Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामतवर्षिणीटीका अ.११.४१ मेघमने हन्तिभववर्णनम 'पानीय पास्यामाात कृत्वा चिन्तायत्ता हत्थं' हस्त=शुण्ड प्रसारयास, अथापिच 'ते हत्थे' ते तव हस्तःशुण्डादण्डः उदकं जलंन प्रामोति, ततः खलु हे मेघ !त्वं पुनरपि 'कार्य' स्वशरोरं 'पञ्चद्धरिस्सामि' प्रत्युद्धरिष्यामिनिष्का शयिष्यामीति कृत्वा विचार्य 'बलियतराय' बलिकदरं गाढतरं-'पंकसि' पङ्कमहाकर्दमे 'खुत्ते' निमग्नः, 'खुत्ते' इति देशीय शब्दः, त्वं परिवारवियोग प्राणनाशशंकाशरीरकष्टोधसह्य नानाविधवेदनामनुभवन्नासीरितिभावः। ततः खलु हे मेघ ! 'तुमे' त्वया तस्मिन्नेवभवे 'अन्नया कयइं' अन्यदाकदाचित अन्यस्मिन् कस्मिंश्चित् समये पूर्वमिन काले इत्यर्थः, कामभोगासक्तया 'एगे' एकः कश्चिदेकः कलभः चिरनिजढे' चिरनियूढः-चिराद्-बहुका लात नियूंढ: निष्कासितः, 'गयवरजुवाणए' गजवरयुवा-तरुणो महागना, पत्त अंतरा चेव सेयसि विसन्ने। तोरसे भिन्न स्थान पर वर्तमान होने के कारण पानी को नही पी सके और बीच में ही उस सरोवर के महा. पंक में तुम निमग्न हो गये। (तत्थ णं तुम मेहा । पाणियं पास्सामि तिकटु हत्थं पम्गरेसि) वहां पर हे मेघ ! तुमने इस विचार से कि मैं पानी प्राप्त कर पीलूगा अपने शुडादण्ड को फैलाया-(से वि य ते हत्थे उदगंनपावइ) परन्तु वह शुण्डादंड पानी नहीं पा सका-अर्थात् पानी तक नहीं पहुच सका। (तएणं तुमं मेहा। पुणरवि कार्य पच्चुध्दरिम्सामित्ति कटु बलियत राय पंकंसि खुते) इसके बाद हे मेघ ! तुमने इस बिचार से कि मैं यहां से फंसे हुए अपने शरीर को निकाल लगा ज्यों ही उठने का प्रयत्न किया कि वैसे ही तुम गाढतर कीचडमें और अधिक फस गये । (तएणं तुम मेहा। अन्नयाकाई एगे सयाओ जहाओ करचरण दंतमुसल. महगए पाणीय असंपत्ते अंतरा चेव सेयंसी विसन्ने) नाराथी 7 स्थाने હોવાના કારણે તમારે માટે પાણી પીવું અશક્ય થઈ ગયું હતું. તમે ત્યાં સરેવરના हमासा गया al. (तत्थणं तुम मेहा! पाणियं पास्सामिति कह हत्थं पसारेसि.) हे भेध ! त्यो मां: भूपामेला तमे पाली भगवाना प्रयलमा सूने मापान (से विय ते हत्थे उदगं न पावइ) पण तमारी सूट पाणी મેળવવામાં અસમર્થ જ રહી. એટલે કે પાણી સુધી તમારી સુંઢ પહોંચી શકીજ નહીં (तएणं तुम मेहा ! पुणरवि कार्य पच्चुध्दरिस्सामित्तिक्टु बलियतरायं पंकसि खुत) त्या२ पछी भेध ! तमे हम पूया गया पोताना शरी ने महार કાઢવાને વિચાર કરીને જ્યારે કાદવમાંથી મુક્ત થવા પ્રયત્ન કર્યો ત્યારે તમે કાદमां पडखi ४२०i qधारे या गया. (तएणं तुमे मेहा! अन्नया कयाई
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