Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे
स्वप्नपाठकान् विपुलेन अशनपानखाद्यस्वाद्येन वस्त्रगंधमाल्यालंकारेण
सत्करोति, संमानयति, सत्कृत्य सम्मान्य विपुलं जीवितार्ह प्रीतिदानं ददाति दत्वा प्रतिविसर्जयति । ततः खलु स श्रेणिको राजा सिंहासनादुतिष्ठति, उत्थाय यत्रैव धारिणी देवी तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य धारिणीं देवीमेवमवादीत् - एवं खलु हे देवानुमिये ! स्वप्नशास्त्रे द्विचत्वारिंशत् स्वप्नाः को यथार्थरूप से मान्य कर लिया । (पडिच्छित्ता ते मुमिणपाढए विउलेणं) मान्य कर चुकते के पश्चात् उन श्रेणिक राजाने फिर स्वप्नपाठ कों का विस्तृत - विपुल - ( असण पाणखाइमसाइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेण यक्कारेs) अशन, पान, खाद्य, रूप चार प्रकार के आहार से तथा वस्त्र, गंध, माल्य, एवं अलंकारों से खूबर सत्कार किया । (संमाई) सन्मान किया । (सक्कारिता संमानित्ता विउलं जीवियारिहं पीईदाणं cus) सत्कार और सन्मान करने के बाद बहुत अधिक आजीविका के योग्य उन्हें प्रीतिदान दिया । (दलइत्ता पडिविसज्जइ) और देकर विसर्जित कर दिया । (तएण से सेणिए राया सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ) इसके बाद श्रेणिक राजा अपने सिंहासन से उठे (उट्ठित्ता) उठकर (जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ) जहां धारिणीदेवी थी वहां गये । वागच्छित्ता) जाकर ( धारिणी देविए एवं वयासी) उस धारिणीदेवी से ऐसा कहा - ( एवं खलु देवाणुप्पिएए सुमिणसत्यंसि बायालीसं सुमिणा जाव एवं थाहडे।ये अहेसा स्वप्नने साया उपमा स्वीयु (पडिच्छिता ते सुमिणपाढए विउ लेणं) स्वीअर्या च्छी ते श्रेणि शन्नमे स्वप्नया डीनोधला प्रभाणुभां (अग पाणखाइमसाइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेण य सक्कारेह) अशन, धान, खाद्य, સ્વાદ્ય, રૂપ ચાર પ્રકારના આહારથી તેમજ વસ્ત્ર, ગંધ, માલ્ય અને ઘરેણાંઓથી भूम सत्सारय, (संमाणेइ) सन्मानयु, (सस्कारिता सम्मानित्ता विउलं जी वियारिहं पीइदाणं दयइ) सार भने सन्मान र्या च्छी तेभने युष्ण - छवि योग्य प्रीतिद्वान आयु (दलहत्ता पडिविसज्जइ) अने भायीने तेयोने विहाय अर्था. – (नएणं से सेणिए राया सीहासणाओ अब्भुइ) त्यारमाह श्रेणि रान घोताना सिंहासन उपरथी अला थया भने (उडित्ता) आल थने (जेणेव धारिणीदेवी तेणेव उपागच्छइ ) न्यां धारिणीदेवी हुती त्यां गया. ( उवागच्छिता) त्यांने (धारिणि देवि एवं व्यासी) धारिणीदेवीने या प्रमाणे उधु - 3. ( एवं देवापिए सुमिणसत्यंसि बायालीसं सुमिणा नाव एवं महासुमिणं जाव
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