Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षि टीका अ, १ २२ मेघकुमारपालनादिनिरूपणम् तानि यौवनवयसा जागरितानि व्यक्त चेतनावन्ति कृतानि येन स तथोक्तः 'अठारसविहिप्पगारदेसीभासाविसारए' अष्टादशविधिप्रकारदेशीयभाषाविशारदः अष्टादशविधिकाराः प्रवृत्तिभेदाः यस्याःसा तथा तस्यां, देशीयभाषायां देशभेदेन वर्णावलिरूपाणां विशारो निपुणः, 'गोडरइगंधवनट्टकुमले' गीतिसतिगन्धर्वनाटयकुशलः गीतिरति गन्धर्वइव नाटये कुशल:गन्धर्ववद्गीतनाटयमर्मज्ञ इत्यर्थः, 'हयजोहो' हययोधी अश्वमारुह्य युद्धशीलपाम्-'ग यजोही' गजयोधी 'रहजोही' रथयोधी, 'बाहुजोही' बाहुयोधी, तथा 'बाहुपमहीं' बाहुपमर्दी बाहुभ्यां प्रमदनशीलः, 'अलंभोगसमत्थे' अलं. भोग मर्थः सालभोगसामर्थ्यवान् , 'साहसिए' सोहसिका महापराक्रमशाली, 'विया लबारी' विकालचारो-रिकालेपि-रात्रावपि चरतीति विकाल बारीपरम साहमिहत्वोत्, 'जाएचावि होत्या' जानवाप्पभवन चकारोऽनुक्तसमुच्चयार्थीनया १ एक मन ये ९ अंग सुप्त जसे बने रहते है- परंतु जब यौवन अवस्था आ जाती है तब ये सब जग जाते हैं-इनकी चेना व्यक्त हो जाती हैं-कहने का तात्पर्य यह है कि वह मेघकुमार यौवनावस्था संपन्न हो गया-और (अट्ठारसविहिप्पगारदेसीभासाविसा. रण) देश भे से १८ प्रकार का प्रनि भेदवाली देशी भाषा के जानने में विशारद बन गया (गीइरइगंधनकुमले) गंधर्व की तरह गीत नाट्य का मर्मज्ञ हो गया (हयजोही, गयजीही. रहजोही, बाहुजोही, बोहप्प मद्दो भलं मोगसमत्थे, साहसिए, वियालचारी. जाए याविहोत्था) घोडे पर चढ कर युद्ध करने में अभ्यस्त हो चुहा, गज पर चढकर युद्ध करने में अभ्यम्त हो चुका, रथ पर चढ़कर युद्ध करने में अभ्यस्त हो चुका, केवल बाहों से ही युद्ध करने में समर्थ हो चुका, बाहूओं से ही शत्रुओं के આવે છે ત્યારે આ બધાં અંગે જાગ્રત થઈ જાય છે, એમની ચેતના વ્યક્ત થઈ तय छ, पानी ना ये छभेषभार नुवान ४ गयो भने ( अट्ठारस विहिप्पगार देनी भासाविसारण) देश मेथी १८ प्रारनी व्यवहा भां प्रयुत थती देशी भाषायाने काम निपुण थ5 गयो ( गीहरइगंधवनहकुसले ) धनी म सात भने नायिनी मम 5 गयो, (हय जोही, गयजोही. रहजोहो; याहु नोही, बाहुप्प नदी, अलं भोगसमत्थे, साहसिए: वियाल चारी, जार चावि होत्य) 31 3५२ मेसीन रवानी मन्यस्त थप गयो, હાથી ઉપર બેસીને યુદ્ધ કરવામાં કુશળ થઈ ગયે, ભુજાઓ દ્વારા જ યુદ્ધ કરવામાં સમર્થ થઈ ગયે, બાહુઓ દ્વારા જ શત્રુઓના મર્દનમાં શકિતશાળી થઈ
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