Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३१२
शाताधर्म कथाङ्गमत्र समुद्ररवाकुलमित्र राजगृहं कुर्वन्तः' इति। रायगिहस्स नयरस्स' राजगृहस्य नगरस्य 'मज्झं मज्झेणं' मध्यमध्येन 'एगदिसिं' एकस्यादिशि, 'एगाभिमुहा' एकाभिमुखाः कं भगतं अभि=अभिगतं मुखं येषां ते तथा भगवदभिमुखा इत्यथः, निर्गच्छन्ति, 'इमं च णं' अस्मिन् समये च खलु मेघकुमारः 'उप्पिपासायपरगए' उपरिपामादवरगतः प्रासादवरोपरिभूमिकस्थ; 'फुटमाणेहि' स्फुटद्भिः आद्यमानः 'मुयंगमत्थएहि मृदङ्गमस्तकैः यावद् मानुष्यकान् भोगान भुञ्जानः रायमग्गं च' राजमार्ग च 'ओलोएमाणे२' अबलोकमानः२ एवं च खलु विहरति आस्ते। ततः खलु स मेघकुमारस्तान् बहुनुग्रान एकस्यां दिशिशब्द करते हुए ये सब चल रहे थे। उनके उन शब्दों से राजगृह नगर एसा मालूम हो रही था कि मानो वह समुद्र के ध्वनि से ही प्राकुल काकुल सा हो रहा है। इस तरह होते हुए वे सब (रायगिहस्स नयरस्म मझमज्झेणं एगदिसि एगाभिमुहा निग्गच्छंति) राजगृह नगरके टीक बीचों बीच से होकर एक ही दिशा की ओर एकाभिमुख होकर चल दिये । ( इमंच णं मेहेकुमारे उप्पि पासायवरगए फुटमाणे मुयंग मत्थएहि जान माणुस्सए कामभोगे मुंजमाणे रायमग्गं च ओलो २ अंच च णं विहरइ) इस समय मेघकुमार अपने महल के उपर बैठा हुआ था। उसका समय जैसा पहले बतलाया गया है कि बाजोंकी मधुर ४ नियों के श्रवण से तथा उत्तम २ ३२ प्रकारके नाटकों के कि जिनमे अपने ही शौर्य आदि गुणों का प्रदर्शन रहता था अवलोकन से व्यतीत होता था। इस प्रकार मनुष्य भव संवन्धी कामभोगों को भोगता हुथा वह अपना समय आनंद के साथ व्यतीत कर रहा था। उस मेघરતા તેઓ બધા જઈ રહ્યા હતા. તેમના ઘંઘાટથી રાજગૃહનગર જાણે કે સમુદ્રની
म शहत २युं तु. माशते ते मया (रायगिहम्म नयरग्स मज्झ मज्झेणं एगदिसिं एगाभिमुहा निग्गच्छंति) २०१२25 नगरनी १२ये थने ४८ ६u त२३ २४भिभु ने 75 २ह्या छता. (इमे मेहे कुमारे उप्पि पासायवरगए फामाणहिं मुयंगमथए हि जार माणुग्यए कामभोगे भुंजमाणे रायम. ग्गं च ओलोएमाणे? एवं च णं विहर इ) ते मते भेषमा२ पोताना मांडलानी ઉપર બેઠે હતું. તેને વખત જેમ પહેલાં વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે તેમ-તાજાએની મધુર ધ્વનિઓના શ્રવણથી, તેમજ ઉત્તમોત્તમ પ્રકારના નાટકના–કે જેમાં પિતાના જ શોર્ય વગેરેનું પ્રદર્શન રહે છે–અવલોકન કરતા જ પસાર થતો હતો. આ પ્રમાણે મનુષ્યભવના કામો ભગવતે તે પિતાને વખત સુખેથી પસાર કરતે
For Private and Personal Use Only