Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ३४ : उ. २ : सू. ४३-४८ स्थान पर प्रज्ञप्त हैं), जैसे - रत्नप्रभा आदि, जिस प्रकार पण्णवणा के द्वितीय पद 'स्थान-पद' (सू. १,२) में प्रज्ञप्त हैं, इसी प्रकार यावत् 'द्वीपों और समुद्रों में' तक समझना चाहिए, यहां अनन्तर- उपपन्न - बादर - पृथ्वीकायिक- जीवों के स्थान प्रज्ञप्त हैं, उपपात की अपेक्षा से सर्व लोक में अनन्तर - उपपन्न - बादर - पृथ्वीकायिक का स्थान हैं। मारणांतिक - - समुद्घात की अपेक्षा से सर्व लोक में अनन्तर - उपपन्न - बादर - पृथ्वीकायिक के स्थान हैं। अपने स्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में अनन्तर - उपपन्न - बादर- पृथ्वीकायिक के स्थान हैं। अनन्तर - उपपन्न - सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक- जीव एक प्रकार के हैं, अविशेष और नानात्वरहित हैं, सम्पूर्ण लोक में व्याप्त बतलाये गये हैं, हे श्रमणायुष्मन् ! इसी प्रकार इस क्रम से सभी एकेन्द्रिय-जीव के विषय में बतलाना चाहिए। अपने स्थान की अपेक्षा से सभी जीवों के स्थान जिस प्रकार पण्णवणा के स्थान - पद (सू. १, २) में बतलाये गये हैं वैसे समझने चाहिए। बादर - पृथ्वीकायिक आदि पर्याप्तक- जीवों के उपपात, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से जैसे बतलाये गये वैसे ही उन बादर-जीवों के अपर्याप्तकों के बतलाने चाहिए। जैसे पृथ्वीकायिक- जीवों के बतलाये हैं वैसे ही सभी सूक्ष्म जीवों के बतलाने चाहिए यावत् वनस्पतिकायिक-जीवों तक ।
४४. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न - सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक- जीवों के कर्म-प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त हैं? गौतम! अनन्तर- उपपन्न - सूक्ष्म - पृथ्वीकायिक- जीवों के आठ कर्म - प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार जैसे एकेन्द्रिय- शतक में अनन्तर - उपपन्न - उद्देशक में प्रज्ञप्त हैं वैसे ही प्रज्ञप्त हैं, वैसे ही कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करते हैं, वैसे ही कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं, यावत् (अनन्तर- उपपन्न - बादर-वनस्पतिकायिक जीव) तक ।
४५. भन्ते ! अनन्तर - उपपन्न - एकेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? जैसा औधिक- उद्देशक में बतलाया गया है वैसा ही बतलाना चाहिए ।
४६. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न - एकेन्द्रिय-जीवों के कितने समुद्घात प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! अनन्तर- उपपन्न - एकेन्द्रिय-जीव के दो समुद्घात प्रज्ञप्त हैं, जैसे - वेदना - समुद्घात और कषाय-समद्घात ।
४७. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न - एकेन्द्रिय-जीव क्या तुल्य-स्थिति वाले होते हैं तुल्य-विशेषाधिक कर्म करने वाले होते हैं उसी प्रकार पृच्छा ।
गौतम! कुछेक तुल्य-स्थिति वाले अनन्तर - उपपन्न - एकेन्द्रिय-जीव तुल्य-विशेषाधिक कर्म करने वाले होते हैं, कुछेक तुल्य-स्थिति वाले अनन्तर - उपपन्न - एकेन्द्रिय जीव वेमात्र - - विशेषाधिक कर्म करने वाले होते हैं ।
४८. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् वेमात्र - विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं ?
गौतम! अनन्तर-उपपन्न- एकेन्द्रिय-जीव दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- कुछेक अनन्तर - उपपन्न-एकेन्द्रिय-जीव समान आयु वाले और एक साथ उपपन्न हैं, कुछेक अनन्तर - उपपन्न- एकेन्द्रिय-जीव समान आयु वाले और भिन्न काल में उपपन्न हैं । इनमें जो अनन्तर-उपपन्न
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