Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्म कथा । मूलम्-तएणं से अभए कुमारे जेणामेव पोसहसाला तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुव्वसंगइयं देवं सकारेइ सम्माणेइ सका. रित्ता सम्माणित्ता पडिविसज्जइ । तएणं से देवे सगजिवं पंचवन्नं मेहनिनाओवसोहियं दिव्वं पाउससिरि पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए ॥१८ सू०॥ ___टीका-'तएणं से इत्यादि । ततः खलु स अभयकुमारः, यत्रैव पौषधशाला तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य पूर्वसंगतिकं देवं सत्करोति नमस्कारादिना, संमानयति-मधुरवचनादिना, सत्कृत्य संमान्य, प्रतिविसर्जयति-अनुगमनादिना । तप्तः खलु स पूर्वसंगतिको देवः स गर्जितां पञ्चवर्णमेघनिनादोपशोभितां दिव्यां प्राष्ट्रिय प्रतिसंहरति अन्तहितां करोति, प्रतिसंहृत्य यस्या एव दिशः पादुः भूतस्तामेवदिशं प्रतिगतः ॥मू० १८॥ 'तएणं से अभयकुमारे' इत्यादि
टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद (से अभयकुमारे) वह अभयकुमार (जेणामेव पो सहसाला तेणामेव उवागच्छइ) जहां पौषधशाला थी वहां आया (उवागच्छित्ता पुव्वसंगइयं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ)-जाकर उसने उस पूर्व संगतिक देव का सत्कार और सन्मान किया (सक्कारित्ता सम्माणित्ता पडिविसज्जई) सत्कार और सन्मान करने के बाद फिर उसने उसे बिदा दी. (तएणं से देवे सगजियं पंचवन्नं मेहनिनाओबसोहियं दिव्वं पाउससिरि पडिसाहरइ) इसके बाद उस देवने सगर्जित, पंचवर्ण विशिष्ट तथा मेघों किगर्जना से उपशोभित उस दिव्य प्रापश्री वर्षाकाल की शोभा को अन्तर्हित कर दिया। (पडिसाहरित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए)
'तएणं से अभयकुमारे' इत्यादि
210-(तएणं) त्या२पछी (से अभयकुमारे) समयमा२ (जेणामेव पोसहसाला तेणाव उवागच्छइ) त्यां पौषधशा ती त्यां गया. (उवागच्छिना बुव्यसंगइयं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ) ने तेभो पूर्व साति: हेनुसन्मान भने सत्४१२ ४या. (सक्कारिता सम्माणित्तो पडिविसज्जइ) स४२ भने सन्मान ध्या पछी तेयाये तेभने विहाय या. (तएणं से देवे सगज्जियं पंचवन्नं मेहनिना
ओवसोहियं दिव्वं पाउससिरि पडिसाहरइ) (२०६ हेवे सात, पाय वा तेभमेधा माथी अमित ते प्रावृषश्रीन मन्तात ४३ al. (पडि.
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