Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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स.गा.
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२
अशुद्ध
?..... पृच्छा ।
गौतम! संख्येय
परिवर्त....... । पृच्छा। गौतम! संख्येय
हैं ?....... पृच्छा ।
गौतम ! स्यात् .......? पृच्छा । गौतम! संख्येय
होती है? जैसी
है........? पृच्छा गौतम! संख्येय
उत्सर्पिणी
है......? पृच्छा । गौतम! संख्येय
गौतम! संख्येय
काल भी ।
गौतम! संख्येय
गौतम! संख्येय
के
गौतम! संख्येय
निगोद की
औदयिक यावत्
(सू. १७) की भांति भाव की
वक्तव्यता, पूर्ववत् । यावत्
१५. निकास । १६. योग १७.
आहार २७. भव २८.
३६ अल्पबहुत्व । राजगृह नगर में यावत्
बोले- (भ. १/१०) भन्ते !
गौतम! पुलाक पांच
चारित्र पुलाक बकुश
शुद्ध
-पृच्छा ।
गौतम! ((एक) सागरोपम) संख्येय परिवर्त - पृच्छा । गौतम! ((एक) पुद्गल परिवर्त)
संख्येय
है- पृच्छा।
गौतम! ((अनेक) सागरोपम) स्यात् -पृच्छा ।
गौतम! ((अनेक) पुद्गल-परिवर्त) संख्येय
होती है० ? जैसी
है - पृच्छा ।
गौतम! ((एक) पुद्गल परिवर्त (परावर्त)) संख्येय उत्सर्पिणियों
हैं-पृच्छा।
गौतम! ((अनेक) पुद्गल - परावर्त) संख्येय
गौतम! (अतीत काल में) संख्येय
काल भी (वक्तव्य है)।
गौतम! (अनागत-काल में) संख्येय गौतम (सर्व-काल में) संख्येय
में
गौतम (सर्व काल में) संख्येय
निगोद-पद
निगोद
औदयिक (भ. १७/१६) यावत् (सू. १७ में) जैसे भाव के विषय में
(उक्त है) वैसे ही यहां भी पूर्ववत् यावत् १५. निकर्ष ।। १ ।। १६. योग १७.
आहार ।।२ ।।
२७. भव २८. ३६. अल्पबहुत्व ।। ३ ।
राजगृह (भ. १/१०) यावत्
बोले भन्ते !
गौतम (पुलाक) पांच
चरित्र- पुलाक (बकुश)
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अशुद्ध गौतम! कुशील
प्रतिषेवणा-कुशील चारित्र प्रतिषेवणा-कुशील गौतम! कषाय-कुशील गौतम! पांच
गौतम! स्नातक
चारित्र वाले; अकर्माणु
दर्शन घर
गौतम! सवेदक यदि सवेदक नपुंसक वेदक
गौतम ! स्त्री
२
वेदक भी होता
गौतम! सवेदक
यदि सवेदक
गौतम! स्त्री
की भी
२.
गौतम! सराग
२ गौतम! सराग
१
है ?..... पृच्छा ।
गौतम! सवेदक यदि अवेदक
गौतम! उपशान्तसवेदक
है ?..... पृच्छा।
गौतम ! बकुश
की भांति
है (भ. २५ / २८९) ।
गौतम ! सवेदक
यदि होता
गौतम! उपशान्त
है ? जैसे निर्ग्रन्थ की वैसे स्नातक
यदि
गौतम ! उपशान्त
है स्नातक
होता
गौतम! जिन कल्प
बकुश.....? पृच्छा गौतम! जिन कल्प
शुद्ध
गौतम! ( कुशील) (प्रतिषेवणा-कुशील) चरित्र प्रतिषेवणा-कुशील
गौतम! (कषाय-कुशील) गौतम (निर्ग्रन्थ) पांच
३३
गौतम! (स्नातक)
चरित्र वाले अकमांश
दर्शन धर
गौतम! (पुलाक-निर्ग्रन्थ) सवेदक (पुलाक-निर्ग्रन्थ) यदि सवेदक नपुंसक वेदक
गौतम ! (पुलाक-निर्ग्रन्थ) स्त्रीवेदक होता
गौतम! ( बकुश-निर्ग्रन्थ) सवेदक
(बकुश-निर्ग्रन्थ) यदि सवेदक
गौतम! ( बकुश-निर्ग्रन्थ) स्त्रीहै-पृच्छा।
गौतम! (कषाय-कुशील) सवेदक
(कषाय- कुशील) यदि अवेदक
गौतम! (कषाय- कुशील) उपशान्त(कषाय-कुशील) यदि सवेदक
है-पृच्छा।
गौतम! (कषाय-कुशील में) बकुश(भ. २५/२८९) की भांति है।
है- (स्नातक)
गौतम! स्थित
गौतम! (पुलाक-निर्ग्रन्थ) स्थित -
भी होता है अथवा अस्थित कल्प भी होता है अथवा अस्थित कल्प होता
गौतम! (निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थ) सवेदक यदि (निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थ) अवेदक होता गौतम! (निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थ) उपशान्तहै०? निर्ग्रन्थ की भांति स्नातक भी
गौतम ! (पुलाक) सराग
गौतम (निर्ग्रन्थ) सराग
(निर्ग्रन्थ) यदि
गौतम! (निर्ग्रन्थ) उपशान्त
गौतम! (पुलाक-निर्ग्रन्थ) जिन - कल्प बकुश-पृच्छा
गौतम! (बकुश) जिन कल्प
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अशुद्ध
कषाय- कुशील.....? पृच्छा गौतम! जिन कल्प
६
निर्ग्रन्थ......? पृच्छा गौतम! जिन कल्प
गौतम! सामायिक संयम
..........? पृच्छा
यावत् सूक्ष्मसंपराय संयम भी होता
है (भ. २५/३०४)
निर्ग्रन्थ......? पृच्छा गौतम! सामायिक
गौतम! प्रतिषेवक
यदि पुलाक प्रतिषेवक
गौतम! मूल गुण
प्रतिषेवक भी होता है।
कषाय-कुशील.....? गौतम! प्रतिषेवक
ज्ञानों में होता है ?
दो में होता है।
तीन में होता है। यदि दो में होता
गौतम! ( बकुश) प्रतिषेवक
बकुश.... ? पृच्छा (भ. २५/३०६) बकुश - पृच्छा (भ. २५/३०७) । गौतम! बकुश प्रतिषेवक
यदि
(बकुश) यदि कषाय-कुशील
में होता है। यदि तीन ज्ञान में होता
श्रुत ज्ञान में होता है।
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३-४ तीन ज्ञान में होता है।
४
अवधि ज्ञान में होता है
४,५ यदि तीन ज्ञान में होता है।
ज्ञान में होता हैं।
दो ज्ञान में होता है।
कषाय-कुशील-पृच्छा।
गौतम! (कषाय-कुशील) जिन कल्प निर्ग्रन्थ-पृच्छा।
गौतम! (निर्ग्रन्थ) जिन कल्प
गौतम! (पुलाक-निर्ग्रन्थ के ) सामायिक संयम
पृच्छा
अथवा यावत् सूक्ष्मसम्पराय संयम होता
6,
ज्ञान में होता है।
मनः पर्यव ज्ञान में होता है
ज्ञान में
-ज्ञान में
निर्ग्रन्थ-पृच्छा
गौतम (निर्ग्रन्थ) सामायिक गौतम! (पुलाक) प्रतिषेवक
यदि (पुलाक) प्रतिषेवक गौतम! (पुलाक) मूल गुण प्रतिषेवक होता है।
सम्पन्न होता
अवधि ज्ञान में होता है।
अवधि ज्ञान से सम्पन्न होता है।
.......? पृच्छा
-पृच्छा
दो ज्ञान में होता है अथवा तीन ज्ञान (कषाय-कुशील) दो ज्ञानों से सम्पत्र
में
होता है अथवा तीन ज्ञानों से सम्पन
ज्ञानों से सम्पन्न होता है।
गौतम! (कषाय-कुशील) प्रतिषेवक ज्ञानों से सम्पन्न होता है ?
(पुलाक) दो (ज्ञानों) से सम्पन्न होता है
तीन (ज्ञानों) से संपत्र होता है। (पुलाक) यदि दो से सम्पन्न होता
से सम्पन्न होता है। (पुलाक) यदि तीन ज्ञानों से
दो ज्ञानों से सम्पन्न होता है
श्रुत ज्ञान से सम्पन्न होता है।
तीन ज्ञानों से सम्पन्न होता है
अवधि ज्ञान से सम्पन्न होता है। (कषाय-कुशील) यदि तीन ज्ञानों से सम्पन्न होता है।
ज्ञानों से सम्पन्न होता है
मनः पर्यव ज्ञान से सम्पन्न होता है।
ज्ञानों से सम्पन्न होता है।
-ज्ञान से सम्पन्न होता है।