Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका. अ. २ मू. ५ धन्यासार्थवाहीविचारः
आध्यात्मिका=आत्मनि विचारः यावत् समुदपद्यत-अहं खलु धन्येन सार्थ वाहेन साई बहूनि वर्षाणि तावत्-बहुवर्षपर्यन्तं शब्दस्पर्शरसरूपात्मकान् मानुष्यकान् कामभोगान् 'पच्चणुब्भवमाणी' प्रत्यनुभवन्ती-परिभुञ्जाना विहरामि-तिष्ठामि किन्तु नोचैव खलु अहं दारकंवा दारिकां वा प्रजन यामि, नत्-धन्याःवलु ता अम्बा यावत् सुलब्धं खलु मानुष्यकं जन्मजीवितफलं तासामम्बानां यासां मन्ये निजककुक्षिसम्भूताःस्तनदुग्धलुब्धा मधुरसमुल्लापका 'मम्मणपनंपियाई' मम्मणमजल्पिताः- 'मम्मण' इति सवलत् प्रनल्पितं येषां ते 'तथा थणमूलकखदेसभागं अभिसरमाणाई' स्तनमूल कक्ष देशभागमभिसरन्तः- स्तनमूलात् स्तनमूलभागात् कक्ष देशरूवे अज्झथिए जाव समुपन्जित्था) इस प्रकार यह आध्यात्मिक यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि (अहं) में (धन्नेण सत्यवाहेण सद्धिं) धन्य मार्थवाह के साथ (बहूणि) बहुत वर्षों से (सहफरिसरसगंधरूवाणि माणुम्सगाई कामभोगई पच्चणुभवमाणी विहरामि) शब्द, स्पर्श, रस, गंध,
और रूप स्वरूप मनुष्यभव संबंन्धी काम भोगों को भोग रही हुई हु। (नो चेत्र णं अहं दारगं वा दारिगां वा पयायामि) परन्तु अभी तक मेरे न लडका ही हुआ है और न लडकी ही (तं धन्नाओ णं ताओ अम्भयाो जाव मुलदेणं माणुस्सए मण्णे जम्मजी वियफलेतासि अम्मयाओ) अतः मैं उन माताओं को धन्य मानती हु, उन्हीं का जीवन सफल समजती हु, और यह मानती हूं कि उन्हीने अपने मनुष्य भव सम्बधी जन्म का और जीवन का फल पाया है। (जासि णियगकुच्छिसंभूयाईथणदुद्धलुद्धयाई महुरसमुल्लावगाई मम्मणयं पियाई थणमूलकखदेसभागं धन्य सापानी साथे (बहूणि वासाणि) म पोथी (सदफरिसरसगंधरूवाणि माणुस्सगाई कामभोगाई, पच्चणुभवमाणी विहसामि) શબ્દ, સ્પર્શ, રસ, ગંધ અને રૂપના મનુષ્યભવના કામ જોગવી રહી છું. (नो चेव णं अहं दारगं वा दारिगां वा पयायामि) पधु भत्यार सुधी भारे पुत्र, पुत्री थयु नथी. (तं धनाओ णं ताओ अम्मयाओ जाप मुलद्धेणं माणुस्सए मण्णे जम्मजीवियफले तासि अम्मयाओ) ते भातासाने धन्य सम છું, તેમના જીવનને જ સફળ માનું છું, કે જેમને મનુષ્યભાવના જન્મ भने नन स५॥ ३॥ भन्या छ (जासि णियगकुच्छिसंभूयाइं थण दुद्धलुद्धयाई महुरसमुल्लावगाइं मम्मणपयं पियाई थणमूल-कक्खदेसभागं अभिसरमाणाई
For Private and Personal Use Only