Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ१ स २४ महावीरसमवसरणम् क्षत्रिया: राजवंशजाः, 'माहणा' ब्राह्मगाः, 'भडा' भटाः शूराः, 'जोहा' योधाः, 'मल्लई' मल्लकिनः गणराजविशेषाः, 'लेच्छई' लेच्छकिनः-गणराजविशेषाः, 'अन्ने य बहवे' अन्ये च बहवः, 'राईसरतलवरमाडंबियकोडुवियइन्भसेटिसेणावइसत्यवाहपभियो' राजेश्वरतलघरमाइंबिककौटुम्बि केभ्य श्रेष्ठि सेनापतिसोर्थवाहप्रभृतयः सन्ति तेषु 'अप्पेगइया' अप्येककाः अप्येके अन्येऽपि च, वंदगवत्तियं चन्दन प्रत्यय वन्दन हेतो, 'अप्पेगइया' अप्येके केचन, 'पूयणवत्तियं' पूजनप्रत्ययं पूजनहेतोः वाङ्मनः कायानां निरवद्य क्रियाभिराराधनं पूजनम्, 'एवं' सकारवत्तियं' एवं सत्कारप्रत्ययं-सत्कारहेतोः, 'सम्माणवत्तिय संमानमाहणा, भडा, जोहा, मल्लई, लेच्छई, अन्नेय बहवे, राईसर तलवर मांडविय कोडुंबिय इससेट्टियसेणावइसत्यवाहप्पभियओ-अप्पेगइया वंदणबनियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं एवं सका वत्तियं सम्माणवत्तियं) इत्यादि पाठ से गृहीत उग्रपुत्र, भोगपुरुष कि जिन्हें ऋषभदेवने गुरुस्थान पर स्थापित किया था, भोगपुत्र, राजन्य भगवान् के वंशज-क्षत्रिय
राजवंशज मारण-ब्राह्मण-भट शूरवीर योधा, मच्छ-मल्लकी-लेच्छकी गणराज विशेष तथा और भी राजेश्वर, तलवार माडंचिक, कौकुम्बिक इभ्यश्रेष्ठि सेनापति सार्थवाह वगैरह भगवान को वंदना आदि के लिये उद्यत हो गये। इनमे (अप्पे गइया) कितनेक मनुष्य (वंदणवत्तिय बन्दना के लिये (अप्पे गइया) कितनेक (पूयणवत्तियं) भगवान् की पूजा करने के लिये-मन बचन और काय की निरक्या क्रिया द्वारा प्रभु की राइन्ना, खत्तिया, माहणा, भडा जोहा, मल्लई, लेच्छई, अन्नेय बहवे, राईसर तलवर मांडंबिय कोडुंबिय इब्भ सोडिय सेनाबइ सत्यवाहप्पभि य ओ-अप्पे गइया वंदणबत्तियं अप्पे गईया पूयणवत्तिय एवं सक्कार वत्तियं सम्माणवत्तियं) पुत्र, सागपुत्र भने अपनवेशुमासने मेसोડ્યા હતા, ભેગપુત્ર, રાજન્ય- ભગવાનના વંશજ, ક્ષત્રિય રાજવંશ, માહણ બ્રાહ્મણ ભટ, શૂરવીર દ્ધા, મચ્છમલકી,લેચ્છકી–ગણરાજ વિશેષ તેમજ બીજા પણ રાજે શ્વર, તલવર, માંટંબિક (સીમાં પ્રાન્તને રાજા) કૌટુંબિક, ઈભ્યશ્રેષ્ઠ, સેનાપતિ, સાર્થવાહ वगेरे लगवाननी ४॥ ४२१॥ भाटे तैयार थ६ गया २0 भां(अप्पेगइया) ४ा माणुसे। (वंदणवत्तियं) भगवान ने पहन ४२१॥ भाटे गया, (अप्पेगइया) (पूयणवत्तियं) नावाननी you ४२१॥ भाटे-मन क्यन भने अनी निरवध ठिया द्वारा प्रमुनी माराधना की तेनु नाम न छ.-(सक्कार वत्तियं) ८८४ तेमनी सत्तार
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