Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
५७६
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ज्ञाताधर्मकथा मृज्ञे
टीका- 'तस्स ण शत-तस्य खलु धन्यस्य साथवाहस्य पन्थकनामा दासचेटकः- दासपुत्र आसीत् सर्वाङ्गसुन्दराङ्गः, मांसोपचितः - पुष्टशरीरः, बालक्रीडन कुशलः - बालान् क्रीडयितु दक्षश्चाप्यभवत् । तदनु खलु म धन्यः सार्थवाहस्तस्मिन् राजगृहे नगरे बहूनां 'नयर निगम से द्विसत्थवाहाणं' नगर निगम श्रेष्ठिसार्थवाहानाम्, तत्र 'नयर' नगरस्य = राजगृहस्य, 'निगम' निगमस्य=वणिग्ग्रामस्थ, 'सेट्ठि' श्रेष्ठिनः - सार्थवाहाथ, एतेषां च पुनः 'अद्वारसह य' अष्टादशानाम् 'सेणिष्प से णीयं श्रेणिश्रेणीनाम्, तत्र 'सेणि' श्रेणयः कुम्भकारादिजातयः 'गो' पवः - अवान्तरजातयतासां बहुषु कार्येषु
'तस्त्र णं श्रण्णस्स सत्यवोहस्स' इत्यादि ।
टीकार्थ - (तस्स ं घण्णस्स) उस धन्य सार्थवाह के यहां (पंथए नाम दासचेडे होत्था) पंथक नामका एक दास पुत्र था (सव्वंगसुदरंगे ) यह सर्वाग सुंदर था । (सोचिए) पुष्टशरीर वाला था । (बालकीलावणकुसले यात्रि होत्था) बालकों के खिलाने में बडा चतुर था। (तएण से घण्णे सत्यवारायगिहे नयरे बहू णं नयर नियग से द्विसत्थवाहाणं अट्ठारस य सेणिप्पसेणीणं बहुसु कज्जेसु कुडुबेसु य मंतेसु य जाव चक्ाखुभूए यावि होस्था) वह ध सार्थवाह राजगृह नगर में अनेक नगर निवासी वणिकजनों को श्रेष्ठिजनों क वाहों को तथा अठारह श्रणी प्रश्रेणियों को बहुत से कार्यों में अनेक परिवारों में अनेक मंत्रणाओं में गुप्त विचारों में यावत् चक्षुभूत थे मार्ग दर्शक थे। कुंभकार आदि जातियां श्रेणी शब्द से और अवान्तरजातियाँ
C
For Private and Personal Use Only
तस्स णं णस्स सत्यवास्स इत्यादि ॥
टीअर्थ - ( तस्स णं घण्णस्स ) ते धन्य सार्थवाहने त्यां (पंथए णामं दास चेडे होत्या) पंथ नाभे येऊ हास पुत्र हुतो. (सब्बंग सुदरंगे ) ते सर्वांग सुंदर तो. (मंसेचिए) सुडोज शरीर वाणो हतो. ( बालकीलावग कुमले यावि होत्था) आजीने रभाउवामां तेजडुडुशण तो. (तरणं से घण्णे सत्यवाहे रायगिहे नवरे बहूणं नयर नियम से मित्थवाहाणं अहारसह य सेणिप्प सेणीणं बहुसु कज्जेस य कुडुबेसु य मंते य जाव चक्खुभूए याविदोत्था) ते धन्य सार्थबाहु राभ्गृह નગરમાં ઘણા નગરના વણિકા, શ્રેષ્ઠિજના, સાવાહા તેમજ અઢાર શ્રેણી પ્રશ્રેણીએને ઘણા કમામાં ઘણુ! કુટુંબમાં, અનેક જાતની મંત્રણાઓમાં, ગુપ્ત વિચારામાં યાવત્ ચક્ષુભૂત હતા એટલે કે મા દશક હતા. કુંભાર વગેરેની જાતને અહી શ્રેણી शम्हथी भने पेटा लतने प्रभेणी शब्द द्वारा मताववामां भावी छे. ( नियगस्स