Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 566
________________ पृष्ठ सूत्र पंक्ति ८०० १३१ "1 " " " ८०० ⠀⠀⠀⠀⠀⠀ ⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀ ⠀⠀⠀⠀ ८०१ | ८०१ " " ८०१ १३३ १३३ " १३४ * * * Amač č - 20****** " " " " १३५ | | १३५ ८०१ | १३५ " १३६ १३६ ८०१ १३६ | " " "7 १३७ १३७, १३८ १३८ १३८ 8 " १३९ ५. १-३ १ २, ३ १३९ ४ २, ३ ३ B ३ ( अनेक) जीव ४. ६ ७ २ ३ १३६ ५, ६ ७. ७. र २ ३ ३ ४ १ २ २ 8 "" ५ (दोनों बार ८०१ १३८ ८०१ ८०१ १३९ | २ " ४ ४ १९३९ ३, ४ अशुद्ध हैं। इसी प्रकार वैमानिकों की सिद्धों की (एक) जीव है.....? पृच्छा । है, यावत् वैमानिकों की अपेक्षा....? पृच्छा। (एक) जीव १ हैं.....? पृच्छा । २ (अनेक) जीव मनुष्यों सिद्धों कार्मक अपेक्षा ५. ६ है यावत् कल्योज नहीं है अपेक्षा से (अनेक) है, यावत् स्यात् कल्योज है, है, यावत् कल्योज भी है। से वक्तव्य को वक्तव्यता है....? पृच्छा । आभिनिबोधिक ज्ञान (एक) जीव है, यावत् वैमानिक की जीव......? पृच्छा । आभिनिबोधिक ज्ञान (अनेक) जीव एकेन्द्रिय को वैमानिकों की की भी वक्तव्यता केवल इतना की होता है। शेष है......? पृच्छा । केवल ज्ञान वक्तव्यता। केवल इतना पर्यव केवल वक्तव्य है। है; इस प्रकार वैमानिक सिद्ध (एक) (जीव) है पृच्छा। है यावत् शुद्ध (एक) वैमानिक अपेक्षा - पृच्छा। (अनेक) (जीव) हैं यावत् कल्योज नहीं हैं। अपेक्षा (अनेक ) हैं यावत् स्यात् कल्योज हैं, हैं यावत् कल्योज भी हैं। वक्तव्य की (अपेक्षा) वक्तव्यता है - पृच्छा । (आभिनिबोधिक ज्ञान (एक) जीव) हे यावत् वैमानिक जीव पृच्छा । (आभिनिबोधिक ज्ञान (अनेक) जीव) - एकेन्द्रियों वैमानिक की अपेक्षा भी वक्तव्यता, इतना की अपेक्षा होता है, शेष है - पृच्छा । (केवल ज्ञान (एक) जीव) हैं पृच्छा । (अनेक) जीव) मनुष्य सिद्ध कर्मक अपेक्षा भी (वक्तव्य है, इतना पर्यवों की अपेक्षा (वक्तव्य है)। पृष्ठ सूत्र पंक्ति १४३ | ८०२ १४४ ८०१ १४० ३ अविकल रूप में १४१ १ या " ८०२ १४२, सर्वत्र जो 8 ====== 8 " - - = = 2 - ८०४ ८०५ ८०५ " " १४५ १४६ | ८०२ १४८ १५० १५०. ३ ८०२ १५१ २ १५२ | ८०३ १ ८०३ १५३ १ ८०३ १ १५४, १५५, १५७ | १५८ ८०४ १६२ " " १४६ | 4 ८०६ or or = 4 x 5 ~ ~ सर्वत्र ४ १४७ | २ ८०६ १६८ २ १. २ ८. १६२ | १६२ ९, १० १६४ १० ९ १६५ ४ १६६ | १ ४ ८ " ८०६ १६७ १३ ८०६ 22 ५ ८०५ १६७ ६-७ है। १४ ३ १६९ | १ सेज (कम्पन वाले) हैं ? या सर्वतः भी सैज है यावत् जो अशुद्ध हे यावत् वैमानिकों परमाणु- पुद्गल पुद्गलों हैं। यावत् बहुत हैं........? स्कध ant, your.....? की, पृच्छा.....। प्रदेशावगाढ़ और हैं........? की भी पुद्गलों की वक्तव्यता है पुद्गलों द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा ही स्थिति के असंख्येय-गुणा-कृष्ण -पुद्गलों का अल्पबहुत्व (भ. २५ / १६३) पुद्गलों के इतना द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा निरवशेष (अथवा ) उनमें जो है ?..... पृच्छा। सेज हैं? (अथवा ) (अथवा ) सर्वतः सैज शुद्ध है (नैरयिक) यावत् उनमें जो है (नैरयिक) यावत् वैमानिक (परमाणु- पुद्गल) पुद्गल हैं यावत् बहुत हैं ? स्कंधों की - पृच्छा की -पृच्छा प्रदेशावगाढ़ पुद्गलों और हैं ? की अपेक्षा भी प्रदेश की अपेक्षा पूर्ववत्। केवल (वक्तव्यता ), इतना पुद्गल (उक्त हैं) पुद्गल द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षाही विभिन्न स्थिति (वाले पुद्गलों) के असंख्येय-गुण-कृष्ण -पुद्गलों (संख्येय- प्रदेश स्कंधों आदि का अल्पबहुत्व (भ. २५ / १६३) प्रतिपादित किया गया, पुद्गलों आदि के हैं। प्रदेश की अपेक्षा- इसी प्रकार द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षालघु (पुद्गलों) लघु-स्पर्शो रूक्ष- स्पर्शो का अल्पबहुत्व भी वर्णों रूक्ष पुद्गलों का अल्पबहुत्व भी वर्ण (वाले पुद्गलों) गौतम ! कृतयुग्म गौतम! (एक) (परमाणु-पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा) कृतयुग्म हैं-पृच्छ । पृष्ठ सूत्र पंक्ति ८०६ १६९ २ " " ८०६ ८०६ " ८०६ ८०६ " " " " 337 " १७० " १७१ १७१ ८०६ १७४ १७२ | १७२ १७३ ३ १७४ | १ ८०६ १७४ | " २ ८०७ १७३ ** १७३ 33 " २ २ १ २ " १ २ ८०७ १७६ २ " १. २ १७५ १७५ २ ८०७ १७७| १ १७७ । २ " ३ (दोनों बार) २ " १७६ १ " १७८ १ ८०७ १७८ २ " ३ ३ १७८३-८ ३ ४,८ ४,८ ५ ६ अशुद्ध गौतम! ओघादेश हैं, यावत् गौतम! कृतयुग्म स्कंध .....? पृच्छा। गौतम ! कृतयुग्म स्कंध .....? पृच्छा । गौतम ! कृतयुग्म स्कंध.....? पृच्छा। गौतम ! कृतयुग्म स्कन्ध (एक) की भांति है (भ. २५ / १७० ) भन्ते! प्रदेश की अपेक्षा (एक) स्कन्ध......? पृच्छा। गौतम ! स्यात् पुद्गल स्कन्ध की भी, पुद्गल स्कन्ध भी। हैं......? पृच्छा । गौतम! ओघादेश हैं, यावत् स्कन्ध.....? पृच्छा। गौतम! ओघादेश स्कन्ध.....? पृच्छा। गौतम! ओघादेश स्कन्ध.....? पृच्छा। गौतम! ओघादेश स्कन्ध -पुद्गलों की (भ. २५ / १७६) । (अनेक) स्कन्धों की (भ. २५ / १७६) । (अनेक ) स्कन्धों की (भ. २५/ १७७ (अनेक) शुद्ध गौतम! (अनेक) (परमाणु- पुद्गल द्रव् की अपेक्षा) ओघादेश हैं यावत् गौतम! (एक) (परमाणु- पुद्गल प्रदेश की अपेक्षा) कृतयुग्म स्कंध पृच्छा। गौतम! (द्विप्रदेशिक स्कन्ध) प्रदेश की अपेक्षा कृतयुग्म स्कंध - पृच्छा। गौतम! (एक) (त्रिप्रदेशिक स्कन्ध प्रदेश की अपेक्षा कृतयुग्म ) स्कंध पृच्छा । गौतम! (एक) (चतुःप्रदेशिक स्कन्ध प्रदेश की अपेक्षा कृतयुग्म ) स्कन्ध (प्रदेश की अपेक्षा) (एक) (भ. २५/१७०) की भांति है। भन्ते ! (एक) स्कन्ध (प्रदेश की अपेक्षा ) – पृच्छा । गौतम! (एक) (संख्यात प्रदेशिक पुद्गल स्कन्ध प्रदेश की अपेक्षा) स्यात् पुद्गल-स्कन्ध भी, पुद्गल स्कन्ध भी ( वक्तव्य है)। है-पृच्छा । गौतम! ((अनेक) परमाणु-पुद्गल प्रदेश की अपेक्षा) ओघादेश हैं यावत् । स्कन्ध-पृच्छा। गौतम! ((अनेक) द्विप्रदेशिक स्कन्ध प्रदेश की अपेक्षा ओघादेश) स्कन्ध-पृच्छा। गौतम! ((अनेक) त्रिप्रदेशिक स्कन्ध प्रदेश की अपेक्षा ओघादेश) स्कन्ध-पृच्छा। गौतम ((अनेक) चतुःप्रदेशिक स्कन्ध प्रदेश की अपेक्षा ओघादेश) स्कन्ध (प्रदेश की अपेक्षा) - पुद्गलों (भ. २५ / १७५) की । (अनेक) स्कन्धों (भ. २५/१७६) की । (अनेक) स्कन्धों (भ. २५/१७७) की । (अनेक)

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