Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षि टीका अ, १ २० मेघकुमारपालनादिवणनम् 'सिंवखावेइ' शिक्षयति-अभ्यासयीतत्यर्थः। कीददृश्यस्ता कलाः इत्याकाङ्क्षायामाह-लेहाइयाओ इत्यादि 'लेहाइयाओ' लेखादिकाः-तत्र लेखनं लेखः= अक्षरविन्यासः तद्विषया कला लेख इत्युच्यते, स आदिर्यासां तास्तथा, लेखो लिपिः, सा चाष्टादशधा-हंसलिपिः१, भूतलिपिः२, यक्षलिपि३, राक्षसीलिपि:४, औड्रोलिपिः५, याविनी६, तुरुष्की७, कीरदेशोस्पन्नालिपिः कीरि:८, द्राविडीद्रविड देशोत्पन्नालिपिः९, सैन्धवी-सिन्धुदेशोत्सन्नलिपिः१०, मालविनी अव. न्तीदेशोद्भवा११ नाटीलिपि१२ः, नागरी१३. लाटी१४, पारसी१५, अनिमिती१६, चाणकी१७, मलदेवीच१८, इति, 'गणियप्पहाणाओ' गणितप्रधानाः= एकद्विव्यादि संख्याप्रधानाः, 'सऊणरुयपज्जवसाणा' शकुनरुतपर्यवसानाः, शकुनरुतपर्यन्ताः 'बावत्तरि कलाओ' द्विसप्तति कलाः, 'सुत्तोय' मूत्रतश्च अथितमूलरूपात, 'अत्थो य' अर्थत: व्याख्यानतश्च, 'करणओय' करणत: प्रयो. भी मेघकुमार को लेखादिकला गणित प्रधानकला और शकुनमत (शब्द) पर्यन्त तक की समस्त ७२ कलाओं का उपदेश दिया और उन्हे सिखाया। अक्षर लिखने की कला का नाम लेख कला है-अक्षरलिपि १८ अठारह प्रकार की होती है (१) हंसलिपि (२) भूनलिपि. (३) यक्षलिपि (४) राक्षसी. लिपि (५) अडीलिपि, (६) याविनीलिपि, (७) तुरुष्कीलिपि, (८) कीरदेश में उत्पन्न हुई कीरिलिपि, (९) द्राविडीलिपि, (१०) सिन्धुदेश की लिपि, (११) अवन्तिः देशकीलिपि, मालविनी, (१२) नाटीलिपि (१३) नागरीलिपि, (१४) लाटीलिपि, (१५)पारसीलिपि,(१६)अनिमित्ती, लिपी(१७) चाणकी लिपि, (१८): मूलदेवीलिपि। एक दो, तीन आदि संख्या प्रधान कला का नाम ये सब कलाएं मेघकुमार को मूलरूप से सुनाई गई और सिखलाई गई। अर्थ की अपेक्षा भी ये सब कलाएँ उसे सुनाई गई। तथा कलापयोगरूप व्यापार द्वारा ये सब कलाएँ उसे सुनाई गई और समझाई કળા શીખવનાઆચયે પણ મેઘકુમારને લેખ વગેરેનીકળા, ગણિતપ્રધાનકળા અને શકુનરૂત (શબ્દ) સુધીની બધી બૅર કળાને ઉપદેશ આપ્યું અને શિખવાડી. અક્ષર લખવાની કળાનું નામ લેખનકળા” છે. અક્ષરલિપિ અઢાર (૧૮) પ્રકારની હોય છે (૧) હંસ सिपि, (५) भूतलिपि, (3) यक्षसिपि, (४) राक्षसी लिपि, (५) मोडालिपि, (६) याविनीलिपि, (७) २लिपि, (८)२६शमा प्रयसित रामप(८) द्रविलपि, (१०) सिंधुदूशनी लिपि (११) अवान्तिोशनी सिपि, भासविनी, (१२) नाटलिप, (१३) नापि , (१४) साटलिपि, (१५) पारसीलिपि, (१६) अनिभित्ति (१७) यालिपि, (१८) भूदेवी सिपि. ४, थे, त्राण वगेरे सध्या प्रधान ®. २ બધી શાઓ મેઘકુમારને મૂલ રૂપમાં સંભળાવી અને શિખવાડવામાં આવી.
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