Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. अ १ सू.२८ मातापितृभ्यां मेघकुमारस्य संवाद : ३४५
श्रमणस्य भगवती महावीरस्य पत्राजष्यसि, एवं खलु ह मातापितरौ ! मानुष्यकाः कामभोगा अशुचयोऽपवित्रा:- उदमौदारिकं शरीरं तावदशुचिस्थानत्वादचिरमरुचिरमसिमेदोऽस्थिशुक्र मज्जामयं श्लेष्ममलमूत्रादिपूरितं स्नायुजालपरिवेष्टितं सर्वदा क्रमिरुजादि सङ्कुलं तच्चबुद्धा विचार्यमाणं परमाशुचि शरीरे कण, द्वै चक्षुषी, द्वै घाणे, मुर्ख, पायुरुपस्थति, नत्र द्वाराणि मलवाहकानि सन्ति । अशाश्वताः = अल्पकालस्थायिनः, 'वंतासवा ' 'सो ( एवं खलु अम्मयात्री) हे मानाविना ! इस विषय मेरी ऐसी धारणा है कि ( माणुस गा कामभोगा अमुई असामया, नासवा पित्तामवा खेलामना, सुक्कावा, सोणियासवा ) ये मनुष्य भत्र संबन्धी कामभोग अशुचि हैं- अपवित्र है । औदारिक शरीर के द्वारा इनका सेवन किया जाता है। जब यह औदारिक शरीर ही अशुचि का स्थान होने के कारण अशुचि है, रसर, रुधिर२. मांस३, मेद४. अस्थि५, शुक्र६, और मज्जा, इन सप्तधातुओं से बना हुआ है, श्लेष्म मल मूत्रादि से भरा हुआ है, स्नायु जाल से परिवेष्टिन है, सर्वदा कृमि, रोग आदि से संकुल है और इन नौ अंगों से जो दो कानों, दो आँखो, दो नामिका के छिद्रों मुख, लिङ्ग एवं वायु द्वारा सदा मल बहाता रहता है तो त दृष्टि से विचार करने पर यह निश्चित होता है कि इस अपवित्र औदारिक शरीर से भोगे गये कामभोग शुचि कैसे हो सकते हैं। अशुचि पदार्थ का ही भोगना संभवित होता है। इस लिये हे माता पिता ! आप यह उरी बन्ने " तो ( एवं खलु अम्मयाश्रो ) हे भातापिता ! या भागतभां भारी मेवी मान्यता है ? ( माणुस्सगा कामभोगा अमुई असासया नासवा पितातया खेळामना सुकाममा सोणिया सवा ) भनुष्यलवना अभलोगो अशुि છે, અપવિત્ર છે. ઔદારિક શરીર વડે તેમનું સેવન કરાય છે. જ્યારે તે ઔદારિક શરીર જ અશુચિનું ઘર હોવાથી અનુચિ છે, રસ ૧, રુધિર ૨ માંસ ૩ भेट ४, અસ્થિ પ, શુક્ર ૬, અને મજ્જા ૭, આ સાત ધાતુએથી આ શરીર મનેલુ છે. તે લેખ, મલમૃત્ર વગેરેથી યુકત છે, સ્નાયુના સમૂહોથી વીંટળાએલ છે, હમેશાને માટે કૃમિ, રોગ વગેરેથી વ્યાપ્ત છે, અને એ કાન, એ આંખા, એ નાસિકા છિદ્રો, મુખ, લિંગ અને પાયુદ્વાર આ નવ અંગોથી સતત મળ વહેતા રહે છે, તે એના ઉપર તાત્ત્વિક દ્રષ્ટિએ વિચાર કરીએ ત્યારે એ જ નિશ્ચય ઉપર અવાય છે. કે આ અપવિત્ર ઔદારિક શરીર દ્વારા ભોગવવામાં આવેલા કામભોગ શુચિ કેવી રીતે
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