Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 581
________________ अशुद्ध | १२ | वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पाद वनस्पतिकायिकों के पर्याप्तक-जीवों में उपपात योग्यता प्राप्त) पृष्ठ सूत्र पंक्ति अशुद्ध योग्यता प्राप्त) वक्तव्य है | योग्यता प्राप्त) बतलाना चाहिए। | में जानना चाहिए। का जैसे |का उपपात बतलाया वाली विग्रह योगता प्राप्त) पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ९१५] ३६४ पर्याप्तक' तक। पर्याप्तकों की (वक्तव्यता)। | ३७ | २ | है? जैसे पण्णवणा के छट्टे पद है? जैसे (पण्णवणा के) अवक्रान्ति अवक्रान्ति (सू. ८२-८५) में पद (६/८२-८५) में | ३ |उत्पाद बतलाया गया है वैसा वक्तव्या उपपात (बतलाया गया है वैसा वक्तव्य योग्यता प्राप्त) (वक्तव्य है) योग्यता-प्राप्त) (बतलाना चाहिए। में भी (जानना चाहिए। का उपपात जैसे का (उपपात) बतलाया वाली (विग्रह | वह जीव (वह जीव) समवहत हुआ था | समवहत होता है योग्यता प्राप्त योग्यता प्राप्त | होता है)? | होता है).? सम्पूर्ण रूप से बतलाना चाहिए | निरवशेष (बतलाना चाहिए) 'सूक्ष्म-वनस्पतिकायिक-पर्याप्तक | सूक्ष्म-वनस्पतिकायिक पर्याप्तक वनस्पतिकायिक-पर्याप्तक-जीव के वनस्पतिकायिकों के पर्याप्तक-जीवों | १ ३८ | २ ३८ | ३ एकेन्द्रिय जीवों गौतम! एकन्द्रिय जीवों के चार -समुद्घात। एकेन्द्रिय-जीवों गौतम ! (एकेन्द्रिय-जीवों के) चार -समुद्घात वैक्रिय)। करते हैं) ? तुल्य-स्थितिवाले है).? ३९ ४.५ करते हैं? तुल्य-स्थिति वाले ३९१४-१५ एकेन्द्रिय-जीव | ४०१,३- एकेन्द्रिय-जीव ६,८, (एकेन्द्रिय-जीव) (एकेन्द्रिय-जीव) चरमान्त' तक में बतलाना चाहिए। | ३४ | इसी प्रकार समझना चाहिए ६,३५ चाहिए। (उत्तर ४४,४4 बतलाना चाहिए चरमान्त में (बतलाना चाहिए। उसी प्रकार (समझना चाहिए) चाहिए।) (उत्तर .. (बतलाना चाहिए) योग्यता प्राप्त) योग्यता-प्राप्त) गमक सम्पूर्ण रूप से बतलाना गमक (भ. ३४/१४) निरवशेष चाहिए। (भ. ३४/१४) यावत् बतलाना चाहिए यावत् २४ | ९ |'बादर-वनस्पति-कायिक पर्याप्तक |बादर-वनस्पतिकायिक के पर्याप्तक| जीव -जीव का ९ वनस्पतिकायिक वनस्पतिकायिकों के -पर्याप्तक जीवों में उपपात' तक |-पर्याप्तक-जीवों में उपपात (तक बतलाना चाहिए। बतलाना चाहिए। ६ वह जीव (वह जीव) 'उत्पन्न होता है? उपपन्न होता है? २६ | ३ 'अर्घ चक्रवाला' अर्धचक्रवाला ऋजुआयताश्रेणी ऋजुआयता श्रेणी ८.१० | योग्यता प्राप्त) योग्यता प्राप्त) | 'उत्पन्न होता है। उपपन्न होता है। १३ मारणान्तिक- समुद्घात मारणान्तिक-समुद्घात १४ पृथ्वीकायिक जीवों पृथ्वीकायिक-जीवों के अप्कायिक जीवों अप्कायिक-जीवों | तेजस्कायिक जीवों तेजस्कायिक-जीवों १,१८ वायुकायिक जीवों वायुकायिक-जीवों १८ वनस्पतिकायिक वनस्पतिकायिकजीवों २० पृथ्वीकायिक-पर्याप्तक जीव पृथ्वीकायिक पर्याप्तक-जीव सम्पूर्ण रूप में निरवशेष | सूक्ष्म -कायिक-पर्याप्तक जीव |-कायिक पर्याप्तक-जीव | वनस्पतिकायिक-पर्याप्तक जीवों' वनस्पतिकायिक पर्याप्तक-जीवों' के| | | तक के | अपर्यात अपर्याप्त ६ वह जीव (वह जीव) | एकतोवक्रा-श्रेणी एकतोवक्रा श्रेणी | द्वितोवक्रा-श्रेणी द्वितोवक्रा श्रेणी २८ ६,८ | योग्यता प्राप्त योग्यता प्राप्त २८ | ११ | उत्पन्न उपपात | 'सूक्ष्म-वनस्पति-कायिक-पर्याप्तक सूक्ष्म-वनस्पतिकायिक पर्याप्तक ५६ | 'सूक्ष्म वनस्पतिकायिक-पर्याप्तक | सूक्ष्म-वनस्पतिकायिक पर्याप्तक वनस्पतिकायिक-पर्याप्तक-जीवों में क्मस्पतकायिकों के पर्याप्तक-जीवों में | तक (पूर्व की तरह जाननी चाहिए)। ३ |(पण्णवणा के दूसरे स्थान-पद (सू (पण्णवणा के) स्थान-पद (२/१-|| १-१५) में बतलाया गया है |१५) में (बतलाया गया है) । २ | गौतम ! अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वी- गौतम!(अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक कायिक जीवों के -जीवों के) ३ अन्तराय आन्तरायिक | पर्याप्त-बादर-एकेन्द्रिय-पृथ्वीकायिकपर्याप्त-बादर-एकेन्द्रिय-पृथ्वीकायिक जैसे एकेन्द्रिय-शतक | जैसे एकेन्द्रिय-शतकों ६ बतलाया गया है (बतलाया गया है) ६ | 'बादर बादर ६-७ | के पर्याप्तक' तक के पर्याप्तकों की वक्तव्यता। गौतम! अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वी- गौतम! (अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वी कायिक जीव सप्तविध- कायिक-जीव) सप्तविध| ३५,३६ ३ |-शतक -शतकों बतलाया गया है (बतलाया गया है) यावत् 'बादर यावत् पर्याप्त-बादरजीवों' तक। जीव। | गौतम । अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक गौतम! (अपर्याप्ति-सूक्ष्म-पृथ्वीजीव चौदह कायिक-जीव) चौदह | ४० | २ 'वेमात्र वेमात्र , हैं तक? २-१३ करते हैं। करते हैं। गौतम! गौतम! १३ | 'वेमात्र वेमात्र १४ हैं) तक वक्तव्य हैं। (भ. ३४/३९ हैं (भ. ३४/३९)। २ अनन्तर (अनन्तर-जीव -जीव) ४ शतक में बतलाये हैं शतकों में (बतलाये हैं) |'बादर-वनस्पतिकायिक' तक बादर-वनस्पतिकायिक (तक समझने समझने चाहिए चाहिए। | ४ स्थान पर प्रज्ञप्त हैं), जैसे स्थान प्रज्ञप्त है), जैसे ४३ | ४.५ प्रकार पण्णवणा के द्वितीयपद प्रकार (पण्णवणा के द्वितीय पद) |'स्थान-पद' (सू. १,२) में 'स्थान-पद' (२/१,२) में ५-६ तक समझना चाहिए. (तक समझना चाहिए), ,, ७ -पृथ्वीकायिक का स्थान हैं। -पृथ्वीकायिक के स्थान हैं। ४३ | ११ नानात्वरहित नानात्व-रहित ., १३ प्रकार पण्णवणा के स्थान-पद (सू.प्रकार (पण्णवणा के) स्थान-पद १,२) में (२/१,२) में ४३१३,१४ बतलाये गये हैं वैसे समझने चाहिए। (बतलाये गये हैं वैसे समझने चाहिए। | १४ |आदि पर्याप्तक-जीवों के उपपात आदि के पर्याप्तकों के उपपात, |१५ बतलाये गये (बतलाये गये) १६ बतलाने चाहिए। (बतलाने चाहिए। अनन्तर |(अनन्तर२ -जीवों के |-जीवों के) ३ |-उद्देशक में प्रज्ञप्त हैं |-उद्देशक (भ. ३३/१७-२०) प्रज्ञप्त हैं सूक्ष्म वैसे यावत् ४ | (पुरुषवेदावध्य) तक। 'बादर पुरुषवेदवध्य बादर

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