Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पंक्ति
है। (यह प्रथम आलापक है।)
पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध
२८ है। ३२ है तक? ३ | १३ | है। यावत्
समुद्घात) से ., भव्य पर्याप्तसर्वत्र | उत्पन्न
जैसे वैसे
है यावत् समुद्घात से) भव्य (पर्याप्तउपपन्न
अशुद्ध । ४ -पृथ्वीकायिक आदि, इसी |-पृथ्वीकायिक......, इस ५ | वनस्पतिकाय'
वनस्पतिकाय ६ जानने चाहिए।
| (जानने चाहिए। | उद्देशक बतलाया
उद्देशक (भ. ३३/२३) बतलाया ३,४ |'वेदन करते हैं' तक वक्तव्य है। वेदन करते हैं (तक वक्तव्य है)। ५ उद्देशक बताये
| उद्देशक (भ. ३३/१-३२) बताये ६ 'अचरम- -चरम
अचरम-चरम ६ जीवों तक बताने चाहिए। जीवों तक (बतलाने चाहिए) शीर्षक | -जीवों के कर्म-प्रकृति-पद -जीवों की कर्म-प्रकृतियों का पद ३ के चार भेद
का भेद-चतुष्क ३,४ | भवसिद्धिक-वनस्पतिकायिक' भवसिद्धिक-वनस्पतिकायिक ३ ज्ञातव्य है
(ज्ञातव्य है) ४ |'अचरम'
अचरम कृष्ण
(कृष्ण-जीव
|-जीव) कृष्ण
(कृष्ण-जीव कृष्ण-लेश्या वाले भव-सिद्धिक (कृष्ण-लेश्या वाले भव-सिद्धिक) -पृथ्वीकायिक-जीव
(-पृथ्वीकायिक-जीव) चार भेद वक्तव्य हैं। | भेद-चतुष्क वक्तव्य है। -उद्देशक
उद्देशक (भ, ३३/५-१३) 'वेदन करते हैं" तक समझना चाहिए वेदन करते हैं (तक समझना चाहिए)।
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-जीव)
यह
| ३ | योग्यता प्राप्त)
योग्यता प्राप्त) ६ वह जीव
(वह जीव) ६ अथवा दो
अथवा पूर्ववत् (भ. ३४/२,३) (दो ७ |है। गौतम!
है।) यावत् गौतम!
है। (यह दूसरा आलापक है।) .. | १० |-जीव
|-जीव का | ४ | ११ | पूर्व कर
पूर्ण कर ४१३,२४ उपपन्न करवाना चाहिए उपपात करवाना चाहिए (उपपात
वक्तव्य है) ., | १४ |-जीव (इस
-जीव) (इस ,, | १७ द्वारा उपपन्न
द्वारा) उपपन्न ४ | १८ | बतलाने चाहिए
(बतलाने चाहिए-) ४ १८-२सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-अपर्याप्तक का (सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-अपर्याप्तक का) ४ १९,२१ अपर्याप्तक में
अपर्याप्तकों में ४ २०,२१ पर्याप्तक में
पर्याप्तकों में ५ | ३ | भव्य मनुष्य
भव्य (मनुष्य ५ | ३ योग्य प्राप्त मनुष्य-क्षेत्र में योग्यता-प्राप्त) मनुष्य-क्षेत्र में | उसी प्रकार
पूर्ववत् | -जीव
-जीव का ९ उत्पन्न
उपपात १२ आलापक
आलापकों १ में.....पृच्छा । २ |-जीव भी
-जीव का भी ४ चाहिए।
चाहिए 'बादर....
बादर
| पृष्ठ | सूत्र पक्ति अशुद्ध २ योग्यता प्राप्त)
योग्यता-प्राप्त) जैसा ७ वैसा ९ जैसी
जैसा -जीव की
-जीव का बतलाई गई वैसी
बतलाया गया वैसा १० अपर्याप्तक और पर्याप्तक में अपर्याप्तकों और पर्याप्तकों का | समुद्घात करवाना
समुद्घात भी करवाना थे, यावत्
थे यावत्३ योग्यता प्राप्त)
योग्यता प्राप्त)
है? , 'यह इस अपेक्षा से कहा जा रहा है। यह इस अपेक्षा से कहा जा रहा है।
|तक। ६ सम्पूर्ण रूप से
निरवशेष बतलाना चाहिए।
(बतलाना चाहिए। | है....इसी
है.? इसी | यह ६ है' तक | 'पर्याप्त
पर्याप्त ७ होने तक वक्तव्य है। होने (तक वक्तव्य है)। ६ वह जीव
(वह जीव) ऋजुआयता यावत्
ऋजुआयता (भ. ३४/३) यावत् वैसा यहां वक्तव्य है। (वैसा यहां वक्तव्य है)। वे भी
उन्हें भी सम्पूर्ण रूप में जानना चाहिए। निरवशेष (जानना चाहिए)। भव्य विश्रेणी
भव्य (विश्रेणी 'उत्पन्न होता है' तक
उपपन्न होता है। |'पर्याप्त
पर्याप्त होने तक वक्तव्य है। होने (तक वक्तव्य है)। वह जीव
(वह जीव) 'अधः सप्तमी तक' बतलानी 'अधः सप्तमी' की (बतलानी चाहिए।
चाहिए)। २ | १. ऋजुआयता यावत् १. ऋजुआयता (भ. ३४/३) यावत् | (भ. ३४/३)। एकतोवक्रा | । एकतोवक्रा गया था (भ. ३४/८३) इसी गया था (भ. ३४/१३)। इसे चाहिए। (भ. ३४/१३) चाहिए (भ. ३४/१३) -जीवों के विषय में पृच्छा? -जीव० (भ. ३४/१३))?
(भ. ३४/१३))
३ है? (भ. ३४/१४) इसी है० (भ. ३४/१४)? इस १८ | |बतलाना चाहिए
(बतलाना चाहिए) १९ | ३ योग्यता प्राप्त)
योग्यता-प्राप्त) ९,२२६ वह जीव
(वह जीव) २० - २ चाहिए। (भ. ३४/३) इसी चाहिए (भ. ३४/३) । इस प्रकार प्रकार यावत्।
यावत्
।
३ अनन्तर३ -जीव ४-५ | दो भेद समझने चाहिए ३ -उद्देशक बतलाया ३ | 'वेदन करते हैं। ३-४ तक समझना चाहिए
ग्यारह उद्देशक ५ -शतक में ५ ।'अचरम' तक समझना चाहिए। १ शतक बताया शीर्षक -जीवों के कर्म-प्रकृति-पद २ | जैसे- पृथ्वीकायिक ३ -शतक
४ नव उद्देशक | ५ | जानने चाहिए
शतक ३४ शीर्षक -जीवों के विग्रह१ | २ एकेन्द्रिय-जीव | ३ योग्यता प्राप्त)
७ वह जीव
(अनन्तर-जीव) | भेद-द्विक (समझना चाहिए) -उद्देशक (भ. ३३/१५-२०) वेदन करते हैं (तक समझना चाहिए) | ग्यारह ही उद्देशक |-शतक (भ. ३३/३९,४०) में अचरम तक (समझना चाहिए)। शतक (भ. ३३/५०-५६) |-जीवों की कर्म-प्रकृतियों का पद
जैसे-पृथ्वीकायिक -शतक (भ. ३३/४७-४८) (नव उद्देशक) | (जानने चाहिए)
बीस स्थानों में उपपात करवाना (बीस स्थानों में उपपात करवाना चाहिए।
चाहिए)। २ की योग्यता
की योग्यता३ प्राप्त)
| -प्राप्त) ५,६ |'यह इस अपेक्षा से कहा जा रहा है' यह इस अपेक्षा से कहा जा रहा है।
तक। ६,७ चार प्रकार
चारों प्रकार ६,७ का भी
में भी ८ | २ भव
| बाद
-जीवों की विग्रह| (एकेन्द्रिय-जीव) योग्यता प्राप्त) (वह जीव)