Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २५ : उ. ७: सू. ४५३-४५९
- विशुद्धिक- संयत, सूक्ष्मसम्पराय संयत और यथाख्यात - संयत ।
४५४. भन्ते! सामायिक संयत कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- इत्वरिक (अल्पकालिक) और यावत्कथिक (आजीवन) ।
भगवती सूत्र
४५५. भन्ते ! छेदोपस्थापनीय- संयत
.......? पृच्छा (भ. २५ / ४५४) ।
गौतम ! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- सातिचार - सदोष और निरतिचार - दोषरहित । ४५६. (भन्ते!) परिहारविशुद्धिक-संयत .......? पृच्छा (भ. २५ / ४५४) ।
गौतम ! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- निर्विषमानक - परिहारविशुद्ध-तप करता हुआ और निर्विष्टकायिक—परिहारविशुद्ध-तप संपन्न कर चुका ।
४५७. (भन्ते!) सूक्ष्मसंपराय - संयत
..? पृच्छा (भ. २५/४५४)।
गौतम! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे – संक्लिश्यमानक - उपशम-श्रेणी से गिरता हुआ, और विशुद्ध्यमानक–उपशम-श्रेणी अथवा क्षपक श्रेणी समारोहण करता हुआ ।
४५८. भन्ते! यथाख्यात - संयत के विषय में पृच्छा ।
गौतम ! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- छद्मस्थ और केवली ।
संग्रहणी - गाथा
सामायिक-चारित्र स्वीकार कर जो अनुत्तर चातुर्याम धर्म का तीन करण से स्पर्श करता है वह सामायिक संयत है ।
पूर्व - पर्याय का छेदन कर जो अपनी आत्मा को पञ्च-याम धर्म में स्थापित करता है वह छेदोपस्थापन - संयत है ।
जो परिहारविशुद्धि-तप का आचरण करता है, अनुत्तर पञ्च-याम-धर्म का तीन करण से स्पर्श करता है वह पारिहारिक संयत है ।
जो (सूक्ष्म) लोभाणुओं का वेदन करता हुआ उपशामक अथवा क्षपक है वह सूक्ष्म-संपराय- संयत है । वह यथाख्यात - संयत से किचित् न्यून है ।
मोहनीय कर्म के उपशान्त अथवा क्षीण होने पर जो छद्मस्थ अथवा जिन ( केवली) है वह यथाख्यात - संयत है ।
वेद-पद
४५९. भन्ते ! क्या सामायिक संयत सवेदक होता है ? अवेदक होता है ?
गौतम ! सवेदक होता है अथवा अवेदक होता है। यदि सवेदक होता है तो इसी प्रकार जैसा कषाय-कुशील (भ. २५/२९१,२९२) की भांति निरवशेष वक्तव्यता । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय- संयत की वक्तव्यता ।
परिहारविशुद्धिक-संयत की पुलाक (भ. २५/२८६,२८७) की भांति वक्तव्यता। सूक्ष्मसंपराय - संयत और यथाख्यात - संयत की निर्ग्रन्थ (भ. २५/२९३) की भांति वक्तव्यता ।
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