Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका.म.१३ अकालमेघदोहदनिरूपणम् यन्ती, तत्र-क्रीडा-सहहास्य विनोदादिरूपा रमणं सखिभिः सह खेलनं, तयो क्रीडा रमणयोः क्रिया, तां परिहापयन्ती परित्यजन्ती, 'दीणा दीना-दुःखिता, 'दुम्मणा' दुर्मना-उद्विग्नचित्ता, निराणंदा' निरानन्दा-हर्षसुखवर्जिता, 'भूमिगयदिडिया' भूमिगतदृष्टिका-धरातष्टिका 'ओहयमणसंकप्पा' अपहतमनः संकल्पा-तत्र-अपहतो-नष्टो मनसः संकल्पः कर्तव्याकर्तव्यविवेचनरूपो यस्याः सा, 'जाव झियायइ' यावत् ध्यायति-यावच्छब्देन-करयलपल्हत्थमुही, अज्झा. णोवगया' इति संग्रहः, तेन करतलपर्यस्तमुखी, आर्तध्यानोपगता, इतिच्छाया, तत्र करतले-हम्ततले 'हथेली'ति भाषायां पर्यस्तं निक्षिप्तं मुखं यया सा तथा, अतेगानोपगना-अकालमेघर्षण जनितानन्दाननुभवात् शोकक्रान्ता 'ज्ञियायइ' ध्यायति-आतध्यानं करोतीत्यर्थः, 'तएणं' ततःखलु 'तीसे' तस्याः धारिण्या क्रीडा तथा उनके साथ खेलना इन दोनों क्रियाओं को उसने छोड दिया और केवल (दीणा दुम्मणा) वह दुःखित एवं दुर्मना रहने लगी (णिरण हा भूमगदिहिया ओयमणसंकप्पा जाव झियाई) इस तरह हर्पन से वर्जित बनी हुई वह मदा नीचे की ओर ही अपनी दृष्टि रखे रहती और कर्तव्या कर्तव्य विवे,नरूप मानससंकल्प जिसका नष्ट हो चुका है ऐसे वह धारिणी देवी रातदिन आ ध्यान रूप चिन्ता में मग्न बन गई। यहां यावत् पद से हरयलपल्हत्यमुही, अज्झागोवगया" इन पदोका संग्रह हुआ है। जिम समय मनुष्य अधिक चिन्ता मग्न रहने लगता है उस समय वह हथेली पर मुख घर कर बैठा हुआ दिखलाई पडता है-और रातदिन आतध्यान किया करता है। यही स्थिति उस रानीकी भी रहने लगी थी यही बात इन पदों द्वारा व्यक्त को गई है। (नएणं) इसके बाद (तीसे) સખીઓની સાથેના હાસ-પરિહાસ, વિનેદ, ક્રીડાઓ અને રમત ગમત આ બધા એણે त्यस घi sai, भने ते ४० (दाणा दुम्मणा) दीन भने अन्यमन२४ थाने हिस ५॥२४२६सा.(गिराणंदा भूमिगयदिदिया ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह) આરીતે વિષાદયુક્ત થઈને તે હંમેશાં પિતાની નજર નીચે જ રાખતી અને ધીમે ધીમે શું કરવું અને શું નહિ કરવું આ જાતને વિવેક એટલે કે કર્તવ્યાકર્તવ્ય રૂપ માનસ સંકલ્પ જ નષ્ટ થઈ ગયું. અને આ રીતે તે ચિંતામાં ડૂબી ગઈ. અહીં यावत्' ५४थी "कायलपल्हत्थमुही अज्झाणोयगया" मा पनी सर याय છે. માણસ વધારે ચિતિત થાય છે, તે વખતે હથેળી ઉપર મેં રાખીને બેસી રહે, છે અને રાતદિવસ આતધ્યાન-ચિન્તામાં જ બી રહે છે. ધારિણુદેવીની એજ હાલત था। . 21 पहाथी १ पात २५ट ४२वाम मावी छ. (त एणं) त्यार पछी
For Private and Personal Use Only