Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. अ १ स. ३१ मेघमुनेरात ध्यानप्ररूपणम् ४५१ प्रादुष्प्रभातायां किंचित्प्रकाशयुक्तायां ग्जन्यां यावत्तेजसा जलति उदिते सूर्य इत्यर्थः, श्रमणं भगवन्तं महावीरमापृच्छय चुनरपि अगारमध्ये वस्तुमितिकृत्वा इति मनसि अवधार्य एवं संप्रेक्षते-पर्यालोचयति विचार यतीत्यर्थः, संप्रेक्ष्य 'अदुवमट्टमाणसगए' आत दुः वार्त-वशार्तमान सगतः, तत्र-भातम्= आर्तध्यागतं दुग्वात दुःखपीडित, वशान नवदीक्षिन्वेिन साधुहस्तसंघटनादिरूप न परीषहान सोढुमसमर्थ वात् खेदवशेन आत व्यकुलं मानसं-चित्रं गतःप्राप्तः, संयमपालने विचलितचित्तवान् इत्यर्थः, अतएव 'निरयपडिरूवियं निश्यप्रतिरूपिकांनरकसदृशीं संयमारतिजनित दुःखसाधात तां 'रयणि' रजनीं रात्रि क्षपयति व्यत्येति क्षपयित्वा 'कलं' कल्ये, द्वितीयदिवसे, 'पाउप्पभायाए' प्रादःप्रभातायां संजातपातायां सुविमलायां सुप्रकाशवयां रजन्यां राज्यवसानसमये इत्यर्थः, यारत् तेजसा चलति-उदिते मूर्ये सकल. खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं आपुच्छित्ता पुणरवि अगारमझिं वसित्तए) अतः मुझे अब इसी में अच्छा है कि मैं रजनी के प्रभात प्रायः होने पर और मूर्य के उदित होने पर श्रमण भगवान महावीर से पूछ कर पुनः अपने घर में रहूँ। (ति कह एवं संपेहेइ) इस प्रकार मेघकुमारने अपने मन में विचार किया। (संपेहित्ता अट्टदुहट्टदसट्टमाणसगए) विचार करके आर्तध्यान से युक्त दुःख से पीडित और नवीन दीक्षित होने के कारण साधुओं के हस्तादि संघटन से उत्पन्न परीपहों को सहन करने में असमर्थता की वजह से खेद व्याकुल मन वाले उस मेघकुमारने (गिरयपडिरूवियं च णं तं रयणि रख वेइ) संयम में अरति भाव को उत्पन्न करने के कारण नरक जैसी उस रात्रि को जिस किसी प्रकार से समाप्त किया। (खविना कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं आपुच्छित्ता पुण रवि अगारमज्झ सित्तए) मेटो मा हित भने सामान गाय છે કે રાત્રિ પસાર થાય અને ભગવાન સૂર્ય ઉદય પામે ત્યારે ભગવાન મહાવીરને पूछीन ५२१ पाताना घरमा २. (तिकट्ट एवं संपेहेड) मा शते भेभारे पाताना मनमा विया२ ४ो. (संपेहिता अट्ठदुहवसहमाणसगए) विद्यार કરીને આધ્યાનથી યુક્ત, દુઃખથી પીડાએલ, નવીન દીક્ષિત હોવાને લીધે સાધુએના હાથ વગેરેની અથડામણથી ઉત્પન્ન પરીષહોને સહન કરવામાં અસામર્થ્યને सीध मे युत तेभ०४ व्या मनवा भेभारे (णिरयपडिरूवियं च ण तं रयणि खवेइ ) सयममा मतिनाव G4न्न ४२॥ ४ न२४ वी ते शत्रिने
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