Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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शाताधर्म कथाङ्गसूत्रे म्भाहए ममाणे' पराभ्याहना पराभूनः-गांडितः सन् , भीतः, स्तः, त्रासितः, उद्विग्नः, संजातभयः, सर्वतःसमन्तात 'आधावमाणे परिधावमाणे पलायमानःपलायमानः एकं च खलु महत् सर-तडागं 'अल्योदय' अल्पोदकं स्वल्पजलं 'पकबहुलं' पङ्कबहुलं-कर्दमप्रचुरम् 'अतित्थेणं' अतीर्थन उन्मार्गग पाणियं पाएउं' पानीयं पातुं पानीयपानार्थ 'ओइन्ने' अवतीर्णः गतवान् । ततः स्खलु हे मेघ! त्वं तीरमइगए तीरमतिगतः तटमतिक्रान्तः पाणियं असंपने पानीयमसंपातः 'अंतरो चेव' अन्तरा चैव-मध्य एव 'सेसि' तमिन्= सरोवरस्य महापङ्क 'विसन्ने' विषण्ण:निमग्नः । तत्र खलु हे मेघ ! त्वं जर्जरित हो रहाथा। अनेक प्रकार के शारीरिक या मानसिक दुःखों से तुम आक्रान्त हो रहे थे। इधर उधर भागते फिरने से खाने पीने का तुम्हारा कोई यथोचित प्रबंध नही था इस लिये तुम सदा क्षुधा सेपीडित रहा करते थे-प्यास से आकुलित बने रहते थे। बल भी क्षीण हो गया था-इसलिये अधिक दुर्बल दिखलाई पडने लगे थे, नाना चिन्ताओं से सदा तुम व्याप्त बने हुए थे, स्मृति शक्ति भी तुम्हारी क्षोण हो गई थी मैं कौन हूँ कहां घूम रहा हूँ इसका भान तुम्हें नहीं रहा था । इसलिये दिशाओं का ज्ञान तुम्हारा जाता रहा और अपने यूथ रहित होकर तुम वन की दवज्वाला के तीव्र तोप से संतप्त होते हुए उष्णतृष्णा क्षुधा पीडित होते हुए वहुत भयभीत बन गये, त्रस्त हो गये, उद्विग्न हो गये। अतः भय से इधर उधर २ बार दौडते हुए तुम एक बडे भारी तालाब में कि जिस में जल कम था और पंक बहुत था उन्मार्ग से होकर पानी पीने के लिये उतरा। (तत्थ णं तुम मेहा ।) वहां हे मेव । तुम(तीरमइगए पाणीयं असं. હમેશાં તમે ભૂખથી પીડાએલા અને તરસથી વ્યાકુળ રહેતા હતા. તમારું બળ પણ નાશ પામ્યું હતું તેથી તમે વધારે દૂબળા લાગતા હતા. ઘણી જાતની ચિંતાએથી તમે હેરાન હતા. તમારી યાદ-શક્તિ પણ નાશ પામી હતી. “હું કોણ છું? કયાં ફરી રહ્યો છું?” આ જાતની સૂધ બુધ તમારામાં રહી જ ન હતી. એટલા માટે તમારું દિશાજ્ઞાન નષ્ટ થઈ ગયું અને ચૂથ ભ્રષ્ટ થઈને તમે વનના અગ્નિજવાળાઓના તીવ્ર તાપથી સંત થઈને ગરમીથી તરસ્યા અને ભૂખથી પીડિત થઈને ખૂબ ભયગ્રસ્ત થઈ ગયા. ભયભીત થઈ ગયા અને ઉદ્વિગ્ન થઈ ગયા તેથી બીકથી આમતેમ વારંવાર નાસતા ફરતા તમે ઓછા પાણુવાળા અને ખૂબજ કાદવ યુક્ત એક મેટા તર્ગવમાં ઉધે તે (ઉન્માગ) यी पाणी पौवा माटे उता. (तत्थणं तुम मही!) . भेध ! त्यो त (तीर
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