Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ.१सू ४० मेघमुने हस्तिभकरणम् कुच्छा' अलम्बकुाक्षः-हस्वादरःसंकुचितत्वात् पल बलंबादराहरकरे' प्रलम्ब लम्बोदराधरकरः. तत्र प्रलम्बअधः पलम्बितं लम्ब-लम्बितं च उदरम् अधरः-अधरोष्ठः, करः शुण्डादण्डश्च यस्य सः अधः प्रलम्बेनोदराधरोष्ठशुण्डादण्डवान् इत्यर्थः, 'धणुपट्टागिइविसिटपुट' धनुष्पृष्ठाकृतिविशिष्टपृष्ठःधनुषः पृष्ठं धनुः पृष्ठं तस्या कृतिवद् विशिष्टं प्रशस्तं पृष्ठं यस्य सः सुंदर पृष्ठवान् इत्यर्थः 'अल्लिणपमाणजुत्तवटियापीवरगत्तावरे' आलीनप्रमाण. युक्तपत्तकपीवरगात्रापरः, तत्र आलीनानि-सुसंघटितानि प्रमाणयुक्तानि प्रमाणोपेतानि वृनकानि-गोलाकाराणि पीवराणि-पुष्टानि गात्राणि अपराणि दन्तकपोलकर्णादीनि यस्य सः तथा, 'अल्लिणपमाणजुत्तपुच्छे' तत्र आलीनप्रमाणयुक्तपुच्छः, तत्र आलीनः सुसंघटितः प्रमाणयुक्तः पुच्छो यस्य स तथा 'पडिपुन्नसुचारुकुम्मचलणे' प्रतिपूर्णसुचारुकूर्मचरणः प्रतिपूर्णाः सुचारवः =मुंदराः कूर्मवत् चरणा यस्य सः, सम्पूर्ण सुंदर कूमपृष्ठवदुन्नतचरणअर्थात् मांसल था--पुष्ट था--(अलंबकुच्छि ) तथा ह्रस्व था। (पलब लंबोदराहरकरे ) नीचे की ओर लंबा लटकता था। इसी तरह के तुम्हारे अधरोष्ट और शुण्डा दंड थे। (धणुपट्टागिइपिसिहपुढे) तुम्हारा पृष्ठ प्रदेश धनुष के पृष्ठ प्रदेश की आकृति के समान विशिष्ट रूप से प्रशस्त , था। (अल्लीणपमागजुत्तवट्टयपीवरगत्तावरे ) तुम्हारा दंत कपोल, कर्ण, आदि रूप अपर शरीर सुसंघटित था, प्रमाणोपेत था, गोल था, और परिपुष्ट था। (अल्लोणपमाणजुत्तपुच्छे परिपुण्णसुचारु कुम्मचलणे पंडुरमुविसुद्धणिद्धणिरुषहयविसणहे छइंते सुमेरुप्पभे हत्थिराया होत्था) तुम्हारी पुंछ भी प्रमाणोपेत और सुसंघटित थी। तुम्हारे चारों चरण प्रतिपूर्ण, सुंदर और कच्छप के पृष्ठ भाग के समान ते छिद्र २ति तु मेट 3 मांसस तु, पुष्ट हेतु. ( अलंबकुच्छि ) तेमन व (a) तु. ( पलंचलंबोदराहरकरे ) नायनी त२५ खi तु. भावो तमा। नाये। 13 मने सू ती. (धणुपट्टागिइविसिट्ट पुढे ) तभारी पाइन मा धनुषना पीठ प्रशनी सातिनी म सविशेष प्रशस्त हतो. (अल्लीणपमाणजुसवयपीवरगत्तावरे) तमारा giत, पास, अन पोरे तेभा शरी२ना मक्यको सु छता, संप्रमाण हुता, अने परिपुष्ट उता. (अल्लीणपमाणजुत्त पुच्छे परिपुण्णसुचारूकुम्मचलणे पंडु सुविसुद्धणिद्धणिरूवहए विसंणहे छदंते सुमेरूपभे हस्थिराया होत्था) तभा छ ५ सभा भने સુસંઘટિત હતું. તમારા ચારે પગ પ્રતિપૂર્ણ, સુંદર અને કાચબાની પીઠની જેમ
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