Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पृष्ठ | सूत्र पंक्ति
अशुद्ध
उपचित यावत् ५८७ |तक (पण्णवणा, १/५१) हैं, ५८७ ८१, जीवों
शुद्ध उपचित (पण्णवणा, १/५०) यावत् तक हैं, -जीवों
पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध
| २ |स्थाल पानक २. त्वचा पानक
३ | ४. शुद्ध पानक ३ चूसे, अथवा ४ चूसे किन्तु २ फली उड़द की फली, अथवा ३ -आजीवक उपासक
आतञ्जल जल से करते हुए इस प्रकार | अयंपुल! का यह
आतञ्चन-जल नहीं था। यावत् नहीं था। यावत् श्रमण घातक आए, यावत्
विनीत । मालुकाकच्छ ३ तपः-कर्म में
|स्थाल-पानक २.त्वचा-पानक शुद्ध-पानक। चूसे अथवा चूसे, किन्तु फली, उड़द की फली अथवा आजीविक-उपासक आतञ्चन-उदक से करते हुए तुम्हें इस प्रकार अयंपुल! क्या यह आतञ्चन-उदक नहीं था यावत् नहीं था यावत् श्रमण-घातक आए यावत् विनीत मालुकाकच्छ तपः-कर्म के साथ
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२ | प्रकृति भद्र शीर्षकx.
१२२
३ रखा हुआ, मार्जारकृत
कुक्कुटमांस अर्थात् चौपतिया
अवधारणकर १० है। गृहस्वामिनी रेवती ने
पृष्ठ सूत्र पंक्ति अशुद्ध |५९३ | ३१ ६ वैमानिक की
वैमानिकों की ३३ | ८ | धर्म कहा यावत्
धर्म का निरुपण किया (ओवाइयं,
सू. ७१,७९) यावत् लोट गई (उववाई, सू. ७१-७९) लोट गई। होते हैं। आयुष्मन्
होते हैं, आयुष्मन् प्रज्ञप्त हैं जैसे
प्रज्ञप्त हैं, जैसे वैमानिक की
वैमानिकों की | कम-पद
कर्म-पद वेद-बंध पद
वेदाबंध-पद | बंध-वेद पद
बंधावेद-पद ५ बंधा-बंध पद
बंधाबंध-पद है, यावत् .
हैं यावत् ९ सिवाय अतिरिक्त क्रिया सिवाय क्रिया ।१ राजगृह नगर यावत् गौतम ने
राजगृह (नगर) (भ. १/४-१०)
यावत् गौतम ने है, यावत्
है यावत् ११ | होते हैं, और
होते हैं और | उस काल उस समय वज्रपाणि | उस काल और उस समय में व्रजपाणि
है?-इन आठ इन आठ संदर्भ म
संदर्भ में मिथ्या दृष्टि हूं?
| मिथ्या-दृष्टि हूं? ९ | दिव्य देवद्युति, दिव्य देवानुभाव | दिव्य देव-द्युति, दिव्य देव-अनुभाव ६,७ | दिव्य देवानुभाव
दिव्य देव-अनुभाव आया था, उसी
आया था उसी दिव्य देवानुभाव
दिव्य देव-अनुभाव ६ | दिव्य-ऋद्धि, दिव्य देवद्युति | दिव्य देव-ऋद्धि, दिव्य देव-द्युति | देवानुभाव लब्ध,
देव-अनुभाव लब्ध, आगे आगे
आगे-आगे परिव्रजन, और
परिव्रजन और किया। वंदन-नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार दिव्य देवानुभाव
दिव्य देव-अनुभाव महाविदेह-वास
महाविदेह क्षेत्र चतुरिन्द्रिय
चतुरिन्द्रियों पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक मनुष्य की जीव
मनुष्यों की जीवों वाणमंतर, ज्योतिष्क
वानमंतरों, ज्योतिष्कों वैमानिक की नैरयिक
वैमानिक नैरयिकों | है? यावत्
है यावत् ६ शर्करा प्रभा की
शर्कराप्रभा के भी (चारों चरमान्तों)
पुलाकृमिक यावत्
पुलाकृमिक (पण्णवणा,१/४९) यावत् तक पण्णवणा, १/४९) हैं, तक है, गुच्छ यावत्
गुच्छ (पण्णवणा, १/३३) यावत् तक (पण्णवणा, १/३३) हैं, पूर्ववात यावत्
पूर्ववात (पण्णवणा, १/२९) यावत् तक (पण्णवणा, १/२९) हैं, तक हैं, अंगार यावत्
अंगार (पण्णवणा, १/२६) यावत् सूर्यकान्तमणि निश्रित सूर्यकान्तमणि-निश्रित तक (पण्णवणा, १/२६) हैं, ओस, यावत्
ओस (पण्णवणा, १/२३) यावत् तक (पण्णवणा, १/२३) हैं, तक हैं. लेगा- बहुलरूप में लेगा-बहुलरूप में शर्करा यावत्
शर्करा (पण्णवणा, १/२०) यावत् | तक (पण्णवणा, १/२०) हैं, | श्वसुर कुल
श्वसुर-कुल |१४३ | कल्प
-कल्प , १५३ | महाविदेह वर्ष
| महाविदेह क्षेत्र
शतक १६ २ | १४. स्तनित।
१४. स्तनित ।।१।। २-४ सर्वत्र | जीव
-जीव ४ | तेजस और
तैजस- और प्राणातिपात क्रिया
| प्राणातिपात-क्रिया प्राणातिपात क्रिया
प्राणातिपात-क्रिया | २ | नैरयिक की
नैरयिकों की वैमानिक की
वैमानिकों की जा रहा है यावत्
जा रहा है यावत् वैमानिक की
वैमानिकों की | ३ मनुष्य की
| मनुष्यों की ३ |-शरीर की
-शरीर जैसे-औदारिक शरीर की वक्तव्यता जैसे औदारिक-शरीर की वक्तव्यता, वैसे
वैसे -योग की
-योग नैरयिक की
नैरयिकों की स्तनितकुमार की
स्तनितकुमारों की ५ चतुरिन्द्रिय की
चतुरिन्द्रियों की | ५ | शेष जीवों की भांति वक्तव्य हैं शेष (जीवों) की जीवों (समुच्चय)
(भ. १६/२८,२९) की भांति | (वक्तव्यता)
१
कहा- देवानुप्रिय
प्रकृति से भद्र सिंह द्वारा रेवती के घर से भैषज्य-आनयन-पद रखा हुआ मार्जारकृत कुक्कुट-मांस-चौपतिया अवधारण कर है। गृहस्वामिनी रेवती ने, गृहस्वामिनी रेवती ने कहा-देवानुप्रिय महाविदेह क्षेत्र अनगार प्रकृति महाविदेह क्षेत्र अच्युत-कल्प में देव-रूप रात-दिन दो देव, जैसेसमृद्ध-वर्णक। महाविदेह क्षेत्र दूसरी बार भी पांचवीं घूमप्रभा-पृथ्वी उरः परिसर्प संज्ञि-जीव
असंज्ञि-जीव |पल्योपम-के-असंख्येय-भाग उर:परिसर्प कछुआ (पण्णवणा, १/५५) यावत् तक हैं, उनमें -जीवों
महाविदेह वास
अनगार-प्रकृति १३ महाविदेह वास ४ अच्युत कल्प में देवरूप ५ रात दिन १,५ | दो देव जैसे
समृद्ध-वर्णक। महाविदेह वास दूसरी बार भी धूमप्रभा-पृथ्वी उरपरिसर्प संज्ञी जीव असंज्ञी जीव पल्योपम के असंख्येय-भाग उरपरिसर्प | कछुआ यावत्
| तक पण्णवणा १/५५ हैं, उनमें १२,७७ जीवों
२० ।
५९३
११५/९
ग्रेवेयक विमानों
| वेयक-विमानों