Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. अ १ सू. २४ महावीरसमवसरणम्
I
'जण कलकलेइवा' जनकलकल:- जनानामव्यक्तवर्णात्मको ध्वनिः जनोर्मि:तरङ्ग इव मनुष्याणां समूहः 'जणुकलियाइ वा जनोत्कलिका - जनानाम् अल्पः समूहः 'जणसन्निवाइवा' जनसन्निपातो वा अपरापरस्थानेभ्यः समागत्य एकत्र - मीलनं, तत्र बहुजनोऽन्योन्यं = परस्परम् एवं = त्रक्ष्यमाणस्वरूपेण 'अक्खाइ' आख्याति=आकस्मिक भगवदागमनजनितहर्षातिशयेन सगद्गदकण्ठतया सामान्यतोत्रदत्तीत्यर्थः।‘भासइ' भाषते = व्यक्तवचनैर्वेदतीत्यर्थः । 'पन्नवेड' प्रज्ञापयति= भगवदागमनरूपमर्थ प्रतिबोधयति । 'परूवेइ' प्ररूपयति = भगवन्नामगोत्र स्वरूपादिकं बोधयन् कथयतीत्यर्थः । किंकथयतीत्याह-- ' एवं खलु' इत्यादि । एवं का संग्रह किया गया है - ( जणवू हे हवा) अनेक जनों का व्यूह (जणबोलेइवा) अनेक जनों के बोल (जण कलकलेइना) अनेक जनों का कलकलरव उस समय उन पूर्वोक्त शृंगाटक आदि मार्गों में प्रकट हुआ। उस समय (जणुम्मीइवा) मनुष्यों का जमघट्ट उन मार्गों में तरङ्ग की तरह इधर उधर अतराता हुआ दृष्टि पथ होने लगा । ( जणुक्क लियाहवा) कहीं२ मनुष्यों का समूह अधिक भी नही था अल्प था ( जणसं निवाएइवा ) कहीं२ से आकर जनता एकट्ठी हो गई थी। ये सब के सब मनुष्य परस्पर में पहिले आकस्मिक भगवान् के आगमन से जनित हर्षातिशय के वश से गदगद कंड होकर (अक्खाइ) स्पष्ट रूप से एक दूसरे से कहने लगे ( भासइ) बाद में व्यक्त वचनों द्वारा कहने लगे (पन्नवइ) बाद भगवान् पधारे हैं ऐसा उच्चारण करने लगे । (परूवेइ) भगवान् का अमुक नाम है अमुक गोत्र है उनका इस प्रकार का स्वरूप आदि है ऐसा समझ कर सबको समझाने लगे। कहने लगे- हे देवानुप्रियों ? श्रमण भगवान् महावीर जो भाणुसोनो समूह, (जगबोलेइना) घणा भाणुसोनो भवान, ( जणकलकले इवा) ઘણા માણસાના શેરબકાર તે વખતે પૂર્વોક્ત શ્રંગાટક વગેરે રસ્તાઓમાં શર થયેા. તે સમયે ( जणुम्मीइवा) भाणुसो ते भार्गभां हरियाना भोल योनी प्रेम आमतेम ता माता हुता. ( जणुक्कलियाई वा ) ध अ ग्यामे भाणुसोना समूह सोछा प्रभाशुभां इतां. (जणसन्निवाएंई वा) अ अर्थ स्थाने महार गामधी बनता भेडी થઈ ગઈ હતી. આ બધા માણસો પહેલાં તે ભગવાનના આકસ્મિક આગમનથી હર્ષોંतिरेङने वश गणगणा उठे (अक्खाई) अस्पष्ट३ये मीलने उडेवा साग्या, (भासइ) पछी स्पष्ट वयनाथी अहेवा साग्या, (पन्नवई) थोडी क्षो। पछी 'लगवान चधाय छे, खेभ उडेवा साभ्या, (परुवई) लगवानेतुं अभु नाम छे, अभुङ गोत्र है, તેમનું સ્વરૂપ અમુક પ્રકારનુ છે, આમ જાણીને બધાને સમજાવવા લાગ્યા. તે
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