Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका. स.१३ अकालमेघदोहदनिरूपणम्
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टीका - तरणं सा इत्यादि । ततः = दोहदसमुत्पस्यनन्तरम्, सा धारिणी राज्ञी 'सि' तस्मिन् अकालमेघवर्षणरूपे, 'दोहलंसि' दोहदे 'अविणिजमाणंसि' अविनीयमाने = अपूर्यमाणे, सा कीदृशी जातेत्याह- 'असंपन्न दोहला' असंपन्न दोहदा=अकालमेघवर्षणाभावात् असंमाप्तदोहदा, 'असं पुन्नदोहला' असंपूर्ण दोहदा = मेघवर्षणाभावेन दोहदस्याऽसंपूर्णत्वात्, 'असंमाणियदोहला' असंमानितदोहदा=अकालमेघवर्षणजनितानन्द सद्भावाभावात् 'सुक्का' शुष्का=मनसः संतापेन शुष्क शोणितत्वात्, 'भुक्खा' बुभुक्षावती दोहदस्या सम्पूर्णत्वेनार्त ध्यानतया क्षुधाकान्तावदुर्बला, अत एव 'णिम्भंसा' निर्मासा-शुष्कमांसा 'ओलुग्गा' अवरुग्णा=चिन्तारोगग्रसितत्वाजीर्णां 'ओलुग्गसरीरा' अवरुग्णशरीरा=चिन्तातिशयात् जीर्णशरीरा, 'पम्मइलदुब्बला' प्रमलिनदुर्बला प्रकर्षेण मलिना कान्ति
तणं सा धारिणी देवी इत्यादि ॥
टीकार्थ - (ari) दोहला उत्पन्न होने के बाद (सा धारिणी देवी) वह धारिणी देवी जय ( तंसि दोहलसि ) अकाल में मेघ वर्षणरूप वह अपना दोहला (अविणिज्ज माणंसि) पूर्ण नहीं हुआ तब (असंपन्न दोहला ) असमय में मेघवर्षण के अभाव से दोहद की पूर्ति प्राप्त नहीं कर सकने के कारण (असंपन्न दोहला) दोहद की असंपूर्णता होने के कारण, (असंमाणिय दोहदा ) दोहद संमानित (पूर्ण) नहीं होने के कारण, (सुक्का) मन में अतिशय संतापवाली हुई और इस कारण शोणित शुष्क हो जाने से वह सूक गई (भुक्खा) बुभुक्षित व्यक्ति की तरह वह दुर्बल हो गई (निम्मंसा) मांस भी उसका शुष्क जैसा हो गया। (ओलुग्गा) चिन्ता से रोग से ग्रसित होने के कारण जीर्ण जैसी बन गई । (ओलुग्गसरीरा) चिन्ता की अतिशयता से वह जीर्ण शरीर हो गई (पमइल दुब्बला) कान्तिर हित होकर
नएणं सा धारिणीदेवी इत्यादि " सूत्र
टीअर्थ - (त एणं) होड उत्पन्न थया पछी (सा धारिणी देवी ) न्यारे धारिणीदेवीन (तं सि दोहलंसि) असभये मेघवर्ष होड (अविणिज्जमाणंसि) पूर्ण नहि थ्युत्यारे (असंपन्न दोहला) असभये भेघवर्षशुना लावे पोतानु होइहनी पूर्ति नहि थवाथी (377ig=agtem1) Uge Araldia (yy) als ŝınıà dâ, (FIF1) à HaHi ખૂબ દુઃખી થઇ અને શરીરમાંથી લાહી સૂકાઇ જવાથી દુબળી થઇ ગઇ, (મુદ્દા) ભૂખી व्यक्तिनीभ तेहुर्माण था गर्छ, (निम्मंसा) तेनुं मांस पशु सुझ गयुं (ओलुग्गा) चिंता भने रोगथी पीडामेसी ते कार्य नेवी जनी गई. ( श्रोलुम्गसरीरा) अतिशय यिन्ताना लारथी शु शरीरवाणी थह गई. ( मलवला) निस्ते
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