Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनगारधर्मामृतबर्षि टीका. अ १ . १६ अकालमेघदोहदनिरूपणम् देवागमनस्य द्वितीयपकारोऽपि वर्ण्यते-'ताए उकिटाए' तया उत्कृष्टया= उत्कर्षयुक्तया प्रसिद्धोत्तमगत्येत्यर्थः, 'तुरियाए' त्वरितया 'मम मित्रं किमर्थमां स्मरति' इति व्याकुलता युक्तया 'चवलाए' चपलया 'निज मित्रकार्य दुततरं करिष्यामी' ति कायतोऽपि 'चवलाए' चंचलया, 'चंडाए' चण्डया पबलया मित्रविरहस्य दुःसहरूपतया प्रबलया, 'सीहाए' सिंहया सिहवत् प्रबलघलयुक्तया 'उद्धयाए' उतया 'झटिति मित्रमिलनं भवेत्' इत्युद्धावमानया 'जइणीए' जयिन्या मित्र
आगमन का दूसरा प्रकार इसतरह से भी वर्णित हुआ है-(ताए उक्किटाए तुरियाए चवलाए चांडाए सीहाए उर्षयाए जहणीए छेयाए दिखाए देवगइए) जय वह देव अभयकुमार के पास आया था तो उसकी वह दिव्य गति कैसी थी-इसीका वर्णन इस मूत्रांश द्वारा किया गया हैंमुत्रकार कहते हैं-कि उसकी वह दिव्यगति उत्कृष्ट, त्वरित, चपल, चंड, सिंह, जैसी उद्धृत जयिनी, छेक एवं दिव्य थी। क्यों कि देवके मनमें ऐसो प्रबल भावना उठ रही थी कि मैं कब, जाकर अभयकुमार को देखलू-अतः वह गति उत्कर्ष युक्त थी। मेरा मित्र मुझे क्यों स्मरण कर रहा है-क्या कारण है इस तरह की विचार से उसकी गति में त्वरा
आ गई थी मैं अपने मित्र का कार्य बहुत शीघ्र ही कर दंगा-वहां पहुच तो पाऊँ-इस तरह की भावना से उस के शरीर में भी चंचलता आजाने के कारण वह गति भी नचल हो गई थी। अभयकुमार की स्थितिका ख्याल कर उस देव को उभा विरह असह्य हो रहा था। अतः उपकी गति में प्रबलता आगई थी। मिह की जैसी गति बलपिष्टि (नाप उक्ट्ठिाए तुरियार चबलार चडाए सीहाए उभुयाए जइणीए छेपा : दिवाए देवगइए) समयभारनी साभे प्रथती पते पनी हव्याति श्री હતી એજ વર્ણન સૂત્રકાર આ સૂત્રશદ્વારા કરે છે–તેઓ કહે છે કે–દેવની દિવ્યगति 'ट, (वरित, २५स, 13, A वी द्धत. यिनी (न्यशीl) छ भने દિવ્યહતી. દેવના મનમાં એવી પ્રબળ ભાવના જાગી હતી કે કયારે હું અભયકુમારને મળું એટલા માટે જ તે ગતિ ઉત્કૃષ્ટ’ હતી. મારે મિત્રમાર્કેમ સ્મરણ કરી રહ્યો છે એવા વિચારોને લીધે તેની ગતિમાં ત્વરા (શીવ્રતા) આવી ગઈ હતી. ત્યાં જતાંજ હું મારા મિત્રનું કામ ઝડપથી કરી આપીશ. આ જાતના વિચારોથી તેની ભાવનામાં રૂર્તિનું સંચરણ થયું હતું તેથી જ તેની ગતિ પણ ચંચળ થઈ ગઈ હતી. અભયકુમારની હાલતને વિચારતાંજ દેવને તેને વિરહ અસહ્ય થઈ પડયે હતો, એથી જ તેની ગતિમાં પ્રબળતા આવી ગઈ હતી. સિંહ જેવી ગતિ બળશાલી હોય છે, તેની ગતિ પણ સિંહ
For Private and Personal Use Only