Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २५ : उ. ८-१२ : सू. ६२१-६३१
भगवती सूत्र तीन समय वाली विग्रह-गति से उपपन्न होते हैं। उन जीवों के वैसी शीघ्र गति है, वैसा शीघ्र गति-विषय प्रज्ञप्त है। ६२२. भन्ते! जीव किस प्रकार पर-भव के आयुष्य का बन्धन करते हैं? गौतम! अध्यवसाय-योग-निर्वर्तित-करणोपाय के द्वारा (पर-भव का आयुष्य बांधते हैं), इस प्रकार वे जीव पर-भव के आयुष्य का बंध करते हैं।। ६२३. भन्ते! उन जीवों के गति का प्रवर्तन कैसे होता है? गौतम! उन जीवों का आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय होने पर उन जीवों के गति का प्रवर्तन होता है। ६२४. भन्ते! क्या वे जीव अपनी ऋद्धि से (पर-भव में) उत्पन्न होते हैं? पर-ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं? गौतम! अपनी ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं, पर-ऋद्धि से उत्पन्न नहीं होते। ६२५. भन्ते! क्या वे जीव आत्म-कर्म से उत्पन्न होते हैं? पर-कर्म से उत्पन्न होते हैं?
गौतम! आत्म-कर्म से उत्पन्न होते हैं, पर-कर्म से उत्पन्न नहीं होते। ६२६. भन्ते! क्या वे जीव आत्म-प्रयोग से उत्पन्न होते हैं? पर-प्रयोग से उत्पन्न होते हैं?
गौतम! वे जीव आत्म-प्रयोग से उत्पन्न होते हैं, पर-प्रयोग से उत्पन्न नहीं होते। ६२७. भन्ते! असुरकुमार किस प्रकार उत्पन्न होते हैं? नैरयिक जीवों की भांति अविकल रूप से वक्तव्यता यावत् पर-प्रयोग से उपपन्न नहीं होते (भ. २५/६२०-६२६)। इसी प्रकार एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर यावत् वैमानिक की वक्तव्यता। एकेन्द्रिय जीवों की इसी प्रकार वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-चार समय की विग्रह-गति से उत्पन्न होते हैं। शेष (शेष दण्डकों के विषय में) पूर्ववत्। ६२८. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है, इसी प्रकार यावत् भगवान् गौतम (संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए) विहरण कर रहे हैं।
नवां-बारहवां उद्देशक (नवां उद्देशक) ६२९. भन्ते! भवसिद्धिक-नैरयिक-जीव किस प्रकार उपपन्न होते हैं? गौतम! जिस प्रकार कोई प्लवक कूदता हुआ....शेष पूर्ववत्। यावत् वैमानिक (भ. २५/ ६२०-६२७) की वक्तव्यता । ६३०. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (दशवां उद्देशक) ६३१. भन्ते! अभवसिद्धिक-नैरयिक-जीव किस प्रकार उपपन्न होते हैं? गौतम! जिस प्रकार कोई प्लवक कूदता हुआ.....शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार यावत् वैमानिक (भ. ६२०-६२७) की वक्तव्यता।
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