Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. २ स. ६ भद्रासार्थवाही दोहनवर्णनम् मद्रासार्थवाही धन्येन सार्थवाहेनाभ्यनुज्ञाता सती हृष्टतुष्टा यावद् विपुलम् अशनं पानं खाद्यं खायं यावत् स्नाता यावत् आपटशाटिका यत्रव नागगृहं यावत् धूपं दहति दग्ध्वा प्रणामं करोति, प्रणामं कृत्वा यत्र पुष्करिगी तत्रैव गच्छति। ततः खलु ता मित्रज्ञाति यावत् नगर महिला भद्रां साथै वाहीं सर्वालंकारविभूषितां कुर्वन्ति । ततः खलु सा भद्रा सार्थवाही ताभिर्मित्रज्ञाति निजकस्वजनसम्बन्धिपरिजननगर महिलाभिः सार्धं तद् विपुलमशनं पान वाय स्वाद्यं यावत् परिभुञ्जाना च दोहदं व्यपनयति व्यपनीय यस्यादिशः प्रादु देवापिया ! मा पबिंध करे) हे देवानुप्रये ! तुम्हें जेसे सुख हो वैसा करो इसमें देरी मत करो (तरण सा भद्दा सत्यवाही धन्नेण सत्यवाण अभणुन्नाया समाणो हट्ट तुट्ठा) उसके बाद उस भद्रा सार्थवाहीने धन्य सेठ से अनुमति प्राप्त कर बहुत ही अधिक हर्पित और सन्तुष्ट चित्र हो ( जाव) यावत् (विपुल असगं४ जाव छाया) विपुलमात्रा में चारों प्रकार का आहार तैयार किया - यावत् उसने पुष्करिणी में स्नान किया (जाय उल्लपडमाडिया जेणेव नागवरए जाव धूवं डहर) यावत् गीली साडी पहिने हुए ही फिर उसने उस पुष्करिणो से कमलों को लिया और जहाँ नागर आदि थे वहां गई- बहूमूल्य पुष्पा कर उनके समक्ष धूर दिवाई इस प्रकार यहाँ पांचवें मूत्र में जो वर्णन है वह समझ लेना (उहिता पणानं करेइ-पणाम करिता जेणेव पोक्खरिणी तेर्णेव उनागच्छ) धूप दिखा चुकने पर उसने उन्हें प्रणाम किया प्रणाम कर फिर वह पुष्करिणो पर वामि आ गई (नएण ताओ मित्तनाइ नियगसपण संबंधिपरियणणगर महिलावहि बंध करेह) हे देवानु प्रिये ! तमने प्रेम सुख थाय तेम उरो, भोडु शे नहि (तए सा भाव सत्यवाही धन्ने सत्यवाणं मणुन्नाया समा દૃઢ તુ) ત્યાર બાદ તે ભદ્રા સાવાહી ધન્ય સાવિાહની પાસેથી આજ્ઞા મેળવીને सूख ४ प्रसन्न भने संतुष्ट था. ( जाव) यावत् (विपुलं असणं ४ जाव व्हाया ) પુષ્કળ પ્રમાણમાં ચારે પ્રકારના આહાર બનાવરાવ્યા. અને ત્યાર પછી તેણે પુષ્કરश्रीमां स्नान यु (जाब उल्लपडमाडिया जेणेव नागघर ए जाब धूवं જીરૂ) લીના લુગડે જ તેણે પુષ્કરણીમાંથી કમળેા લીધાં અને નાગઘર વગેરેના દેવસ્થાનમાં ગઇ. ખૂબ જ 'મતિ પુષ્પો વગેરેથી તે બધા દેવાની પૂજા કરી તેમની સામે ધૂપસળી સળગાવી. આગળનું વર્ણન પાઠકાએ પાંચમાં સૂત્ર પ્રમાણે જ लवु लेये. (उठित्ता पगामं करेइ पगामं करिता जेणेव पोक्खरिणी ते शेव उवागच्छइ) धूप या तेो तेभने अशुभ ऊर्जा. प्रशुभ य माह इरीने चुप्पुरिथीना डिनारे खावी गर्छ (तए णं ताओ मित्तनानियगयण
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