Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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कारियाहिं ) - ( पन्नवे माणा )
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ज्ञाताधर्मकथाङ्गमंत्र
दीनवचनेन पुनः पुनर्विज्ञसिपूर्वक कथनेव, अत्र विषयानुकूलाभिराख्यानादिरूपाभिश्चतुर्विधाभिर्वाग्भिरिति भावः, 'आघबित्तएवा' आख्यातुं वा, 'पन्नचित्तए वा' प्रज्ञापयितुं वा 'सन्नवित्तए वा' संज्ञापयितुं वा, 'विन्नवित्तए बा' विज्ञापयितुं वा न शक्तः' इति पूर्वेण सम्बन्धः । यदा मातापितरौ = धारिणी देवी श्रेणिको राजा व स्वपुत्रं विषयानुकूलाभिराख्यानादिभिः प्रतिबोधयितुं=पत्रज्यातो निवर्तयितुं न शास्नुतः स्मेतिसंक्षिप्तार्थः ताहे' तदा 'विसयपडिकूलाहिं' विषयपतिकूलाभिः =विषयभोगविरोधि- तपः संयम संबन्धिनीभिः 'तपः= संयमपालनं सुदुष्कर' मित्यादिभिर्वाग्भिरित्यर्थः, 'संजमभ उच्वेयकारियाहिं' संयम भयो द्वेगकारिकाभिः = संयमपालने परीप होपसर्गसहनप्राधान्येन तस्कृत क्लेशसं भावित भयोद्वेगप्रदर्शनीभिरित्यर्थः, 'पन्नवणाहिं पन्नवेमाणा' प्रज्ञा पनाभिः प्रज्ञापयन्तौ, एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादिष्टाम् उक्तवन्तौ इदं खलु रूप प्रेम पूर्वक किये - पुनःपुन दीन वचनो से अथवा बार २ विज्ञप्तिपूर्वक कथनों से (आत्तिए वा) कहने के लिये (पन्नवित्तए वा ) प्रज्ञापना करने के लिये ( सन्नवित्तएवा) अच्छी तरह समझाने के लिये (विन्न वित्तएवा) निवेदन करने के लिये (नो संचाएंति) समर्थ नही हुए अर्थात्धारिणीदेवी और राजा श्रेणिक विषयानुकूल करनेवाली आख्यानादिरूप वाणियोंद्वारा मेघकुमार को जब प्रव्रज्याग्रहण करनेकी भावना से विचलित करने के लिये समर्थ नही हो सके ( तोह ) तब वे (विसयपडिकूलाहिं) विषयभोग विरोधी ऐसी (पन्नवणाहि ) तप संयम संबंधी वाणीयों द्वारा तपः संयम का आराधन बहुत ही दुष्कर हैं इत्यादिरूप वचनों द्वारा(संजम भवेयकारियाहिं) कि जो उसे संग्रम में भय तथा उद्वेग उत्पन्न कराने वाली थी (पन्नवेमाणा) समझाते हुए ( एवं क्यासी) इस प्रकार तेभ ४ वारंवार भने अस्थी विज्ञप्ति पूर्व अथनथी, ( आधविनए वा ) उडेवाभ (पन्नवित्त वा ) प्रज्ञापना श्वामां ( सन्नवित्तए वा ) सारी रीते सभन्नaai ( विन्नचित्त वा ) निवेदन खाभां (नो संचाएंति) तेथे अन्ते
સફળ ન જ થયા, એટલે કે ધારિણીદેવી અને રાજા શ્રેણિકની સંસારના ક્ષણભંગુર
વિષયા તરફ વાળનારી વાણી મેઘકુમારને પ્રવ્રજ્યા ગ્રહણ ४रवामां समर्थ न था। शही. ( ताहे ) त्यारे तेथे। विषय लोग विरोधी शेवी ( पन्नवणार्हि ) तप-संयमनी
કરવાની ભાવનાથી ચલિત (विसयपडिकूलाहिं ) वाणी द्वारा तथ अने
संयमनी आराधना अत्यन्त उठागु छे, वगेरे वथनो द्वारा ( संजम भउब्वेय
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भेधदुभारना संयममां लय भने उद्वेग उत्पन्न ४२नारी हतीसभलवतां ( एवं वयासी) आ प्रमाणे उडेवा साभ्यां
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