Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्म कथाङ्गसूत्र भदासणंसि निसीयइ, निसीइत्ता आसत्था विसत्था सुहासणवरगया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कहु सेणियं रायं एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! अज तंसि तारिसगंसि सयणिजसि सालिंगणवहिए जाव नियगवयणमइवयंतं गयं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तं एयस्स णं देवाणुप्पिया! उरालस्स जाव सुमिणस्स के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्तइ ॥सू० ७॥
टीका-'तएणं सा' इत्यादि । 'तएणं' ततः खलु तदनन्तरं साधारिणो देवी अयमयारूवं' इममेतद्रपं-मुखप्रविष्टश्वेनगजरूपम्, 'उरालं' उदारं-प्रधानं, कल्लाणं' कल्याण-मुखकर, 'सि' शिवम् उपद्रवोपशमकं 'धन्न' धन्य प्रशंसनीयं 'मंगल्लं' माङ्गल्यं मङ्गलसूचकं 'सस्सिरीयं सश्रीक-सुशोभनं 'महासुमिणं' महास्वप्नं-महाफलमूचकं स्वप्नं पासित्ताण' दृष्ट्वा 'पडिबुद्धा' प्रतिबुद्धा जागरिता सती 'हट्ट तुट्टा' हृष्टतुष्टा-हृष्टा हर्षप्रकर्षप्राप्ता तुष्टा=मनःसन्तोषमापन्ना 'चित्तम गंदिया' चित्तानन्दिता-मनोमुदं प्राप्ता, मकारः प्राकृतत्वात, 'पीइमणा' पीतिमनाः-प्रीतिःमीणनं तृप्तिरित्यर्थः, मनसि यस्या सा तथोक्ता तृप्तमनस्का, 'परमसोमणस्सिया'
तएणं सा धारिणी देवी इत्यादि
टीकार्थ-(तएणं) इसके अनन्तर (सा धारिणी देवी) यह धारिणी देवी (अयमेयारूबं) जब इस तरह के (उरालं) प्रधान (कल्लाणं) सुखकर(सिव) उपद्रवो का उपशम करने वाला (धन्न) प्रशंसनीय (मंगल) मंगल सूचक तथा (सस्सिरीयं) सुशोभन (महास्वप्न को (पासित्ता णं) देखकर (पडिबुद्धा) जग गई और (हतुहा) जब हर्ष के प्रकर्ष को प्राप्त कर मनस्तोष को धारण करती (चित्तमाणंदिया) चित्त में अतिप्रसन्न हुई। और (पीइमणा) फिर मन में तृप्ति को धारण कर जब वह (परमसोमणस्सिया) अति
तएणं सा धारिणीदेवी इत्यादि मर्थ-(तएणं) त्या२ मा (सा धारिणीदेवी) ते धावा (अयमेवारूव) न्यारे मा (उरालं) प्रधान (कल्लाण) सुमह (सिवं) उपद्रवीने शांत ४२नार (धन्नं) qथापा योग्य (मंगलं) मदने सूयवनार तेभ (सस्सिरीय) सुशीलन (महा. सुमिणं) भाडा स्वम ने and 25 15 माने (हट तुहा) भूमा हुप युत) मनाने मनस्तो५ धा२९१ ४२ती (चित्तमाणंदिया) भनमा अत्यन्त प्रसन्न भने मनमा तृस्ति भगवती (परम सोमणस्सिया) अतिशय शुभ मनाला
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