Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध ८५२ | ५४३, ३ पुलाक की भांति वक्तव्यता पुलाक (भ. २५/४४०) की भांति (भ. २५/४४०)।
(वक्तव्य है)। |४,५ की स्नातक की भांति वक्तव्यता स्नातक (भ. २५/४४१) की भांति (भ. २५/४४१)
(वक्तव्य है)।
पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध ८५८/५७८ २ | काययोग
काय-योग५८० १ | आभ्यन्तर
आभ्यन्तरिक | २ | आभ्यन्तर तप के छह प्रकार आभ्यन्तरिक तप छह प्रकार का ५८१ ३ | निवेदन,
निवेदन |५८६/७ | यावत्। १२ श्रुत-ज्ञान, १३ अवधि यावत् (१२. श्रुत-ज्ञान की अनत्याज्ञान, १४. मनःपर्यव-ज्ञान, |शातना, १३. अवधिज्ञान की
| अनत्यशातना, १४. मनःपर्यवज्ञान की अनत्यशातना)
२ १
का वेयावृत्त्य प्रकार का
का वैयावृत्त्य प्रकार का प्रज्ञप्त है
६२०
पृष्ठ सूत्र पंक्ति अशुद्ध ८५१५३५ २ |सागरोपम
सागरोपम (तक रहते हैं)। (अनेक) परिहारविशुद्धिक-संयत ((अनेक) परिहारविशुद्धिक-संयत) २ | गौतम! जघन्यतः
गौतम! (परिहारविशुद्धिक-संयत)
जघन्यतः। , कोटि-पूर्व
कोटि-पूर्व (तक रहते हैं)। ८५१ | ५३७/ २ गौतम! जघन्यतः
गौतम! (सूक्ष्मसम्पराग-संयत)
जघन्यतः | २ अन्तर्मुहूर्त
अन्तर्मुहुर्त (तक रहते हैं)। ७२ -संयतों की
-संयत | ३ |-संयतो की भांति वक्तव्यता |-संयतो (भ. २५/५३४) की भांति
(वक्तव्य हैं) ३ पुलाक की भांति
पुलाक (भ. २५/४३०) की भांति ३ जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त.......(भ. (जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त.....)।
२५/४३०)
-संयतों.....? पृच्छा संयतों के-पृच्छा | २ गौतम! कोई अन्तर नहीं होता। गौतम ! ((अनेक) सामायिक-संयतों
के पुनः सामायिक-संयत होने के काल
का) कोई अन्तर नहीं होता। ८५१ ५४० १ -संयत.....? पृच्छा
संयतों के-पृच्छा ८५१ ५४० २ गौतम! जघन्यतः
गौतम! ((अनेक) छेदोपस्थापनिकसंयतों के पुनः छेदोपस्थापनिक-संयत
होने में काल का अन्तर) जघन्यतः ५४१ १ -संयत.....? पृच्छा
संयतों के पृच्छा ,,| २ | गौतम! जघन्यतः
गौतम ! (अनेक परिहारविशुद्धिकसंयतों के पुनः परिहारविशुद्धिक-संयत
होने में काल का अन्तर) जघन्यतः २ सागरोपम।
सागरोपम (होता है)। ३ |-संयतों की निर्ग्रन्थों की भांति -संयत निर्ग्रन्थों (भ. २५/४३४) की
वक्तव्यता। (भ. २५/४३९)। भांति (वक्तव्य हैं)। ८५१/५४१/४ |-संयतों की सामायिक-संयतों की |-संयत सामायिक-संयतों (भ. २५//
की भांति वक्तव्यता (भ, २५/ ५३९) की भांति (वक्तव्य है)।
५३९)। ५४२ २ गौतम! छह
गौतम ! (सामायिक-संयत के) छह | |, कषाय-कुशील की भांति वक्तव्यता कषाय-कुशील (भ. २५/४३७) की (भ. २५/४३७)
भांति (वक्तव्य है)। | ३ की पुलाक की
पुलाक (भ. २५/४३५) की वक्तव्यता (भ. २५/४३५)। (वक्तव्य है)। ४,५ की निर्ग्रन्थ की भांति वक्तव्यता | निर्ग्रन्थ (भ. २५/४३८) की भांति
वक्तव्यता (भ. २५/४३८)। (वक्तव्य है)। ५ की स्नातक की भांति वक्तव्यता सातक (भ. २५/४३९) की भांति (भ. २५/४३९)
(वक्तव्य है)। | १ |.....? पृच्छा
-पृच्छा। | ३ | गौतम ! संख्यातवें
गौतम ! (सामायिक-संयत लोक के) संख्यातवें
२ | जैसे होने की वक्तव्यता (भ. २५/ जैसे होने (भ. २५/५४३) की | ५४३)
वक्तव्यता ५४५ / २ गौतम! क्षायोपशमिक- गौतम ! (सामायिक-संयत)
क्षायोपशमिक२ गौतम! औपशमिक
गौतम! (यथाख्यात-संयत)
औपशमिकL, ५४७/२,३ | गौतम ! प्रतिपाद्यमान की अपेक्षा गौतम ! (सामायिक-संयत) प्रतिपाद्य
कषाय-कुशील की भांति निरवशेष |मान की अपेक्षा (एक समय में) वक्तव्यता (भ. २५/४४८) कषाय-कुशील (भ. २५/४४८) की
भांति निरवशेष वक्तव्य हैं। |८५२ | ५४८ | २ |गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा स्यात् गौतम ! (छेदोपस्थापनिक-संयत)
प्रतिपद्यमान की अपेक्षा (एक समय |
में) स्यात् ४ छेदोपस्थापनिक-संयत (छेदोपस्थापनिक-संयत) अपेक्षा स्यात्
अपेक्षा (एक समय में) स्यात् | निर्ग्रन्थ की भांति वक्तव्यता निर्ग्रन्थ (भ. २५/४४९) की भांति (भ. २५/४४९)।
(वक्तव्य हैं)। १ |.....? पृच्छा
-पृच्छा । गौतम ! प्रतिपद्यमान
गौतम ! (यथाख्यात-संयत) प्रतिपद्य-
मान अपेक्षा स्यात्
अपेक्षा (एक समय में) स्यात् यथाख्यात-संयत
(यथाख्यात-संयत) अपेक्षा जघन्यतः
अपेक्षा (एक समय में) जघन्यतः सं.गा. अग्रिम सूत्रों
अग्रिम सूत्रों (भ. २५/५५१-६१९) २ प्रतिपादित है
प्रतिपादित है।।१।। | १,२ | प्रज्ञप्त हैं
प्रज्ञप्त है १ प्रज्ञप्त हैं
प्रज्ञप्त है १ के प्रज्ञप्त हैं
जैसे२ के छह प्रकार प्रज्ञप्त हैं। छह प्रकार का प्रज्ञप्त है, है, जैसे इत्वरिक
है, जैसे-इत्वरिक भक्त, प्रज्ञप्त हैं
प्रज्ञप्त है तुम तुम
तुम-तुम प्रज्ञप्त हैं
प्रज्ञप्त है करना। जैसे
करना, जैसे वाला । जैसे
वाला, जैसे | ३ उत्कटुकासनिकः
उत्कटुकासनिक
६१२| ४ | करना। यह
करना । यह तप-अधिकार है, इसमें जो प्रशस्त ध्यान है उसका आसेवन और जो अप्रशस्त ध्यान है उसका
वर्जन करने से तप होता है। ८६३/६१६, २ | प्रज्ञप्त हैं,
प्रज्ञप्त है, ६१७| | १ | राजगृह नगर यावत् इस प्रकार बोले राजगृह (भ. १/१०) यावत् इस (भ. १/१०)
प्रकार बोले ८६३| ६२१ ३ | बलवान् युगवान
बलवान् इस प्रकार जैसे चौदहवें शतक के प्रथम उद्देशक (भ. १४/३) में
(युगवान् ८६३/६२१| ५ | चरमेष्टक-,
चरमेष्टक, हो जाते हैं। इस प्रकार जैसे चौदहवें हो जाते हैं।) यावत् शतक के प्रथम उद्देशक (भ. १४/ ३) में यावत् भन्ते! जीव
भन्ते! वे (नैरयिक) जीव ३ | गौतम! अपनी
गौतम! (वे जीव) अपनी २ | गौतम! आत्म-कर्म
गौतम! (वे जीव) आत्म-कर्म २ | वे जीव
(वे जीव) १ | जीवों की भांति
| जीवों (भ. २५/६२०-६२६) की
H
का प्रज्ञप्त है
भांति
भक्त
२ | होते (भ. २५/६२०-६२६)। होते। ६२९ २,३ | ......शेष पूर्ववत् । यावत् वैमानिक | शेष पूर्ववत् (म. २५/६२०-६२७
(भ. २५/६२०-६२७) यावत् वैमानिक ६३१ २,३/.....शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् , शेष पूर्ववत् । इस प्रकार (भ. २५॥
| वैमानिक (भ, ६२०-६२७) ६२०,६२७) यावत् वैमानिक ६३३२ | हुआ.....शेष पूर्ववत् । हुआ, शेष पूर्ववत् | ३ | यावत् वैमानिक (भ. २४/६२०- (भ. २५/६२०-६२७) यावत् ६२७)
वैमानिक २ | हुआ.....शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार | हुआ, शेष पूर्ववत् । इस प्रकार
| यावत् वैमानिक