Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 579
________________ पृष्ठ ८९१ १३ १ • 8 + - • - 5 7 33333 ८९२ ८९२ ८९२ ८९२ सर्वत्र ८९३ ८९३ सूत्र पंक्ति ८९३ ८९३ ८९३ RRR ८९३ " "1 ८९४ १३ " २२२ २४ ४,५ १ १४-१६ २ ८९३२१,२४४, १ २३ ८९३ २१,२६ २ "" 33 ★ : " ८९३ २६ ८९३ ८९३ २६ २ पृथ्वी में ३ ४ ८९३ २३,२४ २ ३.३ १ वैसा समझना चाहिए। है ? (उनकी संख्या) ३-४ अधः सप्तमी तक भी है-? ७ ३. • r ३ है ? २. इसी प्रकार २ ४ と २ ३ ३ २ २,३ ३ ५. २ ३ २९ १ २९ २ पृथ्वी के ३१ २. १ नारकी) भी बतलाना चाहिए के छठे पद 'अवक्रान्ति' (सू. ७७-८०) अशुद्ध यावत् अधः सप्तमी' तक -उद्देशक की भांति वह वक्तव्य है। - पृथ्वी के है....? सम्पूर्ण है। यावत् 'पर प्रयोग होते' तक। सम्पूर्णतया 'अधः सप्तमी तक भी। उद्देशक में पहले बतलाया गया है। -उद्देशक में बताया गया है। शुद्ध सम्पूर्णतया वक्तव्य है -उद्देशक में बताया गया है। -उद्देशक में बतलाया गया है। उद्देशक बताये - पृथ्वी में पृथ्वी नारकी) में भी, (वक्तव्य है) के 'अवक्रान्ति पद' (६/७७-८०) है० ? (वक्तव्य है)। भी, बालुकाप्रभा भी, इस प्रकार बालुकाप्रभा इसी प्रकार वक्तव्य है, चारों युग्मों (वक्तव्य है) इसी प्रकार चारों युग्मों में भी इसी प्रकार में भी -उद्देशक की भांति -उद्देशक (भ. ३१/१३-१६) की भांति हैं० ? (वैसा समझना चाहिए)। हैं० ? (परिमाण) अधः सप्तमी में भी है० ? यावत् अधः सप्तमी में - उद्देशक (भ. ३१/१२-१६) की भांति (वह वक्तव्य है) - पृथ्वी में निरवशेष है यावत् पर प्रयोग होते। निरवशेष अधः सप्तमी में। भी (वक्तव्य है)। उद्देशक (भ. ३१/४, ८, ९, १०) में (उक्त है, वैसे वक्तव्य है)। - उद्देशक (भ. ३१/१२-१६) उक्त है) निरवशेष वक्तव्य है - उद्देशक (भ. ३१/१८) में (बताया गया है) - उद्देशक (भ. ३१/२०, २१) में (उक्त है)। -उद्देशक (भ. ३१/२३, २४, २६, २७) बताये पृष्ठ ८९४ ३३ २ ३५ ३ ३७,३९ २ 37 " :: ८९५ ८९५ " ८९५ " ८९५ **** " " " ८९५ ८९५ ८९६ " ८९६ " ८९६ " " "} ८९७ " सूत्र पंक्ति ८९७ ४१ ४९ ४२ र १ २ २ ३ " ३ ४ ४ " ४ or mo " २ ४ ५ ६ ७,८ ९ ३ ८९७ १० ३ २ ३ ६ १ ६. र ६ २ १२ ४ १ २ १ ३ २ १ शीर्षक x २,३ ४ २ " " १०, ११ २ २ अशुद्ध शुद्ध यावत् 'कापोतलेश्य उद्देशक' तक। यावत् कापोतलेश्य उद्देशक तक। करना चाहिए। शेष करवाना चाहिए, शेष -जीवों के बतलाये गये हैं। -जीवों (भ. ३१ / २३, २४, २६, २९) के (बतलाये गये हैं) । उसी प्रकार (वक्तव्य है) यावत् ३,४ करते' तक (भ. २५ / ६२० ६२६) करते तक । १ -जीव ? - जीव० ? २ सारे (सारे चाहिए। चाहिए)। 'अधः सप्तमी पृथ्वी' तक समझना अधः सप्तमी- पृथ्वी के विषय में चाहिए। २ उसी प्रकार यावत् 'परप्रयोग होते' तक अट्टाईस २ शतक ३२ हैं..... जैसे पण्णवणा के छट्टे पद (सू. ९९ वैसे यहां वक्तव्य है। वे कितने वे चार वे जीव गमक यावत् 'आत्म-प्रयोग शतक ३३ एकेन्द्रियों की कर्म प्रकृतियों का पद वनस्पतिकायिक | (पृथ्वीकायिक- जीव) (सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव ) 'वनस्पतिकायिक' वक्तव्य है। पृथ्वीकायिक जीव २ सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव २ -जीवों तक अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी-कायिकजीवों के -जीव (अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक-जीवों के) पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक- जीवों के (पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक- जीवों के) समझना चाहिए (समझना चाहिए) अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव (अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-जीव) समझना चाहिए (समझना चाहिए) एकेन्द्रिय जीवों के कर्म-बन्ध (एकेन्द्रिय जीवों के कर्म बन्ध वक्तव्य हैं वक्तव्य हैं) अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक जीव (अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-जीव) ४३ - जीव.... ? -शतक में सम्पूर्णतया परप्रयोग होते । अट्ठाईस है ?.... जैसे पण्णवणा के अवक्रान्ति पद (६ / ९९-१००) (वैसे यहां वक्तव्य है) । वे (क्षुल्लक कृतयुग्म-नैरयिक- जीव) कितने वे (क्षुल्लक कृतयुग्म नैरयिक- जीव) चार वे (क्षुल्लक कृतयुग्म नैरयिक) जीव गमक (भ. २५ / ६३०-६२६) यावत आत्म-प्रयोग (ज्ञातव्य है)। - जीव ० ? -शतक (भ. ३१/१-४२) में निरवशेष सूत्र पंक्ति | पृष्ठ ८९७ १२ ५. ८९७ ३ " BER***** ****** ८९७ १६ ८९७ १७ ८९७ १७ " ८९८ १८ ८९८ १८ ८९८ १८ १५ १६ " ८९८ १८ १८ ८९८ १९,२० " ८९८ १८ * ८९८ १७ ८९८ " ८९९ " १९-२१, ५ २० ८९८ २० २२ १९ ९०० ९०० " ===4° " 1 " AWASAAWAN K ३. ३५ ws : mp55 " २३ २ २३ ३ x = = 4 x २. "" : : २ ८९९ २७-३१ १ के कर्म प्रकृति के विषय में " ८९९ ३६ ९०० ३७ २ ९०० ३९ ३ ३९ ५ ४० ४० ३ अशुद्ध जानने चाहिए। वनस्पतिकायिक तक वक्तव्य हैं। अनन्तर उपपन्न (प्रथम समय के) - पृथ्वीकायिक जीव जानने चाहिए। ३ अनन्तर जीवों के अन्तरायिक ३२ २ प्रथम चाहिए। ४ अनन्तर जीवों के अन्तरायिक । इसी वनस्पतिकायिक । अनन्तर उपपन्न सूक्ष्म बादरवायुकायिक, चाहिए। अनन्तर - जीव वनस्पतिकायिक जीव । वनस्पतिकायिक जीव तक (भ. ३३/१२) परम्पर -जीव आदि) -उद्देशक की भांति वक्तव्य हैं। - उद्देशक में सम्पूर्णतया जानना चाहिए (कर्म-प्रकृतियों का) कृष्ण -जीव - उद्देशक की - उद्देशक में प्रकार वनस्पतिकायिक | उद्देशक बतलाया 'वेदन करते हैं' तक वक्तव्य है शुद्ध (जानने चाहिए) यावत्वनस्पतिकायिक | (अनन्तर उपपन्नक (प्रथम समय के) - पृथ्वीकायिक-जीव) (जानने चाहिए)। (अनन्तर-जीवों के) आन्तरायिक (अनन्तर -जीवों के) आन्तरायिक। इसी वनस्पतिकायिक तक (ज्ञातव्य है)। (अनन्तर उपपत्रक सूक्ष्म बादर- वायुकायिक, चाहिए 1) (अनन्तर-जीव) वनस्पतिकायिक -जीव । वनस्पतिकायिक जीव तक (वक्तव्य है) । (भ. ३३ / १२) (वक्तव्य है)। (परम्पर -जीव) (आदि), - उद्देशक (भ. ३३/१४) की भांति (वक्तव्य हैं)। - उद्देशक (भ. ३३/५-१३) निरवशेष वक्तव्य है (कर्म-प्रकृतियों) का (के कर्म प्रकृति के विषय में) (प्रथम चाहिए)। (कृष्ण -जीव) - उद्देशक (भ. ३३/३-४) की - उद्देशक (भ. ३३ / ५-३३) में प्रकार के वनस्पतिकायिक तक। उद्देशक (भ. ३३/१५-२२) बतलाया वेदन करते हैं (तक वक्तव्य है)।

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