Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका. सू, ९ स्वप्नफलरक्षणोपायनिरूपणम् १११ तुष्टा यावत्-हर्षवश विसर्पहृदया 'करयलपरिग्गहिय' करतलपरिगृहोतं-करतलाभ्यां संपुटोकृतं 'जाव' यावत्-शिर आवर्त मस्तके अञ्जलि-हस्तसंयोजन कृत्वा एवमवादीत-इत्थमुक्तवती-हे देवानुपियाः ! 'एवमेयं' एवमेतत्-एतत्स्वप्नफलं एवमेव यथाभवतोक्तं तत्तथैव, 'तहमेयं' तथ्यमेतत् सत्यमेतत्स्वानफलम्, 'अवितहमेयं' अवितथमेतत् नानृतमेतत् सर्वथा सत्यमित्यर्थः 'असंदिद्धमेयं' असन्दिग्धमेतत् सन्देहरहितमेतत्-अत्र स्वप्नफले न संशयलेशोऽपीति भावः, 'इच्छियमेयं' ईप्सितमेतत्वाञ्छनीयमेतत् 'पडिच्छियमेयं' प्रतीप्सितमेतत्ऐसा कहा तब (हतुट्ठाजावहि यया) हर्षित-हृदयवाली होकर (परिग्गहियं जाव अंजलिं क१) दोनों हाथों की अंजलि बनाकर और उन्हें मस्तक पर रखकर-अर्थात् नमस्कार कर (एवं क्यासी) ऐसा कहा । (हटतुट्ठा) जाव हियया) यहां जो यह "यावत्" पद आया हैं वह इस "चित्तमाणंदिया पीइमण परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया" पाटका संग्राहक है । इन पदोंका अर्थ इसी अध्ययन के ७ वे सूत्रकी व्याख्या में लिखा जा चुका है। इसी तरह “करतलपरिग्गहियं जाव" यहां जो यह यावत् पद आया है सिरसावत्तं मत्थए" इन दो पदोका आमर्षक है । (एवमेयं देवाणुप्पिया: हे देवानुपिय ? आपने जैसा स्वप्न का-फल कहा है वह वैसा ही है। (तहमेयं देवाणुप्पिया अवितहमेयं देवाणुप्पिया) हे देवानुपिय-आपके द्वारा प्रकाशित-किया गया स्वप्नका फल बिलकुल सत्य है इस में किसी भी प्रकारकी वितथता-असत्यता-नहीं है। [असंदिद्धमेयं देवाणुप्पिया] हे देवानुप्रिय ! आपने जो स्वप्नका फल कहा है उसमें हे देवानुप्रिय (हतुहा जाव हियया) प्रसन्न यवाणी थने (करयलपरिग्गहियं जाव अंजलि क.) मन्ने हाथोनी सि मनावीन भने तेने भरत ५२ साडीनमर्थात नभन शन-एवं बयासी] २ प्रमाणे ४थु. [हतुट्टा जाव हियया मही यावतू' ५६ माव्यु छ, ते "चित्तमाणदिया पीइमणपरणसोमणस्तिया हरिसवसनिसप्पमाण हियया।" मा ५४ना सा छे. २. पहानी अर्थ ७॥ सूत्रनी व्यायामा समायो छ. माशते । "करतल परिगहियं नाव" मही यावतू ५४ माव्यु छ. ते "सिरसावत्तं मत्थए" मा मे पहानी भाभ५४ छ. (एवमेयं देवाणुप्पिया) हेवानुप्रिय! तो स्नायु छ, ते तभन्छ. (तहमेयं देवाणुप्पिया अबितहमेयं देवाणुप्पियां) हेवानुप्रिय ! मतापेक्षा स्वપ્નનું ફળ એકદમ સાચું છે, એમાં કોઈપણ જાતની વિતથતા-અસત્યતા–નથી. (असंदिद्धमेयं देवाणुप्पिया) हेवानुप्रिय ! तभेने २१ननु ३ मा छ तेमा र हेवानुप्रिय ! संशयनी ॥२ छi2। नथी. (इच्छियमेयं देवाणुपिया)
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