Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतबर्षिणी टीका अ. १ स. ४१ मेघमुनेहन्तिभववर्णनम् ४७७ त्वमासातवापागच्छात, उपागत्य स्वां तीक्ष्णः दन्तमुशलेः त्रिकृत्वः= त्रिवारं पिडओ' पृष्ठतः पृष्ठप्रदेशे 'उच्छु भइ' अपक्षिपति प्रहरति=विध्यति अपक्षिप्य, महारं कृत्वा पूर्ववैरं निजाएइ' निर्यातयति समापयति 'निज्जाइत्ता' निर्याय समाप्य हृष्टतुष्टः 'पाणियं पियई' पानीयं पिबति 'पिबित्ता' पीत्वा यस्या एव दिशःप्रादुर्भूतस्तामेवदिशं प्रतिगतः ततःखलु हे मेघ ! तव शरीरे वेदना प्रादुर्भूता सा वेदना कीदृशीत्याह 'उजला' उन्मला-नीबदुःखरूपतया जाज्वल्यमाना, विउला-प्सकलशरीरव्याप्ता 'तिवा' तीवा-दुःसहा, मूढ हो गया रुष्ट हो गया-अपना कुपित भाव उसने प्रकट कर दिया। नदी के प्रवाह की तरह धीरे२ उसका क्रोध बढ गया। अपना रौद्रस्वरूप उसने स्पष्ट कर दिया-और मिसमिसाता हुआ-क्रोधरूप अग्नि से जाज्व. ल्यमान होता हुआ-जहां तुम पहिले से ही कीचड में फसे थे वहा आया। (उवागच्छित्ता तुम्हं तिक्खेहिं दंतमुसले हिं, तिखुत्तो पिठो उच्छुभइ) आकर उसने तुम पर तीन वार तीक्ष्णदंतरूपमुसल के पहारों से पीछे के भाग में प्रहारकिया (उच्छुभित्ता पुव्ववे निजाएइ) प्रहार करके उसने अपना पूर्वका वैर लिया (निज्जाइत्ता हतुढे पाणियं पिवइ) इस प्रकार अपने पूर्व के वैर का बदला लेने पर वह विशेष आनन्द मग्ग बन गया और फिर उसने शांति के साथ वहां पानी पिया (पिबित्ता जामेवदिसिं पांउब्भूए तामेव दिसि पडिगए) पानी पी कर बह जिस दिशा की और से पाया था उसी तरफ वापिस चला गया। (तएणं तवमेहा! सरीरगंसि. वेयमा पाउभविस्था) बाद में हे मेघ ! तुम्हारे शरीर में बडी भारी वेदना સ્મૃતિ થતાંજ તે જલદી કે ધાવિષ્ટ અને રુષ્ટ થઈ ગયું. પિતાને ક્રોધાવેશ તેણે પ્રકટ કર્યો. નદીના પ્રવાહની જેમ તેને કૈધ વધી ગયે. પિતાનું ક્રૂર સ્વરૂપ બતાવતાં વિફરીને કેધરૂપી અગ્નિની જવાળાઓથી સળગતું વયાં તમે કાદવમાં ખૂપાએલા
ता त्या माव्यु. (उवागरिछत्ता तुमं तिक्खेहिं दंतमुसले हिं, तिक्खा पिट्टओ उच्छुभइ) भावाने त्र मत तमारा पाना भी तीक्ष्य तथा भूसना प्रारो ४ा. (उच्छुभित्ता पुबवेरं निज्जाएइ) 8२ ४शन तेथे पोतार्नु पडलानु ३२ पाण्यु. (निज्जाइत्ता हत पाणियं पिषइ) 24प्रमाणे ३२ વાળીને તે સવિશેષ આનંદિત થઈ ગયું, અને ત્યાર બાદ તેણે સુખેથી પાણી પીધું. पिबित्तो जामेव दिसि पउन्भूए तामेव दिसि पडिगए) पाणी पाया मारे त२३थी ते मान्य तु ते त२३ पाछु भयु. (तएणं तब मेहा ! सरीरगंसी वेयणा पाउन्भवित्था) त्या२ मा भेध ! तमारा शरीरमा अत्यन्त वहना
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