Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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शताधर्मकथा मत्रो नुप्रियाणामन्तवासी मेघनामा अनगारः स खलु हे भदन्त ! मघाऽनगारः कालमासे कालं कृत्वा कुत्रगतः ? कुत्र उत्पन्नः ?, 'गोयमाई' हे गौतम ! इति संबोध्य गौतमादीन् श्रमणान् निर्ग्रन्थान् उद्दिश्य श्रमणो भगवान महावीरः भगवन्तं गौतम एवमवदत-एवं खलु गौतम! ममाऽन्तेवासी मेघनामा अनगारः प्रकृतिभद्रको यावद विनीतः, स खलु तथारूपाणां स्थविराणामन्तिके सामायिकादीनि एकादशाङ्गानि अधी ते अधीत्य द्वादशभिक्षुपतिमा:
भंते त्ति भगवं गोयमे इत्यादि टीकार्थ- (भंते) हे भदंत ! इस प्रकार कहकर (भगवं गोयमे) भगवान गौत. मने (समणं भगवं महावीरं वदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी) श्रमण भगवान महावीर को वंदना की नमस्कार किया। वंदना नमस्कार करके फिर उन्होंने इस प्रकार कहा--( एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंते वासी मेहे गोमं अणगारे, सेणं भंते : मेहे अणमारे कालमासे कालंकिच्चा कहि गए कहिं उपचन्ने ? ) देवानुप्रिय आपके अंतेवासी मेघ नामके अनगार थे वे मेघ अनगार कालमासमें काल करके कहां गये हैं कहां उत्पन्न हुए हैं (गोयमाइ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं क्यासी) हे गौतम! इस प्रकार से संबोधित करते हुए श्रमण भगवान महावीरने उन गौतम से ऐसा कहा-(एव खलु गोयमा! मम अंतेवासी मेहेणामं अणगारे पगइभदए जाच विणीए से णं तहाख्वाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइ एक्कारसगाई अहिजई) सुनो मैं कहता हूँ--मेरे
(भंतेत्ति भगवं गोयमे इत्यादि ।
टीकार्थ-(भंते) ९ मत ! मेवी शत समाधान (भगवं गोयमे) जापान गौतभे (समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासी) શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદન અને નમસ્કાર કર્યા. વંદન અને નમસ્કાર કરીને तेभरे मा प्रमाणे ४धु-( एवं खलु देवाणुप्पियाण अंतेवासी मेहे णामं अणगारे सेणं मते ! मेहे अणगारे कालमासे काल किच्चा कहिं गए कर्हि उववन्ने ?) हेवानुप्रिय! भेघ नाभन मना२ तभा२मातेवासी उता. ते मनગાર મેઘકુમાર કાળ માસમાં કાળવશ થઈને ક્યાં ગયા છે? કયાં ઉત્પન્ન થયા છે? (गोयमाइ समण भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी) गौतम! सवीशत समाधान श्रमण नगवान महावीरे गौतमने ह्यु :--(एवं खल गोयमा मम अंतेवासी मेहे णाम अणगारे पगइभदए जाव विणीए सेण तहा रूवाण थेराण अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ )
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