Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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शाताधर्म कथाङ्गमत्र आलपन्ति सकृत् , 'संलति' संलात पुनः पुनः, 'जप्पभई च णं' यत्प्रभृति च खलु, यदा-यस्मिन् समये अहं मुण्डो भूत्वा अगारादनगारितां प्रवजितः, तत्पभृति खलु मां श्रमणा निग्रन्थाः नाद्रियन्ते यावन्नो संलपन्ति 'अनुत्तरं च अनन्तरं च खलु अधुना पूर्वरात्रापररात्रकालसमये वाचनाधथे गच्छतां निर्गच्छतां श्रमणनिर्ग्रन्थानां तीबदुःखजनके स्तादि संघट्टादिभिश्च यावन्नशकोमि नेत्रं निमीलयितुं, 'तं से य खलु तच्छ्रेयः खलु मम ‘पाउप्पभायाए' अब मैं नहीं समझता था-अथवा समझाये हुए विषय को भूल जाता था तो वे मुझे बार२ समझाया करते थे । (जापभिइ च णं अहं मुडे भवित्ता अगाराओ अगगारियं पव्वइए तप्पभिई च णं मम समणा नो आढाति जाव नो संलति) परन्तु अब तो वह बात नही रही है- मैं जिस दिन से मुंडित हो कर अगार अवस्था से इस अनगार अवस्था में दीक्षिन हुआ हूँ उस दिन से ये समस्त श्रमण जन न मेरो आदर करते हैं, न बोलते हैंन संलाप करते हैं (अदुत्तरं च णं मम समणा निग्गंथा) तथा दूसरी बात एक और मेरे लिये यह हुई है कि ये श्रमण जन (राओ पुचरत्तावरन्त काल समयसि) जब रात्रि के पूर्व भाग में और पश्चाद्भाग में (वायणाए पुच्छणाए) वाचना पृच्छना (जोव महालियं च णं रत्ति नो संचाएमि अच्छिनिमीलावेत्तए) आदि के लिये यहां से होकर निकलते हैं और आते हैं तो उनके तीव्रतर दुवजनक स्तादि के संघटन से मेरी इतनी बडी यह रात विना निद्रा के ही निकल जाती है-मैं इस स्थिति में एक पलभर के लिये भी आँख की पलक नही अपा सकता हूँ। (त सेयं વિષયને હું ભૂલી જતો હતું ત્યારે તેઓ મને વારંવાર સમજાવતા રહેતા હતા, (जप्पमिदं च णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए तप्प भिइ च णं मम सपणा नो आढायंति जाव नो संलवंति) ५२न्तु वे ते वात કયાં રહી. હું જે દિવસથી મુંડિત થઈને અગાર અવસ્થાથી આ અનાર અવસ્થામાં દીક્ષિત થયે છું તે દિવસથી આ બધા શ્રમજન મારે આદર કરતા નથી, મારા साथे यासत नथी साप पाणु ४२ता नथी. ( अदत्तरं च णं मम समणा निग्गंथा) तेभ०० मी० पात मारे भाटे मा ५Y छ । श्रमसन (राओ पुचरनावरत्तकालसमयसि ) न्यारे त्रिना पूर्व भागमा अनेशविना पा७ भागमा (वायणाए पुच्छणाए) पाना अने छना (जावमहालियं च णं रत्तिनो संचाएमि
अच्छि निमीलावत्तए) योरेने भाटे ही थने महा२ नी छ भने महाરથી અંદર આવે છે ત્યારે તેમના હાથપગની કઠણ સંઘટ્ટન (અથડામણ) થી મારી આટલી બધી મેટી રાત્રિ નિદ્રા વગર જ પસાર થઈ જાય છે. આવી પરિસ્થિતિમાં मे मिनिट भाटे पण निद्रा 25 शत। नथी. :(तं सेयं खलु मम कल्लं
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