Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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शाताधर्मकथागसूत्रे प्रत्यय-संमानहेतोः, 'कोउहल्ल वत्तियं कौतूहलपत्ययं अपूर्ववस्तु दर्शनार्थमिति भावः। केचन 'असुयाई' अशुतानि, 'सुणिस्सामो' श्रोष्यामः इति हेतोः इत्यत्र, ऽबोध्यम्। 'मुयाई' श्रुतानि, निस्संकियाई' निःशङ्कितानि, 'करिम्सामो' करिया:, 'अप्पेगइया' अप्ये के-केचन, मुंडा' मुण्डा: 'भवित्ता' भूत्वा आगाराओ अगारात्-गृहात. 'अणगारियं' अनगारितांसाधुता पवइस्सामो' पत्रजिष्याम:=प्रापयामः अप्पेगइया' अप्ये के-केचन 'पंचाणुव्वइयं पश्चात तिकं, 'सत्तसिक्खाइयं' सप्तशिक्षावतिकम् , एवं 'दुवालमविह' द्वादविधं गिहिधम्म' गृहिधर्म ‘पडिव जिस्सामो' प्रतिवजिष्याम: स्वीकरिष्याम: इति हेतोः, तथा अप्पेगइया' अप्ये के-केचन 'जिणभत्तिरागेणं' जिनक्ति रागेण= आराधना करना इसका नाम पूजा है ।(अप्पेगइया तकारवत्तिय) कितनेक उनका सत्कार करने के लिये कितनेक(अप्पेगइया सम्माणवनियं)सन्मान करने के लिये कितनेक(अफेगहया वोउहल्लवत्तिय) अपूर्व वरतु के देखने की उकासाकी निवृति करने के लिये, कितनेक (असुयाई ) अश्रुत वस्तुका (सुणिस्सामो) श्रवण करना प्रभु के पास प्राप्त होगा इसके लिये कितनेक (सुयाई निम्संकियाई करिस्सामो) महामाओं के मुख से पहले सुनी गइ बात प्रभुके निकट शंका रहित हो जायगी ईमके लिये (अप्पे गइया) कितने क (मुंडा भविना आगाराओ अणगाग्यिं पचइस्सामो) इस भावना से प्रेरित होकर कि मुंडित होकर प्रभुके पास गृहस्थ से अबमनिपद धारण करेंगे इसके लिये (अप्पे गडा पंचाणुवइयं मत्त सि. वश्वावइयं दुवालसविहं निहिधम्भं पाडवजिग्सामो) कितनेक पंच अणुव्रतों को मात शिक्षात्रतों को इस तरह १२ प्रकार के गृहस्थ धर्म को प्राप्त करेंगे इसके लिये, (अप्पे गइया) कितनेक, (जिणभत्ति रागेण) काल ४२वा माटे, 3213 (मम्मागवत्तिय) सन्मान ४२वा भाटे, ८सा (को उहल्लवनियं) महमुत वस्तुने नेवानी &ाना उपशमन भाटे, ६८३ (असुयाई )२मश्रुतस्तुनु (सणिस्सामो) श्रव प्रभु पासे प्राप्त थरी, अर्थात् पूर्व तत्त्व सांगवामा ८॥ (मुयाई निस्संकियाई करिस्सामी) olon भाडात्मान्य'नी पासेथी मणी वात प्रभुनी पासे ५॥ २हित २ भाटे, (अप्पेगइया) टा(हुंडा भविता) आगाराओ अणगारियं पव्व इस्सामो) भावनाथी प्रेशन भुजित थाने प्रभुनी पासे ६२५ भटीने हुवे भुनियह ए ४२५ से भाटे, (अप्पेगइयापंचाणुवइयं सत्त सिकावावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पंडिवज्जिस्सामो) કેટલાક પાંચ અણુવતેને સાતશિક્ષા વ્રતને આ રીતે ૧૨ પ્રકારના ગૃહસ્થ ધર્મને पा२९५ प्रशने श्रा५४५ २४ी। शु. से टे (अपेगइया) १८८४ (जिणभत्ति रागेण)
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