Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२६
२ पृथ्वी में
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३.३
१
वैसा समझना चाहिए।
है ?
(उनकी संख्या) ३-४ अधः सप्तमी तक भी
है-?
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है ?
२. इसी प्रकार
२
४
と
२
३
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२
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५.
२
३
२९ १
२९
२
पृथ्वी के
३१ २.
१
नारकी) भी बतलाना चाहिए
के छठे पद 'अवक्रान्ति' (सू.
७७-८०)
अशुद्ध
यावत् अधः सप्तमी' तक
-उद्देशक की भांति
वह वक्तव्य है।
- पृथ्वी के
है....?
सम्पूर्ण
है। यावत् 'पर प्रयोग
होते' तक।
सम्पूर्णतया
'अधः सप्तमी तक
भी।
उद्देशक में पहले बतलाया गया है।
-उद्देशक में बताया गया है।
शुद्ध
सम्पूर्णतया वक्तव्य है
-उद्देशक में बताया गया है।
-उद्देशक में बतलाया गया है।
उद्देशक बताये
- पृथ्वी में
पृथ्वी
नारकी) में भी, (वक्तव्य है)
के 'अवक्रान्ति पद' (६/७७-८०)
है० ? (वक्तव्य है)।
भी, बालुकाप्रभा
भी, इस प्रकार बालुकाप्रभा इसी प्रकार वक्तव्य है, चारों युग्मों (वक्तव्य है) इसी प्रकार चारों युग्मों में भी इसी प्रकार
में भी
-उद्देशक की भांति
-उद्देशक (भ. ३१/१३-१६) की
भांति
हैं० ?
(वैसा समझना चाहिए)। हैं० ? (परिमाण)
अधः सप्तमी में भी है० ?
यावत् अधः सप्तमी में
- उद्देशक (भ. ३१/१२-१६) की भांति
(वह वक्तव्य है) - पृथ्वी में
निरवशेष
है यावत् पर प्रयोग
होते। निरवशेष
अधः सप्तमी में।
भी (वक्तव्य है)।
उद्देशक (भ. ३१/४, ८, ९, १०)
में (उक्त है, वैसे वक्तव्य है)।
- उद्देशक (भ. ३१/१२-१६) उक्त
है) निरवशेष वक्तव्य है
- उद्देशक (भ. ३१/१८) में (बताया गया है)
- उद्देशक (भ. ३१/२०, २१) में (उक्त है)। -उद्देशक (भ. ३१/२३, २४, २६, २७) बताये
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२
अशुद्ध
शुद्ध
यावत् 'कापोतलेश्य उद्देशक' तक। यावत् कापोतलेश्य उद्देशक तक। करना चाहिए। शेष
करवाना चाहिए, शेष
-जीवों के बतलाये गये हैं।
-जीवों (भ. ३१ / २३, २४, २६, २९) के (बतलाये गये हैं) ।
उसी प्रकार (वक्तव्य है) यावत्
३,४ करते' तक (भ. २५ / ६२० ६२६) करते तक ।
१
-जीव ?
- जीव० ?
२
सारे
(सारे
चाहिए।
चाहिए)।
'अधः सप्तमी पृथ्वी' तक समझना अधः सप्तमी- पृथ्वी के विषय में चाहिए।
२
उसी प्रकार यावत् 'परप्रयोग
होते' तक
अट्टाईस
२
शतक ३२
हैं..... जैसे पण्णवणा के छट्टे पद
(सू. ९९
वैसे यहां वक्तव्य है।
वे कितने
वे चार
वे जीव
गमक यावत् 'आत्म-प्रयोग
शतक ३३
एकेन्द्रियों की कर्म प्रकृतियों का पद वनस्पतिकायिक | (पृथ्वीकायिक- जीव) (सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव )
'वनस्पतिकायिक' वक्तव्य है। पृथ्वीकायिक जीव २ सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव
२
-जीवों तक
अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी-कायिकजीवों के
-जीव (अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक-जीवों के)
पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक- जीवों के (पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक- जीवों के) समझना चाहिए (समझना चाहिए)
अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव (अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-जीव) समझना चाहिए (समझना चाहिए)
एकेन्द्रिय जीवों के कर्म-बन्ध (एकेन्द्रिय जीवों के कर्म बन्ध वक्तव्य हैं वक्तव्य हैं) अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक जीव (अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-जीव)
४३
- जीव.... ?
-शतक में सम्पूर्णतया
परप्रयोग
होते ।
अट्ठाईस
है ?.... जैसे पण्णवणा के अवक्रान्ति
पद (६ / ९९-१००)
(वैसे यहां वक्तव्य है) ।
वे (क्षुल्लक कृतयुग्म-नैरयिक- जीव) कितने
वे (क्षुल्लक कृतयुग्म नैरयिक- जीव)
चार
वे (क्षुल्लक कृतयुग्म नैरयिक) जीव गमक (भ. २५ / ६३०-६२६) यावत आत्म-प्रयोग
(ज्ञातव्य है)। - जीव ० ?
-शतक (भ. ३१/१-४२) में निरवशेष
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९०० ३७
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३९ ५
४०
४०
३
अशुद्ध
जानने चाहिए। वनस्पतिकायिक तक वक्तव्य हैं। अनन्तर उपपन्न (प्रथम समय के) - पृथ्वीकायिक जीव जानने चाहिए।
३
अनन्तर
जीवों के
अन्तरायिक
३२ २ प्रथम
चाहिए।
४
अनन्तर
जीवों के
अन्तरायिक । इसी
वनस्पतिकायिक । अनन्तर उपपन्न
सूक्ष्म बादरवायुकायिक, चाहिए।
अनन्तर
- जीव
वनस्पतिकायिक
जीव ।
वनस्पतिकायिक जीव
तक (भ. ३३/१२)
परम्पर
-जीव
आदि)
-उद्देशक की भांति वक्तव्य हैं।
- उद्देशक में सम्पूर्णतया
जानना चाहिए (कर्म-प्रकृतियों का)
कृष्ण
-जीव
- उद्देशक की
- उद्देशक में
प्रकार
वनस्पतिकायिक |
उद्देशक बतलाया
'वेदन करते हैं' तक वक्तव्य है
शुद्ध
(जानने चाहिए) यावत्वनस्पतिकायिक |
(अनन्तर उपपन्नक (प्रथम समय के) - पृथ्वीकायिक-जीव)
(जानने चाहिए)।
(अनन्तर-जीवों के)
आन्तरायिक
(अनन्तर
-जीवों के) आन्तरायिक। इसी
वनस्पतिकायिक तक (ज्ञातव्य है)।
(अनन्तर उपपत्रक सूक्ष्म बादर- वायुकायिक,
चाहिए 1)
(अनन्तर-जीव)
वनस्पतिकायिक
-जीव ।
वनस्पतिकायिक जीव तक (वक्तव्य
है) ।
(भ. ३३ / १२) (वक्तव्य है)।
(परम्पर
-जीव)
(आदि),
- उद्देशक (भ. ३३/१४) की भांति (वक्तव्य हैं)।
- उद्देशक (भ. ३३/५-१३) निरवशेष
वक्तव्य है (कर्म-प्रकृतियों) का
(के कर्म प्रकृति के विषय में)
(प्रथम
चाहिए)।
(कृष्ण
-जीव)
- उद्देशक (भ. ३३/३-४) की
- उद्देशक (भ. ३३ / ५-३३) में प्रकार के वनस्पतिकायिक तक।
उद्देशक (भ. ३३/१५-२२) बतलाया
वेदन करते हैं (तक वक्तव्य है)।