Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पृष्ठ | सूत्र पक्ति ८६५/६३५, ३
अशुद्ध (भ. २५/६२०-६२७)
शतक २६
८६६ | सं.गा.
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२,३
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00:
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| राजगृह नगर यावत् गौतम ने कहा-(भ. १/१०) भन्ते! क्या करेगा? जीवों | करेगा? जीवों | करेगा? जीवों गौतम! किसी करेगा। किसी करेगा। किसी करेगा। किसी गौतम! लेश्या-युक्त चार भंग | था.....? पृच्छा | कृष्ण-लेश्या-युक्त | करेगा।
जीव,
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6:
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|जीव की लेश्या
पृष्ठ | सूत्र पंक्ति
अशुद्ध (भ. २५/६२०-६२७) यावत्
| १४ | २ | मन-योगी, वचन-योगी और मन-योगी जीवों के भी, वचन-योगी| | वैमानिक
जीवों के भी और १४ | २ चार भंग वक्तव्य है। अयोगी (चार भंग वक्तव्य हैं)। अयोगी | २ | नरयिक-जीव
(नैरयिक-जीव) हैं।॥१॥
१७/१.२ किया था....? (भ. २६/१) किया था० (भ. २६/१)? पूर्ववत् | | राजगृह (भ. १/४-१०) यावत्
पूर्ववत् । (भ. २६/१६) इसी प्रकार (भ. २६/१६)। इसी प्रकार । कहा
|२,३ | कृष्ण-लेश्या, नील-लेश्या, कापोत- कृष्ण-लेश्या वाला भी, नील-लेश्या भन्ते ! (१) क्या
लेश्या वाले नैरयिक की वक्तव्यता। वाला भी, कापोत-लेश्या वाला भी करेगा? (२) जीवों
(नैरयिक) (वक्तव्य हैं)। करेगा? (३) जीवों
१७५ मति-अज्ञानी श्रुत-अज्ञानी मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी करेगा? (४) जीवों
१७ ७ कषाय-सहित सयोगी कषाय-सहित, सयोगी गौतम ! (१) किसी
|, वचन योगी नैरयिक जीव और वचन-योगी और काय-योगी नैरयिककरेगा। (२) किसी
काययोगी करेगा। (३) किसी
|८ नरयिकी की इन
नरयिक के इन करेगा। (४) किसी
१७९ की वक्तव्यता। केवल की भी वक्तव्यता बतलानी चाहिए, गौतम ! (लेश्या-युक्त) ,,|१०-वेदक वक्तव्य है,
-वेदक- और पुरुष-वेदक वक्तव्य हैं, चार-भंग
वक्तव्य है।
(वक्तव्य हैं)। था-पृच्छा ८६८ | १७ | ११ | वक्तव्यता
(वक्तव्यता) (कृष्ण-लेश्या-युक्त)
,, ,१२,१३/-तिर्यग्योनिक-जीव की भी -तिर्यग्योनिक जीव में भी सर्वत्र ही करेगा,
वक्तव्यता। सर्वत्र जीव के द्वितीय प्रथम और द्वितीय (ये दो) भंग भंग वक्तव्य है।
(वक्तव्य हैं), जीव लेश्या
१५ वक्तव्यता
जो वक्तव्यता चार-भंग ८६८ | १७ | १५ | विषय निरवशेष
विषय में निरवशेष था-पृच्छा ।
१५-१७-देव की (भ. २६/१७) -देव की असुरकुमार (भ. २६/१७) गौतम ! (लेश्या-रहित-जीव ने)
ज्योतिष्क-देव की और वैमानिक- की भांति (वक्तव्यता)। ज्योतिष्क-देव | (कृष्ण-पाक्षिक-जीव)
| देव की असुर-कुमार की भांति की और वैमानिक-देव की उसी प्रकार जीव-पृच्छा।
वक्तव्यता। उसी प्रकार वक्तव्यता, (वक्तव्यता), इतना |(शुक्लपाक्षिक-जीवके विषय में) चार- ।
केवल इतना
ज्ञातव्य हैं। शेष पूर्ववत् ज्ञातव्य हैं, शेष पूर्ववत् वक्तव्य है। (दो) भंग,
वक्तव्यता । केवल इतना वक्तव्यता बतलानी चाहिए, इतना का लेश्या-रहित (भ. २६/४) की
कषाय-सहित जीव
कषाय-सहित-जीव भांति अंतिम भंग
-कषाय-सहित जीव |-कषाय-सहित-जीव (दो)
४ पूर्ववत् । यावत् वैमानिक। पूर्ववत् यावत् वैमानिक (वक्तव्य हैं)। की भी वक्तव्यता।
था......? पृच्छा
था-पृच्छा भंग, नोसंज्ञा-उपयुक्त १९ | २ |जीव
(जीव) चार (भंग वक्तव्य हैं)।
दोनों बार) सवेदक-जीव के अवेदकों के चार (भंग)
|८ मिथ्या-दृष्टि और
मिथ्या-दृष्टि- और -कषाय-सहित के भी और
|-मिथ्या दृष्टि जीव
-मिथ्या-दृष्टि-जीव (दो भंग)
|संज्ञोपयुक्त, अवेदक, कषाय- संज्ञोपयुक्त-, अवेदक-, कषाय(कषाय-रहित-जीव)
सहित, साकार-उपयोग-युक्त सहित-, साकार-उपयोग-युक्त(अकषायी जीव)
जीव-इनमें
|-जीव-इनमें चार-भंग
८६९ २०,२१ १ था, कर रहा है, करेगा? था०?
पृष्ठ सूत्र पंक्ति
अशुद्ध ८६९ २०,२१ ३ नैरयिक ।
नैरयिकों ८६९| २१ | २ |के बन्ध की वक्तव्यता (भ. २६/ का बन्ध (भ. २६/१८) (उक्त है)।
१८) २ मोहनीय कर्म की भी
मोहनीय-कर्म भी |अविकल रूप से यावत् वक्तव्यता निरवशेष (वक्तव्य है) यावत् वैमानिक
वैमानिक तक। था, कर रहा है.......? पृच्छा। था-पृच्छा । जीव
(जीव) सलेश्य जीव
सलेश्य-जीव शुक्ल-लेश्य जीव
शुक्ल-लेश्य-जीव कृष्णपाक्षिक जीव.. कृष्णपाक्षिक-जीवकृष्णपाक्षिक जीव
(कृष्णपाक्षिक-जीव) रहा है करेगा
रहा है, करेगा ८६९४-२६ १ ..........? पृच्छा ८६९/ २४२,३ सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि जीव (सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि-जीव) ज्ञानी जीव
ज्ञानी-जीव अवधि-ज्ञानी जीव
अवधि-ज्ञानी-जीव मनःपर्यव-ज्ञानी जीव
(मनःपर्यव-ज्ञानी-जीव) नो-संज्ञोपयुक्त
नोसंज्ञोपयुक्त अवेदक और
अवेदक- और रहित जीव
रहित-जीव अयोगी
अयोगीजीव
|-जीव नैरयिक जीव
(नैरयिक-जीव) वक्तव्य है। केवल इतना (वक्तव्य हैं), इतना
में पूर्ववत्, केवल इतना में उसी प्रकार, इतना ५,६ की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। नैरयिकों की भांति (वक्तव्य है)। ६ पृथ्वीकायिक में
पृथ्वीकायिकों में कृष्णपाक्षिक पृथ्वीकायिक कृष्णपाक्षिक-पृथ्वीकायिक ........? पृच्छा
-पृच्छा तेजोलेश्य-पृथ्वीकायिक-जीव ने (तेजोलेश्य-पृथ्वीकायिक-जीव ने) अप्कायिक और
अप्कायिकों और ४ भी अविकल रूप से वक्तव्यता। भी निरवशेष (वक्तव्यता)।
सम्यग-मिथ्या-दृष्टि पद सम्यग-मिथ्या-दृष्टि-पद वक्तव्य है।
(वक्तव्य हैं)। मनुष्यों की मनुष्य की |जीवों की भांति वक्तव्यता। (भ. जीवों (भ. २६/२२-२५) की भांति २६/२२-२५)
(वक्तव्यता)। जीव
जीवों असुरकुमार
असुरकुमारों |-बन्ध की भांति वक्तव्यता। -बन्ध (भ. २६/१८) की भांति
(वक्तव्यता)। २ था......? पूर्ववत्........पृच्छा। था-पृच्छा पूर्ववत् (भ. २६/१)।
(म. २६/१)
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चार भंग
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६ २
| था.....? पृच्छा ।
गौतम! लेश्या-रहित-जीव ने | कृष्णपाक्षिक-जीव जीव......? पृच्छा। शुक्लपाक्षिक-जीव के विषय में चार भंग दो भंग। के लेश्या-रहित की भांति अंतिम
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भंग
| १
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की वक्तव्यता। | भंग । नो-संज्ञा-उपयुक्त | चार भंग वक्तव्य है। | सवेदक जीव के | अवेदक के चार भंग |-कषाय-सहित और
दो भंग कषाय-रहित-जीव अकषायी जीव चार भंग
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३ ४ १
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