Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका सू.१२ अकालमेघदोहदनिरूपणम् परिष्वष्कितेषु वातस्य-बायोवंशेन वियुले गगने चपलं यथा स्यात्तथा परिवष्किता=चतुर्भिक्षु गमनक्रियापरिणतास्तेषु, 'निम्मलवरवारिधारापगलि यपयंडमारुयसमाहयसमोत्थरंतउवरिउवरितुरियवासंपवासिएमु' निर्मलवरवारिधारा प्रगलितप्रचण्डमारुतसमाहतसमवस्तृणद् उपयुपरित्वरितवर्षमवृष्टेषु, निर्मला-- उज्वला, वरा श्रेष्ठा निरुपद्रवा, वारिधारा जलधारास्ताभिःप्रगलितं प्रचलितं प्रचण्डेन=सवेगेन मारुतेन वायुना समाहतंप्रेरितम् अतएव समवस्तृणत् पृथ्वी आच्छादयत् उपर्युपरि=सातत्येन त्वरितं-शीधं यद्वर्षे तत्प्रवृष्टेषु-वर्षितुमारब्धेषु मेवेषु, इति पूर्वेण सम्बन्धः, 'धारापहकरणिवायनिधाविय' धारा पहकर (प्रकर) निपातनिर्वापिते, धाराणांजलधाराणां पहकर-समूहः, तस्य निपातेन निर्वापिते-शीतलीकृते, 'निर्वापिते' त्यत्र प्राकृतत्वात्सप्तम्येकवचनलोपः मेइणितले' मेदिनीतले-भूतले, पुनः कीदृशे मेदिनीतले इत्याह'हरियगणकंचुर' हरितगणकंचुके, हरितानां तृणानां यो गणः समूहःस एवं कन्चु को यस्य तस्मिन्, 'पल्लवियपायवगणेसु' पल्लवितपादपगणेषु सपत्रितवृक्षतथा-जिन में विजली चमक रही है और जो गर्जनारच [शब्द से विशिष्ट हो रहे हैं (वायवसदिउलगगणचवलपरिसक्किरेसु) वायु के वश से जिनका विपुल आकाश में चारों दिशाओं की ओर चपलता लिये हुए गमन हो रहा है (निम्मलवरवारिधारापगलियपयंडमारुयसमाहय. समोत्थरंत उवरि उवरि तुरियवासंपवासिएसु) निर्मल जल की धारा से प्रचलित तथा प्रचंड वायु के वेगसे प्रेरित ऐसी तराऊपर निरन्तर गीरती हुई वृष्टि को कि जिस से समस्त पृथ्वी मंडल इकदम आच्छादित हो जाय जो वरसा रहे हों ऐसे मेघों में विचरण करती हुई जो अपने दोहद की पूर्ति करती हैं। (धारापहकर निवायणिवाविय मेइणितले) तथा जलधारा के समूह के निपात से शीतल हुए भूमितल पर कि जो(हरियगणकंचुए) हरितार्कुररूपी वस्त्र वाला बन रहा है-(पल्लवियपायव(वायवसविउलगगणचवलपरिसक्किरेसु) रे भे पवन२विस्तृत माय अने यारे हिशामामा गतिशीद २॥ छ. (निम्मलवरवारिधारापगलियपचंडमारुयसमाहय समोत्थरंत-उवरि-उवरि तुरियवासं पवासिएम) જે મેઘ પ્રચંડ વાયુ વેગથી પ્રેરાઈને નિર્મળ જલધારાઓ વરસાવી રહ્યા છે, જેના દ્વારા સંપૂર્ણ પૃથ્વી એકદમ ઢંકાઈ જાય છે, એવા મે દ્વારા પિતાનાં ઉપર પડતી सतत वर्षा धारामion (भात) पाताना हाडना पूति ४२ छ, (धारापहकर निवायणिवावियमेइणितले) तेभ धारामान वर्ष थी शीतण थयेटी पृथ्वी ५२-२ (हरियगणकंचुए) leu मरीना युवाणी थई छ.
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