Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटाका. अ.१ सू.३५ मेघकुमारदीक्षोत्सवनिरूपणम् ४०७ सन्तः हृष्ठा : स्नाता यावत् एकाभरण वसनगृहीत नियोगाः यत्रैव श्रणिका राजा तत्रैवोपागच्छत्ति, उपागत्य श्रेणिक राजानमेवमवदन्-संदिशन्तु खलु हे देवानप्रियाः यत् खलु अम्माभिः करणीयम् । ततःखलु स श्रणिको राजा तत् कौटुम्बिकवर-तरुण सहस्रमेवमवदत् गच्छत खलु हे देवानुप्रियाः यूयं मेघकुमारस्य बुलाओ : राजा की इस प्रकार आज्ञा पाकर उन लोगोंने शीघ्र हो ऐसे राज पुरुषों को बुलाया (तएणं कोडुबियवरतरुणपुरिसा सेणियस्स. रन्नो कोडुबियपुरिसेहिं सदाविया समाणा हत्तुट्ट जाव हियगा व्हाया जार एगाभरणगहिय णिज्जोय जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छंति) इसके बाद वे कौटुम्बिक अष्ठ तरुण पुरूष श्रेणिक राजा के मामने उन कौटुम्बिक पुरुषों के द्वारा बुलाये जाने पर बहुत अधिक हर्षित हुए और संतुष्ट हुए। उसी समय उन्होंने स्नान किया काक आदि पक्षियों के लिये अन्नादि देने रूप बलिकर्म आदि क्रियाएँ की। बाद में एक से आभरण एक से वस्त्र पहिन कर और एक जैसी पगडी बांधकर जहां राजा श्रेणिक थे वहाँ आये । ( उवागच्छित्ता सेणियं रायं एवं वयासी) आकर उन्होंने श्रणिक राजा से इस प्रकार कहा (संदियह णं देवाणुप्पिया ! जणं अम्हे हिं करणिजं) महाराज! आज्ञा कीजियेजो कार्य हमारे करने लायक हो उसकी । (तएणं से सेणिए राया तं कोडुबियवरतरुणसहस्सं एवं बयामी) इस के बाद श्रणिक राजाने उन हजार युवा कौटुम्बिकपुरुषों से ऐसा कहा (गच्छह णं देवाणु
सेवाने मोदाव्या. (तएणं कोडुबियवरतरुणपुरिसा सेणियस्सरन्नो कोड बियपुरिसेहिं सहाविया समाणा हट्ठतुट्ट, जाव हियया हाया जाव एगाभरणगहिय णिज्जोय जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उद्योगच्छंति) ત્યાર બાદ તે કૌટુંબિક શ્રેષ્ઠ તરુણ પુરુષે શ્રેણિક રાજાની સેવા માટે કૌટુંબિક પુરુષ દ્વારા બોલાવાતા જાણીને બહુ જ પ્રસન્ન અને સંતુષ્ટ થયા. તેઓએ તરત જ સ્નાન કર્યું. કાગડા વગેરે પક્ષીઓને અન્ન અર્પણરૂપ બલિકમ કર્યું. ત્યાર પછી એક જેવા આભરણ એક જેવા વસ્ત્ર પહેરીને, અને એક જેવી પાઘડીઓ બાંધીને श्रेणि: २०nनी पासे गया. (उवाच्छित्ता सेणियं रायं एवं वयासी) त्यांने श्रेणि २ तेभो ४युं :-(संदिसह णं देवाणुप्पिया ! अ.गणं अम्हेहिं करजिज)भडारा ! भारे हाय आमनी माज्ञा मापा. (तएणं से सेणिए राया तं कोऽवियवरतरुणसहस्सं एवं वयासी) त्या२ मा श्रYि२०ये २ औ मि४ युवान ५३षाने ४घु (गच्छहणं देवाणुप्पिया ! मेहस्स कुमा
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