Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पृष्ठ सूत्र पक्ति
अशुद्ध चाहिए, शेष उसी प्रकार
४
चाहिए), शेष पूर्ववत् (भ. ४१/५०| की भांति) तथा
पृष्ठ | सूत्र | पंक्ति अशुद्ध |९५२ ६३, ४ | प्रकार ९५३ ६५ १ प्रकार चार युग्मों के
५ बतलाये गये तथा ५,६ बतलाये गये, वे
९५३
प्रकार (भ. ४१/१५,२४) प्रकार (भ. ४१/६३,२६-३५ की भांति) चार युग्मों (अभवसिद्धिकराशियुग्म-कृतयुग्म-जीवों, अभवसिद्धिक-राशियुग्म-योज-जीवों, अभवसिद्धिक-राशियुग्म-द्वापरयुग्मजीवों, अभवसिद्धिक-राशियुग्मकल्योज-जीवों) के (बतलाने चाहिए) प्रकार (भ. ४१/३६,६३-६५ की भांति) चारों (बतलाने चाहिए)
१५
१९५४
९५३| ६५ | १ | बतलाने चाहिए ९५३| ६६ | २ | प्रकार चारों
पृष्ठ | सूत्र पक्ति अशुद्ध
-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों (-राशियुग्म-जीवों) के (विषय में)
के विषय में ९५३
-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों (-राशियुग्म-जीवों) समान
समान (भ. ४१/५४-६१ की भांति) अट्ठाईस उद्देशक
अट्ठाईस (उनतीसवां-छप्पनवां)
उद्देशक |-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों (-राशियुग्म-जीवों) अभिलाप
अभिलाप के द्वारा समान अट्ठाईस उद्देशक करने समान (भ. ४१/६३-७२) अट्ठाईस
(सत्तावन से चौरासी) उद्देशक करने -राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों (-राशियुग्म-जीवों) समान अट्ठाईस उद्देशक समान (भ, ४१/६३-७२) अट्ठाईस
(सत्तावन से चौरासी) उद्देशक ९५४ २ -राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों (-राशियुग्म-जीवों) समान अट्ठाईस उद्देशक होते समान (भ. ४१/५४-६२) अट्ठाईस
(उनतीस से चौपत्र) उद्देशक होते ४ 'शुक्ललेश्य
शुक्ललेश्यवैमानिक तक यावत्
वैमानिक यावत् १ ये जीव
(ये जीव) यवत् ७,८ विहरण कर रहे हैं।
रहते हैं।
|९५३६-६६, २ | बतलाने चाहिए
|९५३/६७/ १
प्रकार नीललेश्य-अभवसिद्धिक- राशियुग्म
|९५३६७-७१ १ -कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के ९५३ ६८-७६१ -अभवसिद्धिक९५३| ६८ १ | उद्देशक
प्रकार (भ. ४१/३६.६३-६५ की भांति) नीललेश्य-अभवसिद्धिक (-1 -राशियुग्म|-जीवों) के
(-अभवसिद्धिक| उद्देशक (भ. ४१/३६,६३-६५ की भांति) (बतलाने चाहिए) उद्देशक (भ. ४१/४८,६३-६५ की
यावत्
९५३ ६९-७९१,२ | बतलाने चाहिए
६९| १ | उद्देशक
भांति)
२ सम्पूर्ण रूप से
निरवशेष २ -उद्देशक बतलाये गये (भ. ४१४ |-उद्देशक (भ. ४१/३-३५) |२६-३५)
(बतलाए गए) ३ | बतलाने चाहिए।
(बतलाने चाहिए),
(होते हैं)। होते हैं?' -राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों -राशियुग्म-कृतयुग्म-जीवों के (विषय के विषय में उद्देशक होते हैं
उद्देशक (भ. ४१/३६-४३) होते हैं, | ३ | कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक-राशियुग्म- (कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक-राशियुग्म
कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के विषय में जीवों) के (विषय में) | १ प्रकार नीललेश्य-भवसिद्धिक- प्रकार (भ. ४१/५६) नीललेश्य
राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों भवसिद्धिक-राशियुग्म-जीवों) के के विषय में
(विषय में) प्रकार कापोतलेश्य-भवसिद्धिक- प्रकार (भ. ४१/५६) कापोतलेश्य राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों भवसिद्धिक-राशियुग्म जीवों) के के विषय में
(विषय में) भवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म- भवसिद्धिक-राशियुग्म-जीवों) के
नैरयिक-जीवों के विषय में (विषय में) २ के समान बतलाने चाहिए। (भ. ४१/४८) के समान (बतलाने
चाहिए। १ भवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म- (भवसिद्धिक-राशियुग्म-जीवों)
| नैरयिक-जीवों १-२ | उद्देशक करने चाहिए। उद्देशक (औधिक-उद्देशकों (भ. ४१//
५०) के समान करने चाहिए)। १ भवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म- (भवसिद्धिक-राशियुग्म-जीवों) के
| नैरयिक-जीवों के विषय में (विषय में) ६१ | २ | उद्देशकों के समान बतलाने चाहिए। उद्देशकों (भ. ४१/५२) के समान
(बतलाने चाहिए। २-३ -राशियुष्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों | -राशियुग्म-जीवों) के (विषय में)
के विषय में ३ (भ. ४१/५४-६१) (भ. ४१/५४-६२) २ (भ. ४१/३) में बतलाया (भ. ४१/३-२४) (बतलाया ., चाहिए,
चाहिए), अभवसिद्धिक
| (अभवसिद्धिक. कृतयुग्म-मनुष्यों
कृतयुग्म-) मनुष्य ३,४ नैरयिक जीव के विषय में समान नैरपिक (-जीव) समान
(बतलाने चाहिए)
| १ | उद्देशक
उद्देशक (भ. ४१/५०,६३-६५ की
भांति) १ | -राशियुग्म
(-राशियुग्म| १ | विषय में
साथ
भी (भ. ४/५२,६३-६५) की भांति २ | ये अट्ठाईस उद्देशक
| इन अट्ठाईसों (सत्तावनवां-चौरासीवां)।
ही अभवसिद्धिक-उद्देशकों में ७१ / २-३ | अभवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म- | मनुष्य नैरयिक-गमक की भांति
मनुष्यों के विषय में अभवसिद्धिक| राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-गमक
की तरह | २ | (भ. ४१/३) बतलाया (भ. ४१/३-२४) (बतलाया | २ | चाहिए।
चाहिए। | २ | जीवों के विषय में
(जीवों) के (विषय में) २ | कृष्णलेश्य- राशियुग्म-कृतयुग्म- कृष्णलेश्य-(राशियुग्म-जीवों)
| नैरयिक-जीवों ९५३/ ७५ | ३ | विषय में बतलाये गये वैसे करने (विषय में चार उद्देशक(भ. ४१/३६
४३) किए गए वैसे चारों ही उद्देशक
बतलाना चाहिए,
करने