Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टाका. अ. १ सु.३७ मेघकुमारदीक्षोत्सवनिरूपणम् देवानुप्रियाः ! शिष्यभिक्षाम्, ततः खलु स श्रमणो भगवान महावीर : मेघकुमारस्य मातापितृभ्यामेवमुक्तः सन् 'एयम सम्मं पडिसुणे:' इमं अर्थ सम्यक्र प्रतिशृणोति - सर्व विरतिलक्षणं प्रव्रज्या दानरूपं सम्यक् मकारेण प्रतिभृणोतिस्वीकरोति । ततः खलु स मेघकुमारः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिकाद उस पौरस्त्यं दिग्भागम् ईशानकोणम्, अपक्रामति गच्छति, अपक्रम्य गत्वा स्वयमेव आभरणमाल्यालङ्कारम् 'ओमुबई' भवमुञ्चति=त्यजति ततःखलु तस्य
कुमारस्य माता हंसलक्षणेन पशाटकेन आभरणमाल्यालङ्कारं प्रतीच्छति . पडिच्छंतु णं देवाणुपिया सिस्सभिक ) अतः हम आप देवानुप्रिय को शिष्य को भिक्षा देते हैं । आप इस शिष्य भिक्षा को स्वीकार करें । ( एणं से समणं भगवं महावीरं मेहस्स कुमारस्स अम्माविकए एवं ते समाणे एयमहं सम्मं पडिसुणेइ ) इसके बाद वे श्रवण भगवान महावीर मेघकुमार के माता पिता से इस प्रकार कहे जाने पर मेघकुमार के लिये इस अर्थ की स्वीकारता प्रदान कर देते हैं-- अर्थात् दे देते हैं - (तपणं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिया उतरपुरथिमेदितिभागे अवक्कमइ ) इसके बाद वह मेघकुमार श्रमण भगवान महावीर के पास से ईशानकोण की और गया (अवक्कमित्ता समयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुग्रह) वहां जाकर उसने अपने आप ही आभरण माला तथा अलंकारो को अपने शरीर से उतार दिया (तपण से मेहस्स कुमारस्स माया हेमलक्खणेणं पडसाड रणं आभरण पच्छिंतु णं देणुपिया सिस्सभिक ) येथी तभने अमे मा शिष्यनी लिक्ष साथीसे छीखे तमे मा लिक्षाना स्वीअर शे ( तरणं से समणे भगवं महाबीरे मेहस्स कुमारस्स अम्मापिऊएहिं एवंवुत्ते समाणे एयमहं सम् पडिमुणे ) त्यार माह भेधभारना भाता पिता द्वारा भी प्रमाणे वाम આવેલા શ્રમણ ભગવાન મહાવીર મેઘકુમારને સ્વીકારે છે એટલે કે સીરિત રૂપ પ્રત્રજ્યાનું દાન અમે એને આપીશુ આ પ્રમાણે પોતાની અનુમતિ દર્શાવે છે. ( तण से मेहेकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ उत्तर पुरस्थिमे दिसिभागे अवक्कम ) ત્યાર માઢ મેઘકુમાર શ્રમણુ ભગવાન महावीर पासेथी शान तर गया. ( अवक्कमित्ता समयमेव आभरण महालंकारं ओमुयइ ) त्यां ने भेधभारे पोतानी भेजेन आत्मरशु, માળા તેમજ खस अरोने शरीर उपरथी उतारी हीघा ( तरणं से मेहरम कुमारस्स माया हंस
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