Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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१६८.
शाताधर्म कथासूत्रे वर्णनेन 'वरपायपत्तणे उरमणिमेहलहाररइयकडगखुड्यविचित्तवरवलयथंभियभुयाओ' बरपादप्राप्त नूपुरमाणि मेखलाहार रचित कटकविचित्र वरवलयस्तम्भितंभुजाः-तत्र वरौ पादयोः प्राप्तौ स्थितौ नूपुरौ यासां ताः, तथा मणिमेखलामणिकाञ्ची, हारश्च यासां ता, तथा रचितानिन्यस्तानि कटकानिकंकणानि, खुडुकानि=भङ्गुली भूषणानि, विचित्रा नानाविधशोभाम्पन्ना वरा: श्रेष्ठा वलयाश्च तै स्तम्भितौ स्तब्धोभूती संयुक्तौ भुजौ यासां ताः, अत्र पदत्रयस्य कर्मधारयः, 'कुंडल उज्जो वियाणणाओ' कुण्डलो धोतितानना:-कुण्डलाभ्यां उद्यो. तितानना प्रकाशितमुखाः ‘रयणभूसियंगाओ' रत्नभूषिताङ्गा-रत्ननटितभूपणभूषितशरीराः। अथ नासां वस्त्रं वयंते-'नासानीसासवायवोज्झं' मासा निश्वासवातोह्य-नासिका निश्वासवायुना उह्य धार्य तद्गत्या-प्रचाल्यमित्यर्थः मक्ष्मतन्तुमयात्वादति लधु इति, 'चक्खु हरे' चक्षुहरं शोभनरूपसन्पन्नं 'वण्णपरिमसंजुत्तं' वर्णस्पर्श संयुक्तं तत्र वर्णः-सुन्दर मनोहरिलालपीनादिरूपः, स्पर्शः= सुकोमलादिरूपःताभ्यां संयुक्तं 'हयलांला पेलवाइरेयं, हयलाला पेलवातिरेकं तत्र करती हैं (किंते) अधिक वर्णनसे तो क्या (वरपायपत्तणे उरमणिमेहलहाररइयकडगखुड्डय विचित्तवरवलयर्थभियभुयाओ) अपने दोनों पैरो में नुपूर कटि प्रदेश में मणिमेखला गले में हार हाथों में कटक-कंकण एवं अंगु लियों में मुद्रिकाएँ धारण करती हैं तथा भुजो में भुजवन्ध बांधती हैं (कुंडल उज्जोवियाणणाओ) तथा कुंडल की प्रभा से जिनका मुख मंडल-और अधिक कांतिवाला बन रहा है (रयणभूसियांगो) और रत्न जडित आभू. एणों से जिनका शरीर भूषित हो रहा हैं (नासानीसासवाययोज्झं) तथा (अंसुर्य) वस्त्र को कि जो नासिका के निश्वास से भी कंपित हो जाता हो (चक्खुहरं) देखने में बडा सुहावना हो (वष्णफरिस संजुत्त) सुंदर रंगवालाहो पश निसका बडा कोमल हो (हयलालापेल पाइरेयं) अपनी कोमलता से जो घोडे को (वरपायपत्तणे उरमणिमेहलहाररईयकडगखुवुड्यविचित्तवरवलयभियभुयाओ) જે માતાઓ બને પગમાં ઝાંઝર, કેડે મણિઓને કંદરે, ગળામાં હાર, હાથમાં કડાં અને આંગળિયામાં વીટીઓ પહેરે અને બાહમાં બાહુબ ધ બાંધ (૪ उज्जोवियाणणाओ) भने गानी xiliate मनु भा धारे ही 68 (रयणभूसियांगो) २ल उसाधरणांमाथी मनु शरीर शामायभानमेवा नासानी मासवायवोज्यं) तेभन मे (अंसुयं) पर निश्वासथी पर सव! भांडे (चक्खहर) भनोडर (वण्णफरिससंज) सु२ २ २ अने २५ भां अत्यंत अभ २ हयलालापेलवाइरेयं अमातमा घiनी सामने पाय
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