Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. अ, १ सू. ३५ मेघकुमारदीक्षोत्सवनिरूपणम्
णग' वर्धमानकः = शराव चिन्ह विशेषः, ४, 'भदासग' भद्रासनम् = आसन विशेषः५, 'कलस' कलशः=कुम्भः६, 'मच्छ' मत्स्यः = मीनं युग्मं७, 'दप्पण' दर्पण८, 'तयाणं नरंच णं' इत्यादि - तदनन्तरं च खलु 'पुण्णकलस भिंगारा' पूर्णकलशभृङ्गाराः - जलपूर्ण कलशाः, तथा जलपूर्णा भृङ्गाराः दिव्याः छत्रपताकाचमरैः सहिताः तथा 'दंमणरइया' दर्शन रतिदा दृष्टिसुखप्रदा 'आलोइयदरिसणिज्जा' आलोकदर्शनीया = आलो के = दृष्टि विषये क्षेत्रे स्थिता अत्युच्चत्वाद्दूरतोऽपि दर्शनीया 'वाउयविजय वैजयंतीय' वातोइतविजयवैजयन्ता चवायुना प्रचालिता विजयसूचिका वैजयन्ती = पताकाविशेषः, सा वैजयन्ती कीदृशो - इत्याह 'ऊसिया' उच्छ्रिता, ऊर्ध्वकृता तथा - 'गगण तलमणुलिहन्ती'गगनतलमनु लिहती= गगनतलस्पर्शिनी पुरतः यथानुपूर्व्या=क्रमेण संपट्टिया दिशा में नौ कोणो वाला स्वस्तिक विशेष ( बद्धमाणग) वर्धमानक एक शराव रूप चिह्न विशेष ( भद्दासण ) भद्रासन - आसन विशेष, (कलस) कश-कुम्भ ( मच्छ) मत्स्य - - मीनयुग्म, (दप्पण) दर्पण (नया णंतरं इस के बाद ( पुण्णकलसभिंगारा) जलपूर्णकुंभ तथा जल पूर्ण शारा (दिव्यछत्तपडागा सचामर । दंसणरइया आलोयदरिस णिज्जा ) चामर सहित दिव्य छत्र पताकाएं, - - दृष्टि को सुखप्रदान करने वाली तथा दृष्टि के योग्य विषयभूतक्षेत्र में स्थित होने के कारण दूर से दिखलाई पडने वाली (वाउयविजयवेजयंती ) ऐसी वायु से कल्पित हुइ विजय सुचक वैजयन्ती, जो ( उसिया गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुत्रीए संपद्रिया ) बहुत उन्नत थी और इसी कारण जो आकाशतल को छू रही थी। इस प्रकार ये ८ मंगलकारी वस्तुएं यथाक्रम से उन मेघकुमार के आगे प्रस्थित हुइ । ( तयाणंतरंच) इनके बाद विशेष, ( बद्धमाणग) वर्धमान - शराव ३५ यिह्न विशेष, ( भद्दासण ) लट्रीसन-आसन विशेष, (कलस) उणश-डुल ( मच्छ) मत्स्य चिह्न - भीन युज्भ, ( पण ) अरीसा, ( तयानंतरं ) त्यार पछी (पुण्णकलसभिंगारा) પાણી लरेसेो भुजश तेभन पाएगी लरेली आारी, (दिव्वाय छत्तपडागा सचामरा दंसण रइया आलोयदरिसणिज्जा ) यभर सहित दिव्य छत्र गमने धन्लयो, यांगोने સુખ પમાડનારી તેમજ યાગ્ય સ્થાને ગેાઠવાએલી હાવાથી દૂરથી પણ નજરે પડતી (वाय विजय वे जयंती ) पवनथी सडेरानी विनयनी सूथ वैश्यन्ती धन्न हती है ? ( उसिया गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुच्चीए संपट्टिया બહુ જ ઊંચે અને આકાશને સ્પ કરી રહી હતી. આ પ્રમાણે આ આઠે મંગળझरी वस्तुओ भेधठुभारनी भागण प्रस्थापित वामां आवी हुती. ( तयाणं
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