Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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शाताधर्मकथासूत्रे तेोऽयमिति सत्कृतवन्तः, 'सम्माणति' सम्मानयन्ति='सद्गुणसम्पन्नाऽय' मितिमत्वा सम्मानितवन्तः, 'अट्ठार' अर्थान-मोक्षकारणीभूतान् सम्यग दर्शनादीन् 'हेऊई हेतून, तत्र हेतवःप्रतिज्ञाहेतुदृष्टांतापनयनिगमनरुपपंचावयववाक्यरूपाः तथाहि-'संयमग्रहणं समुचितामति प्रतिज्ञा, 'सकलकर्मक्षयकारक हेतुत्वा' दितिहेतुः, 'तीर्थकरादिव'दिति दृष्टान्तः, यद् यन्मोक्षहेतुत्वं तत्तन्मा क्षार्थिभिराचरणीयं यथा प्रशामसंवेगादिकं, तथा च "भवतः संयमग्रहणमुचित' मित्युपनयः, तस्मात् मोक्षहेतुत्वाद् भवतः संयमग्रहणमावश्यकामातइस प्रकार से मुझे जानते थे 'यह बड़ा विनीत है' ऐमा जान कर मेरा सत्कार करते थे। यह सद्गुणों से संपन्न हैं 'ऐसा मान कर मेरा सन्मान करते थे(अट्ठाई हेऊई पसिणाइं कारणाई वागरणाई आइ क्खंति इटाहि कंताहिं वग्गूहि आलवेति, संलति) अर्थोंकों हेतुओंको, प्रश्नोंकों, कारणोंकों व्याकरणोंको, स्पष्ट करते थे और इष्ट,, काँत वाणियो से मुझसे आलाप करते थे संलाप करते थे। माक्ष के कारणभूत सम्यग्दर्शन आदिगुण यहाँ अर्थपद से ग्रहण किये गये हैं। तथा प्रतिज्ञा हेतु उदाहरण उपनय एवं निगमन ये अनुमान के पंचावयवहेतुपद से। मतलब इसका यह है कि मेघकुमार अपने मनमें यह विचार कर रहे है कि में गृहस्थावस्था में जय था तो साधुजन मुझ से यह कहा करते थे कि 'तीर्थंकरादिको की तरह आपको संयमका ग्रहण करना सकलकर्मों के क्षयका कारक होने से उचित है। जो२ सकल कमों के क्षय कराने में हेतुभूत होता है वह२ मोक्षार्थियों द्वारा आवश्य आचरणीय होता है जैसे प्रशमसंवेग आदि भाव युत छ” साम तणीने भार सन्मान ४२ता उता. ( अट्ठाई हेऊई पासिणाई कारणाई वागरणाइ आइक्वंति इटाहिं कंताहिं वग्गृहिं आलति संलति) सानु तुमनु, प्रश्नानु, १२णानु, सारी ते स्पष्टी४२५ २ता हु. ४ અને કાંત વચનથી મારી સાથે આલાપ કરતા હતા, સંલાપ કરતા હતા. (મેક્ષના કારણભૂત સમ્યગ દર્શન વગેરે ગુણ અહીં અર્થપદ વડે ગ્રહણ કરવામાં આવ્યા છે) તેમજ પ્રતિજ્ઞા, હેતુ, ઉદાહરણ અને નિગમના અનુમાનના આ પંચાવયવ હેતુપદ વડે મતલબ એ છે કે મેઘકુમાર પિતાના મનમાં–આ પ્રમાણે વિચાર કરી રહ્યા છે કે હું ગૃહસ્થ અવસ્થામાં જ્યારે હતી ત્યારે સાધુજને મને કહેતા હતા કે “સઘળા કર્મોને વિનાશ (ક્ષય) કરનાર હોવાથી તીર્થકર વગેરેની જેમ તમારે સંયમ પાળ ઉચિત છે. જે સઘળા કર્મોને ક્ષય કરવવામાં કારણભૂત હોય છે. તે મોક્ષની અભિલાષા રાખનારાઓ દ્વારા ચકકસ રીતે આચરણ કરવા યોગ્ય હોય છે. જેમ પ્રથમ
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