Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १२ : उ. ९ : सू. १६८-१७६
का वेदन करते हैं, गोतम ! इस अपेक्षा से उन्हें कहा जाता है-भाव-देव भाव - देव ।
पंचविध देवों का उपपात-पद
१६९. भंते ! भव्य द्रव्य देव कहां से उपपन्न होते हैं-क्या नैरयिकों से उपपन्न होते हैं ? क्या तिर्यंच-, मनुष्य और देव - गति से उपपन्न होते हैं ?
गौतम ! नैरयिकों से उपपन्न होते हैं, तिर्यंच-, मनुष्य और देव- गति से भी उपपन्न होते हैं । जैसे पण्णवणा अवक्रांति पद ( ६ / ८८ - ९२) के अनुसार सब गतियों उपपन्न होने के भेद वक्तव्य हैं यावत् अनुत्तरोपपातिक इतना विशेष है - असंख्येय-वर्ष आयु वाले अकर्मभूमिज, अन्तद्वपज और सर्वार्थसिद्ध को छोड़कर यावत् अपराजित देवों से भी उपपन्न होते हैं । १७०. भंते ! नर-देव कहां से उपपन्न होते हैं क्या नैरयिकों से ? पृच्छा ।
गौतम ! नैरयिकों से उपपन्न होते हैं । तिर्यग्योनिक और मनुष्यों से उपपन्न नहीं होते। देवों से भी उपपन्न होते हैं।
१७१. यदि नैरयिकों से उपपन्न होते हैं तो क्या रत्नप्रभा - पृथ्वी के नैरयिकों से उपपन्न होते हैं यावत् अधःसप्तमी-पृथ्वी के नैरयिकों से उपपन्न होते हैं ?
गौतम ! रत्नप्रभा - पृथ्वी के नैरयिकों से उपपन्न होते हैं । शर्कराप्रभा - पृथ्वी के नैरयिकों से उपपन्न नहीं होते यावत् अधः सप्तमी - पृथ्वी के नैरयिकों से उपपन्न नहीं होते ।
१७२. यदि देवों से उपपन्न होते हैं तो क्या भवनवासी देवों से उपपन्न होते हैं ? वाणमंतर -, ज्योतिष्क- और वैमानिक - देवों से उपपन्न होते हैं ?
गौतम ! भवनवासी- देवों से भी उपपन्न होते हैं, वाणमंतर देवों से उपपन्न होते हैं, इसी प्रकार समस्त देवों के विषय में पण्णवणा अवक्रांति - पद ( ६ / २२) की भांति समस्त उपपात वक्तव्य है यावत् सर्वार्थसिद्ध-देवों से।
१७३. भंते ! धर्म-देव कहां से उपपन्न होते हैं-क्या नैरयिकों से उपपन्न होते हैं ? -पृच्छा ।
इसी प्रकार अवक्रांति-भेद से सर्व देवों का उपपात वक्तव्य है यावत् सर्वार्थसिद्ध देवों से, इतना विशेष है - तमः प्रभा, अधः सप्तमी, तेजस्काय, वायुकाय, असंख्येय- वर्ष आयु वाले अकर्मभूमिज और अन्तद्वीपज को छोड़कर ।
१७४. भंते ! देवातिदेव कहां से उपपन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों से उपपन्न होते हैं - पृच्छा । गौतम ! नैरयिकों से उपपन्न होते हैं । तिर्यग्योनिकों और मनुष्यों से उपपन्न नहीं होते । देवों से भी उपपन्न होते हैं।
१७५. यदि नैरयिकों से उपपन्न होते हैं ?
इसी प्रकार प्रथम तीन पृथ्वियों से उपपन्न होते हैं, शेष चार पृथ्वियों से उपपन्न नहीं होते । १७६. यदि देवों से ?
सर्व वैमानिक- देवों से उपपन्न होते हैं, यावत् सवार्थसिद्ध- देवों से उपपन्न होते हैं, शेष देवों का निषेध करना चाहिए ।
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