Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ.१ मृ ४९ मेघमुनेः संलेखना निरूपणन् कुर्वन्ति । ततः खलुस मेघः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य तथारूपाणां स्थविराणां अन्तिके सामायिकादीनि एकादशाङ्गानि अधीत्य बहुपतिपूर्णानि द्वादशवर्षाणि श्रामण्यपर्यायं पालयित्वा मासिक्या संलेखनया आत्मानं जोषयित्वा षष्टि भक्तानि अनशनेन छेदयित्वा 'आलोइयपडिक 'ते' आलो. चितप्रनिक्रान्तः=आलोचितः = गुरुसमीपे कथितो योऽतिचारः समतिक्रान्तः पुनरकरणविषयीकृतो येन स तथा, 'उद्धिय सल्ल' उद्धृतशल्यः मायाशल्यरहितः, 'समाहिधारण कर लिया । (तरणं ते थेरा भगवंतो मेहस्स अणगारस्स अगिलाए
यावडियं करेंति) इसके बाद वे स्थविर उन भगवान अनगार मेघकुमार का अग्लान भाव से वैयावृत्य करने में लग गये । (तरण से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहाख्वाणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुन्नाइ दुबालसवरिसाई सामन्नपरियागं पाठणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसित्ता सहि भनाई अणसणाए, छेदिना आलोयपडिक्कते उद्भियमल्ले समाहिपत्ते आणुपुव्वे गं कालगए) इसके बाद वे मेघकुमार कि जिन्होंने अनगार श्रमण भगवान महावीर के तथा रूप स्थाविरों के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों को पढ लिया है
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प्रतिपूर्ण - ठीक - १२ बारहवर्ष तक श्रामण्य पर्याय को पाल कर एक मास की संलेखना से अपने आपको कृश कर साठ भक्तों को अनशन द्वारा छेद कर गुरु के समीप अपने पापों की आलोचना कर तथा उनसे प्रतिक्रान्त होकर मायादि शल्यों से रहित हो कर संकल्प त्रिकल्पों से वर्जित संथारो धारणु यो. (तएणं ते थेरा भगवंतो मेहस्से अणगारस्स अग़िलाए drasi करेंति) त्यारमा ते स्थविर, भगवान मनगार भेधहुभारनी भयान लावथी वैयावृत्य अश्वामां पशेवा गया. (नवणं से मेहे अणगारे समणस्स भगओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुन्नाई दुबालसवरिसाई सामन्नपरियागं पाउणिता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं शोसित्ता सद्विभत्ताई अणसणाए छेदित्ता आलोईडिक्कते उद्धियसले संमाहिपत्ते आणुपुब्वेणं कालगए) त्यारमाह भेधकुमार જેમણે અનગારશ્રમણ ભગવાન મહાવીરની તેમજ તથા રૂપ સ્થવિરાની પાસે સામાયિક વગેરે અગિયાર અંગાના અભ્યાસ કરી લીધા છે, બહુ પ્રતિપૂર્ણ ખરાખર ખાર વર્ષ સુધી શ્રામણ્ય પર્યાયને પાળીને એક મહિનાની સલેખનાથી પાતાની જાતને દૂબળી બનાવી ને સાઈઠ ભકતાને અનશન દ્વારા છેઢીને જેમણે ગુરુની પાસે પોતાના પાપાનુ સ્પષ્ટી કરણ કરી લીધું છે, તેમજ તેમનાથી જે પ્રતિક્રાંત થઇ ગયાં છે, ભય વગેરે