Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
५८४
ज्ञातधर्मकथासूत्रे
गणिकागृहाणि 'तारडागाणि तद्द्वारस्थानानि गणिकागृहद्वाराणीत्यर्थः, 'तक्कराणाणि य' तस्करस्थानानि च=चोरनित्रांसस्थानानि, 'सिघाडगाणि' श्रृङ्गाटकानि= श्रृङ्गातित्रिकोणस्थानानि, तियागि' त्रिकाणि मार्गत्रयसंमी लनस्थानानि, 'चउकाणि' चतुष्काणि चतुष्कोणस्थानानि चच्चराणि चत्वरागि= चतुष्पथरूपाणि 'नागघराणि' नागगृहाणि 'भूयवराणि भूतगृहाणि 'जक्ख दे उलानि' यक्षदेवकुलानि= यज्ञायतनानि 'सभाणि' सभाः पत्राणि' प्रपा:पानीयशाला 'पणिसालानि' पणितशालानि कयविक्रयस्थानानि 'सुन्नबराणि ' शून्यगृहाणि 'आभोएमाणे२' अ/भोगयन् २ - सोपयोग मेक्षमाणः 'मग्गमाणे' मायमाणः - अन्विष्यन् । 'गवेसमाणे' गवेषमाणः, सूक्ष्मरीत्या विलोकमान:- बहुजनस्य 'छिदेस' छिदेषु स्खलनारूपेषु 'विसमेसु' विषमेषु-रोगाद्यवस्थावेश्याओं के गृहों को (तदारदाराणि) उनके दरवाजों को (तक्करद्वाणाणि) चोरों के निवासस्थानों को (घाडगाण) श्रृंगाटक जैसे त्रिकोण वाले स्थानों को (तियाणि) तीन मार्ग जहां मिले हों ऐसे स्थानों को (चक्काणि) चतुष्कोण वाले स्थानों को (चच्चराणि चतुष्पथ रूपस्थानों को (नागघराणि) नागगृहों को, (भूमि) भूतों को, ( देउला नि ) यक्ष्य के देवलों को (प्रमाणि) सभाओं को (पाणि) व्याऊ का (पणियसालागि) कवत्रिकय के स्थानों को (सुन्नघराणि) शून्य घरों का (आभोएमाणे २) उपयोग देकर बारबार देखता था । ( मग्गमाणे) उन्हें बार२ तलाशता । ( गवेसमाणे) क्ष्मदृष्टि से उन की गवेषणा करता था (बहुजणस्स छिद्देसु य ) जब कोई किसी प्रकार के कष्ट में होता था (विसमेतु) रोगादि अवस्था संपन्न वेश्यायनां धशेने, (तद्दारदाराणि) ते वेश्याओना हरवालमोने, (तकरद्राणाणि) थोरौना अड्डाभोने (सिंगाडगाणि) श्रंगार - भेटते हैं त्रशु रस्ता लेगा थता होय तेवा स्थानाने, (चक्काणि) अनुण्डीवाजा स्थानाने (चच्चराणि) यार रस्तामे लेगा थता होय तेवा स्थानाने, (नागघराणि) नागनां गृहोने, (भूयधराणि) भूतियां धशेने, ( जक्रख देउलानि ) यक्षाना देवालयाने ( समाणि) सलाखोने (171fm) uziua, (qfog aısıf-su laseval zulâlâ, (gaznfn) vuel पडी रडेला धरोने, (आभोरमाणे) महत्व साथीने वारे घडीओ लेतो हतो (मग्गमाणे) ते स्थानाने वारंवार तपासता रहे तो हतो. ( गवेसमाणे) सूक्ष्म दृष्टियी तेमने लेता रहेता तो. (बहुजणम्स छिद्देसु य ) क्यारे । भालुस अव पाशु भतना उष्टमां थीडतो रहे छे, (त्रियमेसु) रोग वगेरेथी भुक्त रहेतो,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only