने साडा सात દિવસ રાતના થયા ત્યારે ભદ્રાસા વાહીએ સુકામળ હાથ પગ વાળા પુત્રને ४न्म आध्या (तए णं तस्स दारंगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जायकम्मं
करेंति करिता तहेव जाव विउलं असणं ४ उवक्खडावे ति) त्यार पछी
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